सुना है, एक स्वर्ग है धरती पर...
सुना है, एक स्वर्ग है धरती पर...
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यूंही अचानक।
किसी विदेशी वेबसाइट पर स्क्रॉल करते हुए।
एक छोटी बच्ची की तस्वीर दिखी।
सफेद पट्टियों में लिपटा मासूम चेहरा।
कश्मीर की बच्ची, उन्नीस महीने की हिबा।
चेहरे पर, पैलेट का छर्रा लिए।
आंख के नीचे कहीं धंसा था , वो छर्रा।
ठीक उसी तरह जैसे एक अधेड़ कश्मीरी के दिल में टीस धंसी है।
जैसे माँ के मन में ख़ौफ का साया।
शाम तक बेटा क्यों नहीं लौटा?
कहीं मा..रा तो नहीं ग..!
नहीं नहीं, ओह तौबा!
ऊपरवाले रहम, मां बुदबुदाती है।
बहुत कुछ होता है सुबह से रात तक, उस स्वर्ग में।
पर किसे फर्क पड़ता है।
किसी अखबार में हिबा की चीख़ नहीं है।
अधेड़ कश्मीरी की टीस नहीं है।
न मां के ख़ौफ का जिक्र है।
मोटे मोटे अखबारों के पन्नों में, कहीं न था।
टीवी पर तो, उम्मीद ही न थी।
अखबार में लगातार लिखा जा रहा है, सब सामान्य है।
सरकारी बयान छपा था, अमन लौट रहा है।
टीवी की स्क्रीन पर लाल लाल सेब, सफेद बर्फ और डल लेक तैर रही थी।
पीछे एक हसीन वॉइस ओवर था।
कहा जा रहा था।
स्वर्ग में सब सामान्य है, अमन लौट रहा है।
★जितेंद्र भट्ट
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यूंही अचानक।
किसी विदेशी वेबसाइट पर स्क्रॉल करते हुए।
एक छोटी बच्ची की तस्वीर दिखी।
सफेद पट्टियों में लिपटा मासूम चेहरा।
कश्मीर की बच्ची, उन्नीस महीने की हिबा।
चेहरे पर, पैलेट का छर्रा लिए।
आंख के नीचे कहीं धंसा था , वो छर्रा।
ठीक उसी तरह जैसे एक अधेड़ कश्मीरी के दिल में टीस धंसी है।
जैसे माँ के मन में ख़ौफ का साया।
शाम तक बेटा क्यों नहीं लौटा?
कहीं मा..रा तो नहीं ग..!
नहीं नहीं, ओह तौबा!
ऊपरवाले रहम, मां बुदबुदाती है।
बहुत कुछ होता है सुबह से रात तक, उस स्वर्ग में।
पर किसे फर्क पड़ता है।
किसी अखबार में हिबा की चीख़ नहीं है।
अधेड़ कश्मीरी की टीस नहीं है।
न मां के ख़ौफ का जिक्र है।
मोटे मोटे अखबारों के पन्नों में, कहीं न था।
टीवी पर तो, उम्मीद ही न थी।
अखबार में लगातार लिखा जा रहा है, सब सामान्य है।
सरकारी बयान छपा था, अमन लौट रहा है।
टीवी की स्क्रीन पर लाल लाल सेब, सफेद बर्फ और डल लेक तैर रही थी।
पीछे एक हसीन वॉइस ओवर था।
कहा जा रहा था।
स्वर्ग में सब सामान्य है, अमन लौट रहा है।
★जितेंद्र भट्ट
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