हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Thursday, April 9, 2020

नफरत के दौर में, दिल दिमाग खुले रखना


इन दिनों मीडिया और सोशल मीडिया में लोगों के बीच एक दीवार से खींच दी गई है। आप नफरत के खिलाफ बोलिए या लिखिए। लोग मोहब्बत को गाली देने लगेंगे। कई तरह की दलीलें दी जाएंगी। पहली बात यह कही जाएगी, आपने उस मुद्दे पर क्यों नहीं लिखा? इससे उनका सीधा मतलब होगा कि आपने अमुक समुदाय के खिलाफ क्यों नहीं लिखा?

इस नफरत ब्रिगेड के निशाने पर इन दिनों एक अल्पसंख्यक समुदाय है। कोरोना के झंझट के बीच दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में तबलीगी जमात के लोगों के इकट्ठा होने और फिर इनमें से कई लोगों के कोरोना पॉजिटिव पाए जाने के बाद, नफरत फैलाने का एक सिलसिला शुरू हुआ है। 

करीब 10 दिन होने को आए हैं, मरकज की तरफ से कई सफाई आ गई हैं, पर तबलीगी जमात के बहाने एक पूरे समुदाय को निशाने पर लेने का चौतरफा खेल जारी है। नफरत के इस खेल के कई खिलाड़ी हैं; मीडिया, सोशल मीडिया और खास तरह की सियासत करने वाले लोग।

नफरत का खेल कौन खेल रहा है?

इस खेल की शुरुआत मीडिया के जरिए की गई। फिर इसमें सियासत का तड़का लगा, और अब सोशल मीडिया के जरिए फर्जी और झूठी खबरें लगातार फैलाई जा रही हैं। इसमें से ज्यादातर खबरें अपुष्ट हैं, भ्रामक हैं। कुल मिलाकर कई खबरें फर्जी हैं। 

एक बार टेलीविजन न्यूज़ के जरिए या सोशल मीडिया के जरिए जब फर्जी खबर दूर देहात और छोटे कस्बों में फैल गई, तो वह सच बन जाती है। कितनी भी सफाई देते रहिए झूठ, सच बनकर लोगों के दिलो-दिमाग पर पड़ा रहता है।
आप अपने किसी पड़ोसी से बात करिए, वो तबलीगी जमात के बारे में कई तरह की बातें बताने लगेगा। इनमें से ज्यादातर बातें फर्जी खबरों का हिस्सा होंगी।

मसलन एक मुसलमान फलवाले द्वारा फलों पर थूकने की बात। पुलिसवाले पर थूकने की बात। ये खबरें भी खूब जोर शोर से फैलाई गई कि अमुक अमुक शहर में तबलीगी जमात के कुछ लोग कोरोना पॉजिटिव पाए गए, और जब पुलिस या मेडिकल टीम उन्हें लेने पहुंची, तो उन्होंने पथराव शुरू कर दिया।

अच्छे भले, पढ़े-लिखे लोग भी इन खबरों पर यकीन कर रहे हैं। सोशल मीडिया के जरिए फर्जी खबरों का एक ऐसा जाल बुन दिया गया है, जिसके पार देख पाना एक आम इंसान के लिए संभव नहीं।

फिरोजाबाद पुलिस की बड़े मीडिया हाउस को चेतावनी

सोशल मीडिया पर बार-बार यह खबरें फैलाई गई कि किसी शहर में तबलीगी जमात के कुछ लोग कोरोना पॉजिटिव है। उन्हें जब मेडिकल टीम लेने पहुंची, तो पथराव शुरू कर दिया गया।

ऐसी खबर एक बड़े मीडिया हाउस ने अपनी वेबसाइट पर छापी। मीडिया हाउस का नाम लेना मुनासिब नहीं, पर जो खबर छपी उस का स्क्रीनशॉट आप देख सकते हैं।
ये खबर यूपी के शहर फिरोजाबाद को लेकर चलाई गई। 6 अप्रैल की इस खबर में लिखा था "फिरोजाबाद में 4 तबलीगी जमाती कोरोना पॉजिटिव, इन्हें लेने पहुंची मेडिकल टीम पर हुआ पथराव।"

जाहिर है इस खबर को न जाने कितने लोगों ने पढ़ा होगा। और फिर तबलीगी जमात के बहाने एक समुदाय, दूसरे समुदाय के लोगों की नफरत का निशाना बन गया।
लेकिन सच क्या है? ज्यादातर मामलों में सच पता ही नहीं चल पाता। झूठी और फर्जी ख़बरें सच बन जाती हैं। लोग इन पर 100 फ़ीसदी यकीन करने लगते हैं।

इस फर्जी खबर के साथ भी यही होता, अगर फिरोजाबाद पुलिस तुरंत एक्टिव ना होती। अच्छी बात है कि फिरोजाबाद पुलिस ने इस फर्जी खबर पर तुरंत प्रतिक्रिया दी।
फिरोजाबाद पुलिस ने मीडिया हाउस के ट्विटर हैंडल को टैग करते हुए लिखा, "आपके द्वारा असत्य और भ्रामक खबर फैलाई जा रही है। जबकि जनपद फिरोजाबाद में न तो मेडिकल टीम और ना ही किसी एंबुलेंस गाड़ी पर कोई पथराव हुआ है।"

फिरोजाबाद पुलिस ने मीडिया संस्थान को एक चेतावनी भरे लहजे में ट्वीट डिलीट करने को कहा, फिरोजाबाद पुलिस के इस ट्वीट में लिखा गया - "आप अपने द्वारा किए गए ट्वीट को तत्काल डिलीट करें।"

बाराबंकी के डीएम ने अखबार को पत्रकारिता सिखाई

फिरोजाबाद में ही नहीं यूपी के बाराबंकी में भी एक बड़े अखबार में तबलीगी जमात से जुड़ी खबरों को गलत और भ्रामक अंदाज में छापा गया। इस अखबार की खबरों पर बाराबंकी के डीएम और एसएसपी को चेतावनी तक देनी पड़ी।
फिरोजाबाद के डीएम ने 6 अप्रैल को अपने ट्विटर हैंडल पर एक अखबार को भ्रामक खबर छापने के लिए आड़े हाथ लिया। 

उन्होंने अपने वेरीफाई टि्वटर हैंडल पर लिखा, "कम से कम जागरण से इस प्रकार के Yellow Journalism और Rumour Mongering की अपेक्षा नही थी। बेहद दुःखद।"



इस ट्वीट के साथ डीएम साहब ने एक नोट भी शेयर किया। इस नोट में लिखा था, "इन विषम परिस्थितियों में ऐसी अफवाहों पर तथ्यों को तोड़ मरोड़ कर, बिना प्रशासन का पक्ष जाने निराधार खबर विकसित करना, पत्रकारिता एवं जागरण के अपने मापदंडों के विपरीत है। बेहद दुखद।"

डीएम साहब ने दूसरे ट्वीट में लिखा, "आशा है अब सभी प्रकार की अफवाहों और निराधार खबरों पर विराम लगेगा।"
बाराबंकी के पुलिस अधीक्षक ने भी टि्वटर हैंडल के जरिए कहा, "COVID2019 के दृष्टिगत भ्रामक खबरों पर ध्यान न दें।"
अंदाजा लगा सकते हैं कि अखबार की जिस खबर को डीएम और पुलिस के आला अधिकारी झूठा और भ्रामक बता रहे हैं, उस खबर को पढ़कर आम लोगों के 
मन में किस तरह की भावनाएं पैदा हुई होंगी।

सहारनपुर पुलिस ने मीडिया को दिखाया आईना

भ्रामक खबरों का सिलसिला यहीं नहीं रुकता। सहारनपुर पुलिस ने ऐसी ही कुछ भ्रामक और फर्जी खबरों की पोल खोली। दरअसल कुछ टेलीविज़न न्यूज़ चैनल, अखबार और कुछ सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स में तबलीगी जमात के लोगों के बारे में झूठी और फर्जी खबरें छापी गई। इन्हीं खबरों पर सहारनपुर पुलिस को स्टेटमेंट जारी करना पड़ा।
सहारनपुर पुलिस द्वारा जारी स्टेटमेंट का शीर्षक है, खबर बनाम सच। 

सहारनपुर पुलिस ने लिखा - "अवगत कराना है कि विभिन्न समाचार पत्रों, न्यूज़ चैनलों एवं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित की जा रही खबर 'क्वॉरेंटाइन किए गए जमतियों ने खाने में नॉनवेज ना मिलने पर किया जमकर हंगामा, जमातियों by ने खुले में ही कर डाली शौच' की सत्यता की जांच व आवश्यक कार्यवाही करने हेतु थाना प्रभारी रामपुर मनिहारन को निर्देश दिए गए थे, जिनके द्वारा जांच की गई तो जांच में विभिन्न समाचार पत्रों, न्यूज़ चैनलों एवं सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर प्रकाशित की जा रही उक्त खबर पूर्ण रूप से गलत एवं असत्य पाई गई है। अतः सहारनपुर पुलिस उक्त प्रकाशित खबर का पूर्णता खंडन करती है।"



सोचिए, ऐसी खबरों ने न जाने कितने पढ़े लिखे और भले इंसानों के दिमाग दूषित किए होंगे। ऐसी खबरों को देखकर सुनकर ही कुछ लोग नफरत के खिलाफ बोलने पर लांछन लगाते हैं।

लखनऊ में महिला नर्सों पर हमले की खबर फर्जी निकली

सोशल मीडिया फर्जी खबरों की सबसे बड़ी फैक्ट्री बन गया है। सोशल मीडिया के जरिए फर्जी खबरें जोर शोर से फैलाई जा रही है। लखनऊ में एक ऐसा ही मामला सामने आया। लखनऊ में सोशल मीडिया के जरिए कैसरबाग में महिला नर्सों पर हमले की खबर फैलाई गई। 

इन्हीं फर्जी खबरों के आधार पर एक महिला ने ट्विटर पर लखनऊ पुलिस से शिकायत की। इस महिला ने ट्विटर पर लिखा - "लखनऊ के कैसरबाग, कसाईबाड़ा में महिला नर्सों के साथ अभद्रता की गई। गाली गलौज देते हुए, पत्थर उठाने पर जान बचाकर भागे स्वास्थ्यकर्मी।"
इस ट्वीट पर लखनऊ पुलिस का जो जवाब आया, वो चौंकाने वाला है। लखनऊ पुलिस ने लिखा - "उक्त प्रकरण में SHO कैसरबाग द्वारा बताया गया कि इस प्रकार की कोई भी घटना कैसरबाग थानाक्षेत्र में नही हुई है।"

फलों पर थूकने वाले वीडियो का कोरोना से लेना-देना नहीं

आप मोहब्बत की बात करिए, नफरत के खिलाफ बोलिए; तो झट से कुछ लोग फलों पर थूकने वाली बात का जिक्र कर देंगे। ऐसे लोगों को मूर्ख मत कहिए। यह उनकी अज्ञानता है। 


फलों पर थूकने वाले वीडियो को लेकर टीवी न्यूज़ चैनल्स और सोशल मीडिया में खूब हल्ला मचा। अब पड़ताल के बाद पता चल रहा है कि वो वीडियो पुराना है।
फलों पर थूकने वाला वीडियो मध्य प्रदेश के रायसेन का है। इस खबर की क्विंट वेबसाइट ने पूरी पड़ताल की। क्विंट ने रायसेन की एसपी से बात की। उन्होंने बताया कि यह वीडियो 16 फरवरी का है, और इसका कोरोना वायरस से कोई लेना-देना नहीं।


आरोपी के परिवार का कहना है कि शेरू मियां की मानसिक हालत ठीक नहीं है, हालांकि इस मामले में पुलिस ने केस दर्ज करके आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है। लेकिन फलों पर थूकने वाले इस वीडियो को एक साजिश बताकर फैलाया गया। फेसबुक सहित तमाम सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर यह वीडियो देखते ही देखते वायरल हो गया। पढ़े लिखे समझदार लोगों ने भी इस वीडियो का हवाला देकर जमकर नफरत फैलाने की कोशिश की। हम जैसों को उलाहना और ताना देने में यह प्रकरण बहुत काम आया।
पुलिस पर थूकने वाला वीडियो पुराना है!
एक और वीडियो को सोशल मीडिया में खूब प्रचारित किया गया। यह वीडियो मुंबई का है। इस वीडियो में दिखाया जा रहा है कि एक शख्स पुलिस पर थूकता है। पड़ताल में यह साफ हो गया है कि यह वीडियो 2 मार्च का है, और इसका कोरोनावायरस से कुछ भी लेना देना नहीं।
नफरत और मोहब्बत का खेल, दोनों अलग-अलग खेले जा रहे हैं। इतनी सच्चाई जानने के बाद भी, शायद ही नफरत फैलाने वाले मानेंगे। नफरत फैलाने वाले माने या ना मानें, मोहब्बत करने वालों को मोहब्बत करते रहनी चाहिए।
और अंत में जिगर मुरादाबादी का एक शेर है।
उन का जो फ़र्ज़ है वो अहल-ए-सियासत जानें,

मेरा पैग़ाम मोहब्बत है जहां तक पहुंचे।।


Wednesday, April 8, 2020

कोरोना ठीक हो जाएगा। पर नफरत कैसे ठीक होगी?


बहुत दुख होता है लोग बदल रहे हैं। पर वो खुद नहीं जानते, वो कितना बदल गए हैं? हम अक्सर खुद में होने वाले बदलाव को कहां पहचान पाते हैं? यह ठीक वैसे ही हो रहा है। 
‌एक नफरत धीरे धीरे हमारे इर्द-गिर्द फैलती जा रही है। इस नफरत ने हमारे रिश्तों को, हमारे सामाजिक ताने-बाने को अपने शिकंजे में कस लिया है।
‌जहां देखो लोग नफरत से भरे बैठे हैं।
‌दुख उन लोगों के बदलने पर ज्यादा होता है, जिन्हें हम जानते हैं, पहचानते हैं।
‌उनमें से कई मेरे दोस्त हैं। कुछ चाचा, कुछ मामा, कुछ भाई। और भी न जाने क्या-क्या रिश्ते।
‌हर बात में नफरत बह रही है।
कोरोना ठीक हो जाएगा। पर नफरत कैसे ठीक होगी?
‌सत्ता से होती हुई ये नफरत मीडिया के जरिए मेरे, तुम्हारे, हमारे घरों में घर कर गई है। इस नफरत का सिरा मिलता ही नहीं। आखिर क्यों फैली है ये नफरत?
‌मैं परेशान इसलिए ज्यादा हूं। क्योंकि ये नफरत अनचाही नहीं है। गौर से देखो, तो पता चलेगा। इस नफरत को पाला गया, पोसा गया। एक लंबा वक्त लगा होगा इसे तैयार करने में। और अब इसे मेरे, तुम्हारे, हमारे घरों और रिश्तों के बीच छोड़ दिया गया है। अब ये नफरत अपना शिकार खुद कर रही है।
‌तो किसने पाला इस नफरत को? सत्ता या सत्ता से जुड़े प्रतिष्ठानों ने या फिर सत्ता की गुलामी में लगे मीडिया संस्थानों ने? या एक समाज के तौर पर हम फेल हुए हैं।
‌मैं बेचैन हूं, तब से जब से मैंने एक व्हाट्सएप मैसेज देखा है। मैं जानता हूं यह पहला व्हाट्सएप मैसेज नहीं है। इससे पहले न जाने कितने ही ऐसे व्हाट्सएप मैसेज मैंने देखें हैं।
‌पर ये मैसेज किसी खास ने मुझे भेजा है। मैं जानता हूं यह मैसेज फॉर्वर्डेड है। किसी खास फैक्ट्री में किसी खास विचारधारा से प्रेरित लोगों ने बनाया होगा।
‌मैं सोचता हूं उनके (मेरे खास) मन में नफरत ना होगी! पर फिर यकीन नहीं होता!
‌आखिर इस तरह के नफरती संदेश कोई क्यों कर भेजेगा?
कई सवाल बार-बार दिल पूछता है?
‌मैसेज एक समुदाय के खिलाफ नफरत भड़काने वाला है।लिखा है, "मुल्लों का आर्थिक बहिष्कार। सूची तैयार हो गई है। सब हिंदू इसे कम से कम 10 ग्रुप में भेजो।"
‌फिर नीचे लिखा है "आर्थिक बहिष्कार ऐसा होना चाहिए कि अगले महीने ही इनकी बैलेंस शीट आधी हो जाए। फिर इनके शेयर औंधे मुंह गिरेंगे"
‌आगे लिखा है - "गोली नहीं मार सकते तो उंगली मार दो। बर्बाद कर दो इन जिहादियों को। यदि इतना भी दम नहीं है, तो मरोगे ही। तुम्हें कोई नहीं बचा सकता।"
यह मैसेज लंबा है। पूरा का पूरा नफरत से सना हुआ है।
‌यह व्हाट्सएप मैसेज एक उम्मीद के साथ मुझे भेजा गया था। भेजने वाले को लगता था मैं इसे 10 ग्रुपों में भेजूंगा।
‌पर मैं माफी चाहता हूं मेरे उस अजीज से। मैं यह न कर सकूंगा। माफ करना।
‌अगर हिंदू होने का वास्ता देकर मुझे एक समुदाय के खिलाफ नफरत से भरा जा रहा है, तो मैं कहना चाहता हूं मेरा ऐसे धर्म पर जरा भी विश्वास नहीं। मैं कहना चाहता हूं जिस हिंदू धर्म को मैंने जाना, समझा; वो बिला शक ऐसा नहीं। अगर यही हिंदू धर्म है, तो मैं इस धर्म का हिस्सा नहीं रहना चाहता।
माफ करना, मेरे चाचा।
माफ करना, मेरे मामा।
माफ करना, मेरे भाई।
माफ करना, मेरे दोस्त।
मैं नफरत में तुम्हारा संगी नहीं बन सकता।
तुम्हारा ही एक हिस्सा।

Monday, September 30, 2019

मंगलवा गरीब है, सो सवाल पीछा करते हैं

गरीब पर सबका जोर चलता है। बड़का लोग से कोई सवाल नहीं पूछता।

बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे गरीब हैं, बेचारे ने चमकी बुखार और बच्चों की मौत के बीच एक छोटा सा सवाल पूछ लिया, "कितने विकेट गिरे?" 

लगे सब गरीब को कोचने। इस छोटी सी बात पर लगा दी क्लास गरीब की।

खबर छाप दी। टीवी पर, एंकरवा चिल्लाहिस लागे।

किसी किसी ने तो इस्तीफा तक मांग लिया।

बवाल काट दिया सब लोग। 

हम पूछते हैं, क्या बुरा किया मंगल दादा ने?

क्रिकेट से मोहब्बत करते हैं। जी जान से चाहते हैं।

और बड़ी बात प्रधानमंत्री जी को फॉलो करते हैं। उनको आंख बंद करके मानते हैं। कोशिश करते हैं प्रधानमंत्री जी के बताए रास्ते पर चल सकें। 

मंगल दादा कोशिश कर रहे थे, मीडिया वाला सब खराब कर दिहिन।

अब बच्चे मर रहे हैं, तो का क्रिकेट देखना छोड़ देगा??
बताओ। बताओ। ये कोउ बात हुवा भला?

मोदी जी क्रिकेट क्रिकेट करें, तब तो सवाल नहीं सूझता इन मीडिया वालों को।

20 दिन होने को है, 120 से ज्यादा बच्चे मर गए। पर प्रधानमंत्री जी, सुध लिए क्या?

पर हमारे प्रधान जी क्रिकेट भूले का? वर्ल्ड कप शुरू होइ की शुभकामना। दे ट्वीट पर ट्वीट। शिखर धवन आउट, तो ट्वीट। कोइ देश का नेतवा बल्ला देई दे, तो ट्वीट।

सब बड़का आदमी ऐसा ही होता है।
हमार मंगल दादा , सिर्फ बड़ा बनने की सोचिन हैं।
और सब पिल पड़े, गरीब की सोच पर।

अब बताओ, का गरीब लोगन सोच भी ना पाई इस दुनिया मा।

अच्छा बताओ, क्रिकेट बड़ा या चमकी से मौत। पता है ना, वर्ल्ड कप चार साल में एक बार आत है। बच्चे तो रोज न मर रहे हैं। चमकी इस बार मिस भी हुआ तो अगले साल आयेगा ना? 
छोटका लोग, सब बुरबक, चिन्हता ही नहीं है।

मरे दो बच्चन को, मर्दे।
"600" करोड़ का देश है। तनी सौ दो सौ कम भी हो गए तो क्या?
बोले न, तो क्या?

मंगलवा बेचारा, मुजफ्फरपुर गया। अस्पताल गया, बच्चों को देखे। फिर जब सुस्ताये तब विकेट पूछे।

मीडिया वाले गरीब को धर लिहिस।।

अन्याय हुआ, सच में गरीब के साथ।

अब प्रधानमंत्री जी को देखो दिन में आधा दर्जन ट्वीट करते हैं। 
एक जून से बीस जून तक 20 दिन में 142 ट्वीट किये। 39 ट्वीट योग पर किया। 5 ट्वीट राहुल गांधी से लेकर दूसरे बड़का लोगों के बर्थडे पर किये।

3 ट्वीट क्रिकेट पर किये। 2 सांसदों के भोज पर किया। 

ऐसा नहीं मौत से दर्द नहीं होता। तीन ट्वीट नेताओं के निधन पर भी किया साहब ने।

प्रधान जी ने नब्बे ट्वीट अन्य मामलों पर भी किये।

पर चमकी पर एक्को नहीं किये। बच्चों की मौत पर नहीं किये। सीधे क्रिकेट पर किये। धवन का हाल चाल पूछे। योगा से कमर दर्द के बारे में बताया।

माँ का दर्द, भूल गए होंगे। और क्या? कोई जानबूझ कर थोड़े ना करता है!

अब देखो, बड़का लोग हैं। कोई पूछा, प्रधान जी से कि साहब 20 दिन हुआ, चमकी पर बच्चों की मौत पर ट्वीटयाए काहे नहीं। 

नहीं मन किया, नहीं किये। तुम्हें क्या?

बेचारा गरीब मंगलवा। सच में तुम पर दया आता है।
मंगलवा हम तुम्हारे साथ हैं।

ईहां मंदी आ ही नहीं सकता, परधान जी पॉजिटिव हैं!

संडे को परधान जी ने एलान किया, देश को 5…10 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बना देंगे¡
लोगों ने कहा, परधान जी कुछ भी! ऐसे कैसे होगा?
परधान को बोले की खुरक है। वो जवाब बड़ा जबर देते हैं, सो सबकी बोलती बंद कर दिए। लोगों को जमा किया। और दुई घंटे घेर लिया। 
बोला। सब निगेटिविटी फैला रहे हैं, नकारात्मक लोग। 
देस पॉजिटिविटी से चलता है। बगुले खुसी के मारे झूम गए। जोर जोर से नारा लगने लगा।
परधान और बगुलों की पॉजिटिविटी के बाद भी मंडे को एक वेबसाइट छंटनी की खबर छाप दिया।
परधान बी पॉजिटिव रहे, उनके समर्थक और बड़े वाले¡¡  छंटनी की खबर को झूठ झूठ बोल दिए।
व्हाट्सएप पर फैल गया, सब ठीक है। विरोधी, देशद्रोही लोग अफवाह फैला रहे हैं।
कुछ लोग, जो कभी नहीं सुधरते, सोशल मीडिया पर बहस करे लागे। भई मजाक नहीं, हालात खराब हैं। तो देशभक्त कहां चूकते, जमकर रगड़ दिए, पहले नमक छिड़के, फिर बरनोल बरनोल चिल्लाए लागे!!
ट्यूसडे, कुछ और कंपनियां लोगन को निकाल दी, तब और अखबार ख़बर छाप दिया।
खबर आए लगी, लोग कच्छा पहनना कम कर दिए हैं, छेद वाले कच्छे बदल बदल पहिन रहे हैं।
खबर छपी कि चाय अकेली पड़ गयी है, बिस्कुट के भाव बढ़ गए हैं। 
लोग बिस्कुट खाये ही नहीं रहे, तो कंपनी की वाट लग गयी। 
बुधवार को परधान जी बयान दे दिए, रोजगार जाने की बात ऊ लोग कर रहा है, जिनका दलाली बंद हुआ है।
परधान की बात, पत्थर की लकीर। 
सारा आईटी कोश सक्रिय हो गया, शाम तक व्हाट्सएप, ट्विटर, फेसबुक सब जगह मंदी गायब हो गयी, ग्रोथ रेट आठ परसेंट पर पहुंच गई।
इतना शानदार ग्रोथ रेट देख टेलीविजन न्यूज वालों की सांस में सांस आयी। तय था कि अभी सबसे बड़ी खबर पाकिस्तान पर कुछ दिन रुका जाए।
सब ठीक चल रहा था। टीवी वाले पाकिस्तान की बैंड बजा रहे थे। अर्थव्यवस्था भी तेज तेज भाग रही थी।
गुरुवार को अपना सिक्का ही खोटा हो गया। जाने कौन सी पिनक में वो राजीव कुमार जी बहक गए। 
70 साल के सबसे विकट हालात,  लिक्विडीटी क्राइसिस, फाइनेंशिएल डिस्ट्रस्ट अल्ल बल्ल, न जाने क्या क्या कह दिए।
बात फैल गयी। चर्चा हुई लगी।
पर शुक्रवार को भी माहौल ठीक ही था। परधान जी, इंटरनेशनल मेगा शो किये। पॉजिटिव महौल रहा। बड़ी संख्या में बगुले पहुंचे। वही नारेबाजी। तुम हो तो सब है। मुमकिन है तो तुम हो। दी दी। जै जै। माता पिता की जै।
परधान को ये देख कर बड़ा मजा आता है, मां कसम। तब उनका चेहरा देख लेओ, बस। 
पर कितना भी पॉजिटिव रहो, कुछ न कुछ निगेटिव हो ही जाता है, शुक्रवार की शाम परधान की मंत्री लोग सामने आ गए। कहाँ है मंदी? सब बेकार की बात¡ हमारा घोड़ा, अमेरिका के घोड़े से तेज है। बात करते हो, नहीं तो। 
फिर झोले में से एक दो ठो…तीन चार रंगीन गोलियां निकाली, और दे दी। बूस्टर, अर्थव्यवस्था की दवा। टॉनिक। अब देखो, चेतक कितना भागता है।
टीवी, पर चले लगा। प्रहार। अबकी बार मंदी पर वार। परधान जी की सरकार¡¡ बोलो तारा रा रा। बोलो ता रा रा।
टीवी पर मंदी, सुबह राजीव कुमार के कहने पर आ तो गई। पर शाम को मंत्री के कहने पर दबे पांव खिसक ली।
बोलो ता रा रा। 
और फिर टीवी पहले की तरह चले लागा। आवाज आई। दूध मांगोगे, खीर दे देंगे। और कुछ मांगोगे, चीयर देंगे। पाकिस्तान मुर्दाबाद था। मुर्दाबाद है। मुर्दाबाद रहेगा। 
प्राइम टाइम के बुल्लेटिन खत्म हुऐ। 
अब निर्मल बाबा का एक छोटा सा कमर्शियल। बोलो ता रा रा।

मंदी

मंदी
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किसी नुक्कड़ में एक लड़के ने पूछा।
एक "पढ़े लिखे से दिखते", उम्रदराज शख्स से।
क्या मंदी आयी है?
पढ़े लिखे से दिखते शख्स ने ना में सिर हिलाया।
पर सुना है छंटनी हो रही है! फैक्टरियों में, युवा लड़के ने कहा।
पढ़े लिखे से दिखते शख्स ने कहा, देखते नहीं मैं ऑफिस जा रहा हूँ।

कश्मीर

सरकार : कश्मीर में सब सामान्य है।

मीडिया : सब सामान्य है। कश्मीर में अमन लौट रहा है।

तथ्य 1: कश्मीरी छात्र को दिल्ली से अपने घर अनंतनाग जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगानी पड़ी। कोर्ट ने इजाजत दी, पुलिस से सुरक्षा देने को कहा।

तथ्य 2: सीताराम येचुरी को अपनी पार्टी के नेता यूसुफ तरिगामी से मिलने श्रीनगर जाने के लिए सुप्रीम कोर्ट जाना पड़ा, कोर्ट ने इजाजत दी।

हकीकत : दो नागरिक दिल्ली से श्रीनगर नहीं जा सकते, सुप्रीम कोर्ट की इजाजत के बिना।

खबर जो जनता को बताई गई : कश्मीर में हालात सामान्य हैं। अमन लौट रहा है। लोग खुशी के मारे झूम रहे हैं। जश्न खत्म ही नहीं हो रहा। कश्मीर में विकास का पारावार नहीं रहेगा। रोजगार ही रोजगार होगा

वसीम बरेलवी साहब ने कहा है।
"वो झूठ बोल रहा था बड़े सलीके से
मैं एतबार न करता तो क्या करता"

सुना है, एक स्वर्ग है धरती पर...

सुना है, एक स्वर्ग है धरती पर...
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यूंही अचानक।
किसी विदेशी वेबसाइट पर स्क्रॉल करते हुए।
एक छोटी बच्ची की तस्वीर दिखी।
सफेद पट्टियों में लिपटा मासूम चेहरा।
कश्मीर की बच्ची, उन्नीस महीने की हिबा।
चेहरे पर, पैलेट का छर्रा लिए।
आंख के नीचे कहीं धंसा था , वो छर्रा।
ठीक उसी तरह जैसे एक अधेड़ कश्मीरी के दिल में टीस धंसी है।
जैसे माँ के मन में ख़ौफ का साया।
शाम तक बेटा क्यों नहीं लौटा?
कहीं मा..रा तो नहीं ग..!
नहीं नहीं, ओह तौबा!
ऊपरवाले रहम, मां बुदबुदाती है।
बहुत कुछ होता है सुबह से रात तक, उस स्वर्ग में।
पर किसे फर्क पड़ता है।
किसी अखबार में हिबा की चीख़ नहीं है।
अधेड़ कश्मीरी की टीस नहीं है।
न मां के ख़ौफ का जिक्र है।
मोटे मोटे अखबारों के पन्नों में, कहीं न था।
टीवी पर तो, उम्मीद ही न थी।
अखबार में लगातार लिखा जा रहा है, सब सामान्य है।
सरकारी बयान छपा था, अमन लौट रहा है।
टीवी की स्क्रीन पर लाल लाल सेब, सफेद बर्फ और डल लेक तैर रही थी।
पीछे एक हसीन वॉइस ओवर था।
कहा जा रहा था।
स्वर्ग में सब सामान्य है, अमन लौट रहा है।
★जितेंद्र भट्ट