हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Thursday, October 26, 2017

इतिहास बदला जाएगा… इतिहास बदल रहा है !



इन दिनों एक सवाल मेरे जेहन में बार बार आ रहा है। क्या हम एक 'आक्रमणकारी समाज' में तब्दील हो रहे हैं? क्या एक समाज के रुप में हम पर 'आक्रमणकारी विचार' हावी हो रहे हैं? कुछ लोग इस सवाल और ख्याल को बेतुका कह सकते हैं। इसे खारिज करने के कई तर्क तो मेरे पास भी हैं। पर बार बार सोचने के बावजूद ये ख्याल दूर नहीं जा रहा है।
आक्रमणकारी विचारों से भरे समाज का ख्याल जो मेरे जेहन में उभरा है। वो यूं ही नहीं पैदा हुआ। पिछले कुछ दिनों में समाज के अंदर से उठ रही कुछ आवाजें इसका इशारा दे रही हैं। अपनी बातों को आगे बढ़ाऊं। उन आवाज़ों पर एक नज़र डालिए, जिसने मुझे आक्रमणकारी विचार के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है।

ताजमहल की एक तस्वीर मेरे कैमरे से
 

ताजमहल विरासत है या धब्बा ?

कुछ मीडिया हेडलाइन्स पर गौर करिए। इनमें से एक वो है जिसके केंद्र में बीजेपी के चर्चित विधायक संगीत सोम हैं। संगीत सोम आम विधायक नहीं हैं। अपने बयानों की वजह से चर्चा में बने रहते हैं, या कहें विवादों में। पर इससे क्या होता है? ये तो गालिब के चेले हैं, जैसे बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा। तो इन्हें बदनामी से गुरेज नहीं।
बीजेपी के ये विधायक संगीत सोम, इस आक्रमणकारी लहजे के ताजा उदाहरण हैं। जब संगीत सोम ताजमहल को भारतीय संस्कृति पर धब्बा कहते हैं, तो इसके पीछे के विचार को समझने की जरुरत ज्यादा है। मतलब तो यही है कि अगर कहीं धब्बा है, तो उसे मिटाए जाने की जरुरत पड़ती है।
ndtv.com की एक खबर का स्क्रीन शॉट

ताजमहल कैसा इतिहास? कहां का इतिहास?


संगीत सोम ने मेरठ की एक सभा में क्या कहा – “उत्तर प्रदेश में एक ऐसी निशानी, मुझे नहीं कहना चाहिए। बहुत लोगों को बहुत दर्द हुआ कि आगरा का ताजमहल ऐतिहासिक स्थलों में से निकाल दिया गया। कैसा इतिहास? कहां का इतिहास? कौन सा इतिहास? क्या वो इतिहास, "ताजमहल को बनाने वाले ने अपने बाप को कैद किया था?" क्या वो इतिहास कि ताजमहल बनाने वाले ने उत्तर प्रदेश और हिंदुस्तान से सभी हिंदुओं का सर्वनाश करने का काम किया था? ऐसे लोगों का अगर आज भी इतिहास में नाम होगा तो ये दुर्भाग्य की बात है। और मैं गारंटी के साथ कहता हूं, कि इतिहास बदला जाएगा। इतिहास बदल रहा है।
वेबसाइट scroll.in की एक खबर का स्क्रीन शॉट

इतिहास बदला जाएगाइतिहास बदल रहा है !

संगीत सोम खुलकर ताजमहल के इतिहास को बदलने की बात करते हैं। वो कहते हैं कि इतिहास बदल रहा है। जब वो ताजमहल को केंद्र में रखकर कहते हैं कि कौन सा इतिहास? तो क्या इशारा भारतीय संस्कृति पर इस कथित धब्बे को मिटाने की तरफ है? ताजमहल के संदर्भ में देखें तो क्या ये एक आक्रमणकारी विचार नहीं है?

इतिहासकार पी एन ओक और तेजोमहालय का विचार

जाहिर है संगीत सोम के इस विचार से सहमत लोग कहेंगे, ताजमहल तो तेजोमहालय था। जैसा महान इतिहासकार पी एन ओक ने अपनी पुस्तक The Taj Mahal is Tajo Mahalya – A Shiva Temple और The Taj Mahal Is A Temple Place में साबित किया है।


हिंदुस्तान की विरासत और अनमोल रतन है ताजमहल

जिस तरह संगीत सोम ने ताजमहल को भारतीय संस्कृति पर धब्बा बताया। उससे उनकी पार्टी का बड़ा चेहरा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहमत नहीं है। उन्होंने संगीत सोम के बयान को अपने दूसरे बयान से खारिज कर दिया। जिसमें उन्होंने ताजमहल को हिंदुस्तान की विरासत कहा। और 26 अक्टूबर को ताजमहल देखने आगरा चले आए। तो इस तरह से ताजमहल पर आक्रमणकारी विचार को आया गया मान लेना चाहिए।
योगी आदित्यनाथ के इस बयान को सुनकर एकबारगी लग सकता है कि संगीत सोम का बयान एक शख्स की गलत बयानी है। लेकिन क्या सच में ऐसा है? संगीत सोम ने जो कहा, वो एक सोचा समझा विचार लगता है। जिसे कुछ संगठन धीरे धीरे फैलाते जा रहे हैं। ऐसा क्यों है, इसे समझते हैं।
वेबसाइट aljazeera.com की एक खबर का स्क्रीन शॉट

इतिहास को फिर से लिखने की जरुरत है?

संगीत सोम के विचार को बीजेपी के एक और बड़े नेता विनय कटियार ने आगे बढ़ाया। विनय कटियार महान इतिहासकार पी एन ओक के शोध से पूरी तरह सहमत हैं। बीजेपी के एक और नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी ताजमहल को लेकर इसी तरह का विचार रखते हैं। और सबसे अहम बात, बीजेपी को विचार देने वाले संगठन आरएसएस से निकलती है। ताजमहल भारतीय संस्कृति पर धब्बा है या नहीं, आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार इस विषय को बड़े परिप्रेक्ष्य में लेकर जाते हैं। इंद्रेश कुमार कहते हैं, इतिहास को फिर से लिखने की जरुरत है। इसके पीछे इंद्रेश कुमार के अपने तर्क हैं। 

सिर्फ योगी आदित्यनाथ हैं, जो ताजमहल को विरासत और अनमोल रतन बता रहे हैं। उन्हीं की पार्टी और संगठनों से जुड़े लोग ताजमहल के बारे में ऐसे विचार नहीं रखते। अगर विनय कटियार, सुब्रमण्यम स्वामी और इंद्रेश कुमार योगी के विपरीत विचार रखते हैं, तो इसे आम बात नहीं मानना चाहिए। क्योंकि ये आम लोग नहीं हैं।
दरअसल जिस धब्बे को मिटाने की बात अनकहे तौर पर प्रतिपादित की जा रही है। उसी को सुने और समझे जाने की जरुरत है। समझना जरुरी है कि क्या संगीत सोम जैसे नेता जो कहते हैं, वो अचानक कही बात है? या फिर एक रणनीति का हिस्सा
वेबसाइट economictimes.com की एक खबर का स्क्रीन शॉट

एक ताजमहल पर एक संगठन की दो बातें

योगी आदित्यनाथ ताजमहल को विरासत कहते हुए, एक बार आपको संगीत सोम के विरुद्ध ध्वनि देते प्रतीत होते हैं। लेकिन वो विरासत के साथ एक और बात जोड़ देते हैं। योगी आदित्यनाथ बार बार कह रहे हैं कि ताजमहल भारतीय मजदूरों के खून पसीने से बना है। इसलिए ये सवाल मत करो कि इसे किसने बनाया और कब बनाया? मतलब योगी आदित्यनाथ ताजमहल को विरासत और अनमोल रतन बताने के बावजूद इसे बनवाने वाले बादशाह शाहजहां को तवज्जो देने से बच रहे हैं। योगी आदित्यनाथ एकबार भी ये नहीं कह रहे हैं कि ताजमहल को शाहजहां ने बनाया। आप कह सकते हैं कि ऐसा उन्हें कहने की जरुरत भला क्यों है? सोचिए, क्या ये मूल सवाल का सरलीकरण तो नहीं है
वेबसाइट hindustantimes.com की खबर का स्क्रीन शॉट

क्या इतिहास के पुनर्लेखन से पैदा होगी सांस्कृतिक श्रेष्ठता?

बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की राय ताजमहल को लेकिर आरएसएस की लाइन पर है। स्वामी कहते हैं कि ताजमहल, लालकिला जैसी इमारते विदेशी शासकों ने बनवाई हैं। ये हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा नहीं हैं। ये इतिहास की एक घटना की गवाह मात्र हैं। लिहाजा इन्हें इसी रुप में देखना और आने वाली पीढ़ियों को दिखाना चाहिए। यहां भी इतिहास के पुनर्लेखन की बात है। हालांकि स्वामी एक और बात कहते हैं - हम तालिबान नहीं हैं कि इतिहास की गवाह रही बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ डालें। 
सौजन्य : wikipedia; बामियान में बुद्ध की प्रतिमा का ध्वंस

वो आक्रमणकारी पन्ने जब इतिहास और संस्कृति मारी गयी

इसी के साथ मैं इतिहास के उन आक्रमणकारी अध्यायों के बारे में सोचने लगा। जब एक आक्रमणकारी ने सोमनाथ के मंदिर को अपनी लूट के लिए तहस नहस कर दिया। संगीत सोम की तरह सोचने वाले इस आक्रमण पर अक्सर आंसू बहाते हैं। ऐसा कई और मंदिरों के लिए भी कहा जाता है। 
2001 में अफगानिस्तान में तालिबान आक्रमणकारियों ने अपनी इस्लामिक संस्कृति की श्रेष्ठता को स्थापित करने लिए बामियान में बुद्ध की उन प्रतिमाओं को धवस्त कर दिया, जो ऐतिहासिक धरोहरों में शामिल रही हैं। इस आक्रमण के कई सालों बाद बुद्ध की इन प्रतिमाओं को पुराना स्वरुप दिया गया है। 
सौजन्य : wikipedia
इराक में आतंकी संगठन आईएसआईएस ने शिया मस्जिदों को आक्रमण करके ध्वस्त कर दिया। ज्यादातर वो ऐतिहासिक इमारते निशाना बनीं, जो शिया मुस्लिमों से ताल्लुक रखती थीं, या ईसाई धर्म से।
इराक में शिया मस्जिदें आक्रमणकारियों का निशाना बनाई गयी। इसपर शिया लोग सहानुभूति की मांग करेंगे। लेकिन आक्रमणकारी यहां भी हैं। तभी शिया वक्फ बोर्ड ने कहा हुमांयू के मकबरे को तोड़कर यहां कब्रगाह बना देनी चाहिए।
 
सौजन्य : wikipedia
सौजन्य : wikipedia

    
सौजन्य : wikipedia

सौजन्य : wikipedia


dailypioneer.com की एक खबर का स्क्रीन शॉट

संस्कृति का विस्तार तोड़फोड़ से या साझा समझ से?

अंत में आक्रमण करके किसी इमारत को तोड़ देने और आक्रमणकारी विचार में फर्क क्या है? इसे समझने की जरुरत है। बामियान में बुद्ध की प्रतिमा तो किसी एक तारीख के किसी एक लम्हे में टूटी। लेकिन बुद्ध की उस ऐतिहासिक मूर्ति या कहें विरासत को तोड़ने का आक्रमणकारी विचार तो सिर्फ उस लम्हे में नहीं आया होगा। तालिबान की संस्कृति ने इस विचार को पैदा किया, फिर आगे बढ़ाया, फैलाया और इतना मजबूत कर दिया कि फिर दूसरे विचार बेमानी से हो गए। ऐसा ही इराक और सीरिया में आईएसआईएस के आतंकियों ने किया। 

सवाल ये है कि क्या संस्कृति का विस्तार आक्रमणकारी विचार और तोड़फोड़ से होगा? या फिर इस विस्तार के लिए हम एक दूसरे के साथ साझा समझ पैदा करेंगे, जैसा असली भारतीय संस्कृति हजारों बरस से रही है। संस्कृत में - सर्व धर्म समभाव। ऊर्दू लहज़े वाली हिंदी में गंगा जमुनी तहज़ीब। और अंग्रेजी समझने वालों के लिए – Unity in Diversity.
संस्कृति का विस्तार इसी समझ और विचार से होगा। आक्रमणकारी विचार से नहीं।    

Thursday, October 19, 2017

मीलॉर्ड ने क्या कहा, क्या तुम जानते थे?

रात के ग्यारह बजकर बयालीस मिनट और कुछ सेकेंड हुए हैं। लेकिन बाहर कुछ जाहिल अभी भी नहीं मान रहे हैं। जानता हूं, ये शब्द ठीक नहीं है। और पहली नजर में देश की राजधानी दिल्ली से बमुश्किल पच्चीस किलोमीटर दूर स्थित ग्रेटर नोएडा वेस्ट की सोसाइटी में रहने वाले पढ़े लिखे कुछ लोगों के लिए तो बिल्कुल भी नहीं। पर मैं कहने को मजबूर हूं। पटाखों का शोर कुछ इस तरह से है। एकसाथ सौ पटाखे अपार्टमेंट के एक सिरे पर फूट रहे हैं। तो इस शोर के थमने पर इसके विपरीत दूसरे सिरे पर जैसे कोई प्रतियोगिता के तहत सौ पटाखों की लड़ी में एक साथ आग लगा रहा है। तो क्या कहूं, ऐसे पढ़े लिखे लोगों को
पत्रकार संत प्रसाद की फेसबुक वॉल से

पटाखों के शोर से कान सुन्न हो गए, धुआं सांसों में भर गया

चार घंटे पहले जब पटाखों को फूंकने का सिलसिला शुरू हुआ। तो मैं अपने एक मित्र के साथ ड्राइंग रुम में बैठकर सुप्रीम कोर्ट के एक बेहतरीन फैसले पर बात कर रहे थे। लेकिन रह रहकर पटाखों के शोर ने हमारी बातों को बेमज़ा कर दिया। इस बीच पटाखों के साथ जल रहे पोटाश और हाइड्रोजन सल्फाइड की महक ड्राइंग रुम में घुस आई थी। मैंने ड्राइंग रुम के शीशे के दरवाजे बंद कर दिए।
और अब से थोड़ी देर पहले जब मैं बालकनी पर गया; ग्यारह बजकर इकतालीस मिनट और कुछ सेकेंड पर, तो पटाखों के शोर ने कान सुन्न कर दिए। सांस लेना मुश्किल हो गया। आंखें धुएं से जलने लगी। सोचिए, बच्चों और बुजुर्गों पर क्या बीत रही होगी? पर पटाखे फोड़ने वालों को इससे क्या
पत्रकार संत प्रसाद की फेसबुक वॉल से

मीलॉर्ड ने क्या कहा, क्या तुम जानते थे?

तो पटाखे फोड़ने वाले मेरे भाईयों। एक बात बताओ। क्या पटाखे जलाते वक्त आपको देश की सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले की जानकारी थी? जो उसने 9 अक्टूबर को सुनाया था। सुप्रीम कोर्ट के जज साहेबान ने दिल्ली-एनसीआर में पटाखे बेचने पर रोक लगा दी थी। क्या जब आप पटाखे फोड़ रहे थे, तब आपको ये बात पता थी? अगर आपको नहीं पता था, तो आपको जाहिल कहने के लिए मैं सॉरी कहना चाहता हूं। 

पत्रकार मनीष झा की फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

देशभक्त बड़ा या तुम्हारे दिमाग पर बैठा कथित हिंदू ?

लेकिन अगर आपको सुप्रीम कोर्ट के फैसले की जानकारी थी। और आपने ये तय किया था कि मैं तो पटाखे फोड़ूंगा। क्यों भला? तो आपने ये तय किया था कि इस देश में हिंदुओं के त्योहारों पर ही रोक क्यों लगती है? ईद पर बकरे काटने पर रोक क्यों नहीं लगती? और इसलिए हम तो पटाखे फोड़ेंगे, जी। चाहे जो कर लो। तो जिस शब्द का इस्तेमाल मैंने पढ़े लिखे लोगों के लिए कर दिया है, वो शब्द आपके लिए ही था। 
पत्रकार संत प्रसाद की फेसबुक वॉल से

तो जनाब एक बात बताओ? आप देशभक्त बनना पसंद करोगे या एक कथित हिंदू”?
वो आप ही थे ना? जो प्रधानमंत्री के भारत स्वच्छता अभियान में झाड़ू पकड़कर सेल्फी खिंचा रहा थे।
वो आप ही थे ना? जो इंटरनेशनल योगा डे पर योगा वाली टीशर्ट पहनकर सोशल मीडिया पर अपनी तस्वीरें शेयर कर रहे थे।
और आपको याद है। भारत स्वच्छता अभियान के वक्त आपने जब रोम रोम देशभक्ति में डूबकर भारत माता की जय के नारे लगाए थे। और शपथ ली थी, मैं देश को साफ रखूंगा। कहीं गंदगी नहीं फैलाउंगा।
तो शपथ लेते वक्त क्या सोचा था, दोस्त तुमने? क्या देश सिर्फ सड़क, गली, नाली, बाजार, पार्क में झाड़ू लगाने से साफ होगा
पत्रकार संत प्रसाद की फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

पत्रकार अनुराग पुनेठा की फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

पत्रकार सत्येंद्र यादव की फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

हवा कौन साफ रखेगा?

भाई देश की हवा कौन साफ करेगा? इसके बारे में सोचा है कभी? या जैसा कि पटाखे बेचने पर रोक लगाते वक्त लिखे गए जजमेंट में देश की सबसे ऊंची कोर्ट ने कहा दिल्ली में वर्ल्ड हेल्थ आर्गनाइजेशन द्वारा तय मानक से 28 गुना ज्यादा प्रदूषण है। यानी दिल्ली की हवा खराब है।
या फिर आप कथित हिंदू बनकर अपने अंदर के देशभक्त को जलालत में डूबा देने के इरादे से पटाखे फोड़ने की वासना में भर गए थे।
तो भाई, जिस दिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले को तुमने सीधे हिंदू धर्म पर चोट के रुप में देखा, क्या तुम जज साहब द्वारा 20 पन्ने में लिखे गए जजमेंट को पढ़ने की जहमत नहीं कर सकते थे
मीडियाकर्मी अतुल गंगवार के फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

पत्रकार पूजा श्रीवास्तव के फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

अपने बच्चों के बारे में भी सोचो भाई !

या फिर तुमने सोशल मीडिया में किसी सियासी पार्टी के मीडिया सेल को ही सुप्रीम कोर्ट के बरक्स खड़ा कर दिया है? और सोशल मीडिया में लिखी जाने वाली जाहिलाना बातों को तुम आर्डर की तरह देखते हो।
यूं तो तुम अपनी डिग्री की बड़ी बड़ी बातें करते हो। खुद ही कहते फिरते हो, मैं मल्टी नेशनल कंपनी में काम करता हूं। लंबी लंबी गाड़ी है, तुम्हारे पास।
और पर्यावरण दिवस के दिन तुम ही थे ना मेरे भाई? जब पेड़ लगाने की बात आई, तो तुमने पर्यावरण के प्रति पूरा समर्पण दिखाते हुए, अपनी बालकनी में एक गमले में एक पौधा रोपा था।

खैर, तुमने जो करना था, वे कर दिया। माननीय मीलॉर्ड ने पटाखे बेचने पर रोक क्यों लगाई थी? काश तुम पढ़ लेते। सच कहता हूं दोस्त। तुम पटाखे फोड़ने की हिम्मत न करते। अगर बच्चों को खुश करने के लिए कुछ पटाखे फोड़ भी लेते। तो पटाखे फोड़ने की प्रतियोगिता में न उलझते, मेरे दोस्त।

और पटाखे फोड़ने के चक्कर में न तुम असली हिंदू बन पाए और न देशभक्त। क्योंकि असली हिंदू तो पेड़ से प्यार करना है, नदी से प्यार करता है, हवा से भी प्यार करता है।
पत्रकार मनु पंवर के फेसबुक वॉल से (स्क्रीन शॉट)

काश ! तुम असली हिंदू होते

अगर तुम असली हिंदू होते, तो समझते पेड़ों की पवित्रता को। पीपल, आंवला, केला इन पेड़ों को पूजते हैं लोग, यानी प्रकृति की पूजा। नदी को तो असली हिंदू मां कहता है। समझाने की जरुरत है भला। और हवा को पवन देव कहा गया है। जिसके बेटे पवनपुत्र को हर मंगलवार पूजते हो तुम।

आज तुमने जो जीभरकर पटाखे फोड़े हैं। तो एकसाथ सभी को गंदगी से भर दिया तुमने। जो चिंता सुप्रीम कोर्ट ने अपना फैसला लिखते वक्त जताई थी। और उम्मीद की थी कि पटाखे नहीं फूटेंगे तो पर्यावरण यानी आबोहवा को फायदा होगा। तुमने अपनी नासमझी से उसे कूड़ा कर दिया, मेरे भाई।

रात के एक बजकर पांच मिनट और कुछ सेकेंड हुए हैं। कुछ लोगों की वासना अभी भी खत्म नहीं हो पाई है। मेरे अपार्टमेंट में नहीं, पर कहीं दूर से पटाखे का शोर अब भी आ रहा है।

Monday, October 16, 2017

गुजरात चुनाव और बीजेपी की बेचैनी



जब गुजरात के चुनाव में डेढ़ महीने से कम का वक्त बचा है। तो ये बात कहने में किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए कि गुजरात के चुनावी रण में नरेंद्र मोदी ही वो इकलौते किरदार हैं, जो अपनी वाक कला से लोगों को अपनी तरफ खींचने का दम रखते हैं। ये कहने में भी गुरेज नहीं होना चाहिए कि कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी बदली शैली और बदले अंदाज की बदौलत लोगों से जुड़ रहे हैं। और गुजरात में कांग्रेस के नेताओं की जो एकजुटता दिखाई पड़ रही है, वो कांग्रेस के लिए प्लस प्वाइंट बन गयी है। यही वो बातें हैं, जिनकी वजह से बीजेपी अपनी पिच पर उतनी सहज नहीं दिख रही, जितनी वो पिछले तीन चार चुनावों में दिखा करती थी। 
सौजन्य : @narendramodi {गांधीनगर में गुजरात गौरव महासम्मेलन}

गुजरात में बीजेपी की दिक्कत क्या है?

बीजेपी की दिक्कत दो तीन मोर्चों पर है। पहला, एंटीइनकंबेंसी। दूसरा, पाटीदार-दलित-ओबीसी की नाराजगी। तीसरा, मोदी के केंद्र में जाने के बाद गुजरात में विश्वसनीय चेहरे की कमी। और चौथा, कारोबारी गुजरात को नोटबंदी और जीएसटी से होने वाला नुकसान। बावजूद इसके गुजरात की इस लड़ाई में बीजेपी कमजोर होकर भी मजबूत है।

बीजेपी का एडवांटेज मोदी-शाह

गुजरात में बीजेपी के पास खेलने के लिए कई पत्ते हैं। बीजेपी के दो बड़े पत्ते नरेंद्र मोदी और अमित शाह गुजरात के हैं। कांग्रेस के पास गुजरात का ऐसा कोई चेहरा नहीं है। बीजेपी के पास कार्यकर्ताओं का मजबूत कैडर है। यहां कांग्रेस मात खाती दिखती है। बीजेपी इस वक्त केंद्र और गुजरात दोनों जगह सत्ता में है, इसका फायदा भी बीजेपी को ही मिलने वाला है। कांग्रेस के पास ऐसा कोई एडवांटेज नहीं है। कांग्रेस के आरोपों को सही मान लें, तो चुनाव आयोग ने गुजरात की चुनावी तारीखों का ऐलान नहीं करके बीजेपी को वो एडवांटेज दे दिया है। अब बीजेपी के पास इस वक्त का इस्तेमाल करने का बेहतरीन मौका है। गुजरात कुछ बड़े ऐलानों इंतजार कर रहा है। 
सौजन्य : @narendramodi {गांधीनगर में गुजरात गौरव महासम्मेलन}

गुजरात के चुनावी टेस्ट मैच में कांग्रेस का सिक्सर

लेकिन एक बेहद रोमांचक होने वाले टेस्ट मैच के शुरुआती ओवर में ही कांग्रेस ने बीजेपी को सकते में डाल दिया। जब कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम ने नरेंद्र मोदी और बीजेपी की उस रग को दबाया। जिसे नरेंद्र मोदी और बीजेपी ने ब्रैंड बनाकर गुजरात मॉडलकहा। बेहतरीन तरीके से कांग्रेस की सोशल मीडिया टीम ने विकास गांडो थायो छेका स्लोगन उछाला। यानी विकास पागल हो गया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने बीजेपी के किसी बड़े नेता से पहले चुनावी कैंपेन सरीखे कार्यक्रम शुरू किए। और उन्होंने विकास पागल हो गया हैस्लोगन को नया आयाम दिया।
दरअसल कांग्रेस को जीत की खुशबू इसी सोशल मीडिया कैंपेन के बाद महसूस हुई है। बीजेपी वाले मानें या न मानें, इसका जबर्दस्त असर हुआ है। 
ट्वीटर से प्राप्त, स्क्रीन शॉट #विकास पागल हो गय‌ा है

अमित शाह की बेचैनी को समझिए

सिलसिलेवार तरीके से समझिए। कांग्रेस के इस सफल कैंपेन के बाद बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह को गुजरात जाकर युवाओं से कहना पड़ा, बीजेपी के खिलाफ सोशल मीडिया पर कांग्रेस के दुष्प्रचार के झांसे में न आएं। सवाल ये है कि अमित शाह को ऐसा कहने की जरुरत क्यों पड़ी? क्या कांग्रेस का विकास पागल हो गया है कैंपेन असर दिखा रहा है।

मोदी का भाषण और इसके मायने

अब कल की ही बात देखिए। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गांधीनगर में गुजरात गौर महासम्मेलन को संबोधित किया। बीजेपी ने दावा किया था कि इस रैली में सात लाख बीजेपी कार्यकर्ता पहुंचेगे। सात लाख लोग आए या नहीं, ये पता नहीं। पर रैली में भीड़ अच्छी रही। नरेंद्र मोदी इस रैली में करीब पौना घंटा बोले। जैसा कहा गया है कि नरेंद्र मोदी मौजूदा दौर में भाषण देने की कला में सबसे बेहतर हैं। तो उनका पौना घंटे का भाषण आक्रामक था। उन्होंने विरोधियों पर तीखे हमले किए। और वो मीडिया की सुर्खियों में छा गए। 
ट्वीटर से प्राप्त, स्क्रीन शॉट #विकास पागल हो गय‌ा है

मोदीजी को कौन सा संकट नजर आ रहा है

लेकिन मेरा ध्यान कुछ ऐसे बिंदुओं पर गया, जिनकी चर्चा न टीवी चैनल्स ने की। और न ही आज के अखबारों ने। नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण की शुरुआत में बीजेपी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए एक बात कही। उन्होंने क्या कहा? पहले ये देखिए। लोग आपकी ताकत जानते हैं, या नहीं जानते मुझे पता नहींलेकिन मैं भाजपा के हर सिपाही के सामर्थ्य को भली भांति जानता हूं, उस सामर्थ्य को समझता हूं। और संकट की हर घड़ी में गुजरात भारतीय जनता पार्टी के छोटे से छोटे सिपाही ने भूतकाल में कैसे कैसे संकट झेले हैं? कैसे कैसे जुल्म सहे हैं?” (नरेंद्र मोदी, गांधीनगर के भाषण का एक अंश, 16 अक्टूबर)
प्रधानमंत्री किस संकट की तरफ इशारा कर रहे हैं। वो कार्यकर्ताओं को किस संकट के बारे में बताना चाहते हैं। ये सवाल तो उठता ही है।

भ्रम में क्यों फंसेगा विकास का गुजरात मॉडल ?

एक और बात जो नरेंद्र मोदी ने इस भाषण में कही। उन्होंने कहा कि कांग्रेस पार्टी एक भ्रम फैला रही है। गुजरात को लोगों को इस भ्रम से बचना है। ये सवाल क्यों न पूछा जाए कि नरेंद्र मोदी का विकास का गुजरात मॉडल क्या इतना खोखला है कि कोई भी गुजरातियों की आंखों में धूल झोंक देगा? क्या गुजराती इतने भोले हैं कि उन्हें बिना गड्ढों वाली सड़क दिखेगी। और वो सोशल मीडिया की तस्वीरें देखकर मान लेंगे कि जिस चकाचक सड़क से वो थोड़ी देर पहले गुजरे थे, वो गड्ढों से भर गयी है। क्या गुजरात के चतुर बनिए इतने नासमझ हैं कि उनका कारोबार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा है। और वो कांग्रेस के किसी नेता की बातों में आकर ये मान लेंगे कि उनका मुनाफा घट गया है। और क्या गुजरात के लड़के और लड़कियां इतने भी पढ़े लिखे नहीं हैं कि वो नौकरी कर रहे हों। और कोई आकर कह दे कि तुम बेरोजगार हो, वो झट से मान लेंगे।
क्या कोई भी आकर नरेंद्र मोदी की कड़ी मेहनत से तैयार गुजरात मॉडल की हंसी उड़ा सकता है। और क्या लोग आंखों पर पट्टी बांधे बैठे हैं कि बेमतलब की बातों पर तालियां बजाएंगे। ऐसे गुजारत के लोगों को कौन भ्रम में डालने की कुव्वत रखता है? वो भी चुनाव के दो तीन महीने में।
जाहिर है सड़कों पर गड्ढे हों। बेरोजगारी का आलम हो। कारोबार सुस्त चल रहा हो। और विकास का सिर्फ प्रचार किया गया हो। तभी कोई नेता विकास पागल हो गया है कहेगा, तो लोग सच मानेंगे।

विकासवाद का नारा, पर विकास का जिक्र नहीं

इस भाषण में नरेंद्र मोदी ने एक और बात कही। उन्होंने कांग्रेस पर वंशवाद का आरोप लगाया। और खुद को विकासवाद का झंडाबरदार बताया। अपने पौना घंटे के भाषण में नरेंद्र मोदी इस मुद्दे पर लंबा बोले। लेकिन उन्होंने विकास की एक भी योजना का जिक्र नहीं किया। 
सौजन्य: दैनिक भास्कर वेबसाइट की एक खबर का स्क्रीन शॉट

सकारात्मक राजनीति का स्लोगन और निगेटिव हमले

नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस पर निगेटिव पॉलिटिक्स करने का आरोप लगाया। और खुद को सकारात्मक राजनीति का लीडर। लेकिन अपने पौना घंटे के भाषण में नरेंद्र मोदी आधे से ज्यादा वक्त तक कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को कोसते रहे। वो राहुल गांधी से सोनिया गांधी और फिर मरहूम राजीव गांधी, इंदिरा गांधी, जवाहर लाल नेहरू तक पहुंच गए। 
सौजन्य: @officeOfRG {गुजरात की एक रैली}

विरोधी कमजोर है, तो वो दिखेगाकहना क्यों पड़ा?

नरेंद्र मोदी ने अपने भाषण में एक और बात कही। उन्होंने कहा कि लोग कांग्रेस को मजबूत बता रहे हैं, तो फिर लोग बताएं कि उनके विधायक चुनाव से पहले कांग्रेस को छोड़कर क्यों चले गए? नरेंद्र मोदी की ये बात सही है, कांग्रेस मजबूत थी तो ऐसा क्यों हुआ? लेकिन नरेंद्र मोदी अपने कैडर के सामने ये क्यों बता रहे हैं कि कुछ लोग कांग्रेस को मजबूत समझने की गलती कर रहे हैं?
नरेंद्र मोदी की इस बात में दो बातें छिपी हो सकती हैं। पहला, गुजरात में ऐसे लोग हैं, जो कह रहे हैं कि कांग्रेस मजबूत है। और दूसरा, कांग्रेस दो दशक से गुजरात में बैठी बीजेपी को टक्कर देने का दमखम रखती है। एक बात को समझने की कोशिश करिए। देश का प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदरदास मोदी, वो शख्स नहीं हैं, जो किसी आम आदमी की बात को गंभीरता से लेंगे और फिर इस आधार पर अपने सात लाख कार्यकर्ताओं के सामने पूरे गुजरात को एक मैसेज देंगे कि कांग्रेस मजबूत नहीं है
नरेंद्र मोदी जब इस बात को जोर देकर कह रहे हैं कि कांग्रेस मजबूत होती तो उसके विधायक साथ क्यों छोड़ते? तो क्या आपको ऐसा नहीं लग रहा है कि नरेंद्र मोदी अपने लाखों कार्यकर्ताओं के साथ साथ खुद को भी एक मैसेज दे रहे हैं कि कांग्रेस मजबूत नहीं है। क्या गुजरात में कांग्रेस इतनी मजबूत है कि नरेंद्र मोदी को ऐसा कहना पड़ा।