हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Thursday, April 2, 2009

हर बार आंसू साथ नहीं देते

(.) लोग इसे एक बिंदु कहते हैं
(..) यहां दो बिंदु हैं
पर इन दोनों बिंदुओं के बीच भी तो कुछ होगा
अक्सर लोगों को वो नज़र नहीं आता ।।

अगर होंठ हिलें
तो लोग समझ लेते हैं
पर हमेशा ही होंठ हिलें
मुमकिन तो नहीं
और अगर ऐसा हो तो फिर कैसे समझोगे ?

कई बार आंखें बोलती हैं
कई लोग होते हैं
जो आंखों की बोली समझ लेते हैं
आंखों की पलकों के नीचे नमी को बिना छुए
महसूस कर लेते हैं ।
पर हर बार आंसू साथ नहीं देते
कई बार सूखे कुएं की तरह हो जाती हैं आंखे
अगर ऐसा हो, तो फिर कैसे समझोगे ?

कहते हैं, चेहरा मन का आईना होता है
चेहरे के उतरते गिरते भाव
समझा देते हैं
आपकी उदासी और खुशी का हाल
पर हर बार चेहरा साथ दे
मुमकिन तो नहीं
अगर ऐसा हुआ
तो फिर कैसे समझोगे ?

एक बात
और दो बात
इन दोनों बातों के बीच होती हैं कई बात
उन बातों के भी मतलब होते हैं
पर अक्सर लोगों को समझ नहीं आती
एक बात और दूसरी बात के बीच की बात
अगर वही बात हो सबसे अहम
तो फिर कैसे समझोगे ?

कई बार तो शब्द यूं ही
मुंह के दरवाजे धकेलकर
सामने गिर पड़ते हैं
मौका नहीं देखते वो ।
'सच' आपको बेआबरु कर देता है, सरेआम ।।

और कई बार आप छिपाना चाहते हैं
पर 'सच' नहीं छिपता
कई चीज़ें होती हैं
मुंह है
आंखे हैं
चेहरा है
और बातों के बीच की बातें हैं
'सच' आपके सामने उभरकर चीखता है ।।





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3 Comments:

At April 2, 2009 at 8:25 AM , Blogger प्रशांत मलिक said...

vaah kya likha hai..
maja aa gaya
intelligent writing...
bahut achi rachna...

 
At April 2, 2009 at 9:04 AM , Blogger MANVINDER BHIMBER said...

अगर होंठ हिलें
तो लोग समझ लेते हैं
पर हमेशा ही होंठ हिलें
मुमकिन तो नहीं
और अगर ऐसा हो तो फिर कैसे समझोगे ?
बहुत सुंदर भाव हैं

 
At April 2, 2009 at 10:06 PM , Blogger Udan Tashtari said...

भावपूर्ण अभिव्यक्ति..अच्छा लगा पढ़कर.

 

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