हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Friday, May 1, 2009

कितना मुश्किल है...

कितना मुश्किल होता है,
ख़ुद को समझ पाना भी ।
पल में तोला, पल में माशा
होता है आदमी ।।
प्यार को प्यार, मिल ही जाए
ये नहीं होता ।
देखो प्यार करके भी,
वो तनहा रहता है ।।

कौन कहता है ?
कुछ नहीं मिला... दर्दे यार से ।
ये जो ज़िंदगी है,
उसका इंतज़ार है ।।

अब हर आदमी से,
ढंग से मिलता हूं ।
आदमी से खाया धोखा,
बचकर चलता हूं ।।

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3 Comments:

At May 1, 2009 at 3:59 AM , Blogger श्यामल सुमन said...

प्यार को प्यार, मिल ही जाए ये नहीं होता ।
देखो प्यार करके भी, वो तनहा रहता है ।।

बहुत खूब। कहते हैं कि-

खुशबू तेरे बदन की मेरे साथ साथ है।
कह दो जरा हवा से तन्हा नहीं हूँ मैं।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

 
At May 1, 2009 at 6:08 AM , Blogger sanjay vyas said...

This comment has been removed by the author.

 
At May 1, 2009 at 6:10 AM , Blogger sanjay vyas said...

प्यार को प्यार, मिल ही जाए
ये नहीं होता ।
देखो प्यार करके भी,
वो तनहा रहता है ।।
these lines are masterstrokes.keep on trying hand at poetry.

 

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