तुम बिन....
तुम बिन भी सूरज निकला
दिन रोशन हो गया
सुबह चिड़िया चह-चहा रही थी, पेड़ पर।
रात चांद वैसे ही निकला, आज भी
थोड़ा घिस गया था मगर
कल भी नींद आयी मुझे
थोड़ी देर से आई थी लेकिन।
बहुत कुछ नहीं बदला है
तुम्हारे नहीं होने से
मैं ऑफिस भी गया
वैसे ही काम किया था,
रोज़ की तरह।
थोड़ा कम बोला
बैठा रहा गुमसुम सा
उस दिन ज़रुर।
लेकिन खाना
उस दिन भी खाया था मैंने
एक वक्त कुछ भूख कम सी लगी
तो पानी ज़्यादा ही पिया मैंने।
मैं हंसा भी भरपूर था
बस हंसी अंदर नहीं थी।
हां... नहीं देखा मैंने आज तुम्हें
नहीं ढूंढ़ा नज़रों ने तुमको।
क्योंकि, तुम बिन भी सूरज निकला
चांद चमका
सबकुछ वैसे ही चला
जैसे पहले था।।
दिन रोशन हो गया
सुबह चिड़िया चह-चहा रही थी, पेड़ पर।
रात चांद वैसे ही निकला, आज भी
थोड़ा घिस गया था मगर
कल भी नींद आयी मुझे
थोड़ी देर से आई थी लेकिन।
बहुत कुछ नहीं बदला है
तुम्हारे नहीं होने से
मैं ऑफिस भी गया
वैसे ही काम किया था,
रोज़ की तरह।
थोड़ा कम बोला
बैठा रहा गुमसुम सा
उस दिन ज़रुर।
लेकिन खाना
उस दिन भी खाया था मैंने
एक वक्त कुछ भूख कम सी लगी
तो पानी ज़्यादा ही पिया मैंने।
मैं हंसा भी भरपूर था
बस हंसी अंदर नहीं थी।
हां... नहीं देखा मैंने आज तुम्हें
नहीं ढूंढ़ा नज़रों ने तुमको।
क्योंकि, तुम बिन भी सूरज निकला
चांद चमका
सबकुछ वैसे ही चला
जैसे पहले था।।
Labels: मेरी रचना
2 Comments:
बहुत गहरी रचना-वेदना के स्वर.
बहुत अच्छी रचना....
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