हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Monday, September 30, 2019

ग्रेटा के सवालों के जवाब अनुत्तरित हैं...

"वी विल वॉचिंग यू"।
जब उस बच्ची ने ये बात कही, तो इन छोटे छोटे चार शब्दों की गहराई उसके चेहरे के हावभाव में साफ साफ पढ़ी जा सकती थी।

उम्र सोलह साल। बिल्कुल साधारण चेहरा। उसकी हर बात साधारण थी। रंग रूप। कपड़े। सुनहरे बाल;  और ये बाल चेहरे पर न बिखर जाएं, इसलिए इन्हें चोटी में इस तरह गूंथा गया था। जैसे किसी भी सामान्य से घर के ठीक सामने वाले दूसरे घर में रहने वाली शोभा, बबीता, जैनी या सबीना कस लेती है। 

चेहरे के हावभाव ऐसे थे, जैसे किसी बात ने उसे बत्तीस साल तक परेशान किया है। आंखे देखकर ऐसा लगता था, जैसे वो नमी से लबालब भरी हैं। जरा सा कुरेदने पर फौव्वारे सी बहने लगेंगी।

उसकी आवाज में गुस्सा था। पर उसने इसे उस सीमा तक संभाल लिया था, जिससे आवाज की शक्ल में गुस्सा जाहिर होने से बचा रहे। आंखों की नमी। गुस्से। गले की भर्राहट पर उसने पूरी तरह काबू कर लिया था।

वो फिर बुदबुदाई। सिर्फ तीन चार छोटे शब्द कहे, "ये सब बुरा है"। फिर उसने कहा, "उसे यहां नहीं होना चाहिए था। उसे क्लासरूम में होना चाहिए था। पर वो यहां बैठी है।"

उसने सही कहा। उसे किसी स्कूल की क्लासरूम में होना चाहिए था। लेकिन वो स्वीडन में अपने घर से एक नाव पर बैठकर समंदर के रास्ते अमेरिका चली आई थी। पर उसके ऐसा करने की बड़ी वजह थी। आज वो दुनिया के सबसे बड़े मंच से ताकतवर मुल्कों को चलाने वाले ताकतवर नेताओं को यही बताने आई थी।

फिर उसने कई छोटे छोटे शब्द जैसे एक सांस में कह दिए। "लोग कष्ट झेल रहे हैं। लोग मर रहे हैं। पूरा इको-सिस्टम धीरे धीरे खत्म हो रहा है।"

उसके दुनियाभर के शक्तिशाली नेताओं से मुखातिब होते हुए कहा, "हम सामूहिक विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं। लेकिन आप डॉलर और परियों की कहानियों की बात कर रहे हैं। आपको सिर्फ अपने देश के आर्थिक विकास की चिंता है।"

यहीं पर उसने, थोड़ा नाखुशी भरे लहजे में तीन शब्द कहे, "हाउ डेयर यू।"

उस सोलह साल की बच्ची की बातों में कई लोगों को साजिशों की बू आती रही। सबसे ताकतवर मुल्क के सबसे ताकतवर नेता डोनल्ड ट्रंप ने उस बच्ची पर तंज कसा। कुछ दूसरे लोगों ने इस बच्ची की बातों को लेफ्ट पार्टियों की साजिश के तौर पर भी देखा।

पर जब उसने 'हाउ डेयर यू' कहा, तो उसने उस खतरे की बात की, जो भविष्य में हमारे बेहद नजदीक आ गया है। उसने अपनी बातें कहने के लिए भाषण कला का सहारा नहीं लिया। उसकी बातों में फिक्शन नहीं, पूरा विज्ञान था। उसने पिछले तीस साल के दौरान हुई साइंटिफिक रिसर्च की बात की। पिछले तीस साल के दौरान हुए शोधों की तरफ देखने की सलाह दी। जिसे लगातार नजरअंदाज किया गया है।

क्लाइमेट चेंज को लेकर नासा की वेबसाइट में कुछ अहम लेख पड़े हुए हैं। इन लेखों के पीछे लंबी रिसर्च है। इन लेखों में कही गई, एक एक बात गंभीर है। चेतावनी सी लगती है। ये बातें डराती हैं।

बीसवीं शताब्दी में धरती का तापमान दो डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ चुका है। सुनने में दो डिग्री कम लग सकता है, लेकिन ये दो डिग्री धरती का संतुलन बिगाड़ रहा है। पिछली कई शताब्दियों का अध्ययन करने के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि ये मानव इतिहास की बेहद बेहद असामान्य घटना है।

लगातार हो रही रिसर्च के बाद वैज्ञानिक इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि आने वाले दशकों में ग्लोबल टेंपरेचर और बढ़ेगा। तापमान में इस बढ़ोतरी में सबसे बड़ी भागीदारी ग्रीन हाउस गैसों की होगी। हालत यही रही और हमने सबक नहीं लिया, तो वो सब होना निश्चित है; जिसका जिक्र उस सोलह साल की बच्ची ने किया था। उसने कहा था, हम 'सामूहिक विनाश' की तरफ बढ़ रहे हैं।

इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) का अनुमान है कि अगली शताब्दी में तापमान 2.5 से 10 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ सकता है। आईपीसीसी की बात को गंभीरता से लेने की सख्त जरुरत है। ये संस्था लगातार क्लामेट चेंज और इसके असर पर काम कर रही है। आईपीसीसी में अमेरिका सहित दुनियाभर के देशों के 1,300 वैज्ञानिक क्लाइमेट चेंज पर रिसर्च कर रहे हैं।

तापमान बढ़ने का हमारे समंदर और महासागरों पर क्या असर हुआ है? इसे समझिए। 1 जनवरी, 1993 से 27 मई 2019 यानी 25 साल में समंदर का पानी औसतन प्रति वर्ष 3.3 मिलिमीटर की रफ्तार से बढ़ रहा है।

सन 1880, जब से इंसान ने संमदर के स्तर को रिकॉर्ड करना शुरू किया है, तब से अब तक समंदर का पानी 8 इंच तक बढ़ चुका है।

वैज्ञानिकों के मुताबिक जिस रफ्तार से धरती का तापमान बढ़ रहा है, उससे ग्लेशियर और बर्फ बहुत तेजी से पिघल रही है। ये वैज्ञानिकों की खतरनाक भविष्यवाणी है। धरती का तापमान इसी तरह बढ़ता रहा, तो 2100 तक समंदर का स्तर एक से चार फीट तक बढ़ सकता है। इसके नतीजे बहुत खतरनाक हो सकते हैं। दुनिया के ऐसे कई इलाके समंदर के पानी में डूब सकते हैं, जो समंदर के बेहद करीब हैं।

वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग और क्लाइमेट चेंज के मिलेजुले नतीजे बहुत भयावह होंगे। अगले कुछ दशकों में तूफान बढ़ेंगे, और संमदर में उठने वाली हलचल धरती के कई हिस्सों में बाढ़ जैसे हालात पैदा कर देगी।

जब वो बच्ची पिछले तीस साल के विज्ञान शोधों की याद दिलाती है। तब उसका इशारा साफ है। वो कहना चाहती है कि हम अपने वैज्ञानिकों द्वारा की गई रिसर्च को नजरअंदाज क्यों कर रहे हैं? मसलन समंदर का पानी हर साल 3.3 मिलिमीटर की रफ्तार से ऊपर उठ रहा है। अगले 80 साल में समंदर का लेवल एक से चार फीट बढ़ जाएगा, और अनचाहे तूफानों से धरती के कई हिस्से बाढ़ में डूबने वाले हैं।

वो बच्ची सिर्फ इतना कहती है कि वैज्ञानिक चीख चीखकर बता रहे हैं, हम सामूहिक विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं।
 
ये धरती के बढ़ते तापमान का नतीजा है। नासा के ग्रेविटी रिकवरी एंड क्लाइमेट एक्सपेरिमेंट के डेटा बताते हैं कि ग्रीनलैंड में 1993 से 2016 के दौरान हर साल औसत 286 बिलियन टन बर्फ खत्म हो रही है। जबकि अंटार्कटिका में इसी अवधि के दौरान हर साल औसत 127 बिलियन टन बर्फ खत्म हो रही है। अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने का सिलसिला पिछले दशक में भयावह रुप से बढ़ा है। पिछले दशक में अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने की दर तीन गुना बढ़ गयी है।

सोलह साल की बच्ची इन्हीं खतरों का जिक्र कर रही है। उसकी आवाज में जो गुस्सा, जो डर है, जो खीझ है। वो आने वाली पीढ़ी के लिए है। वो पूछना चाहती है कि हम आने वाली पीढ़ी के लिए कौन सी दुनिया छोड़कर जाने वाले हैं।

सोलह साल की बच्ची, ग्रेटा थनबर्ग की तरफ लोग देख रहे हैं। उसे गौर से सुन रहे हैं। जिन खतरों का जिक्र ग्रेटा ने किया है। क्या उससे निपटने के लिए जरूरी कदम उठाने को हमारे मुल्क और नेता तैयार हैं? ये इस वक्त का सबसे बड़ा सवाल है।

फिलहाल सदी के इस सबसे बड़े सवाल के उत्तर नहीं हैं। न ही कोई नेता आगे बढ़कर ग्रेटा थनबर्ग के सवालों के उत्तर खोज लेने का भरोसा देता दिखता है। यही बात ग्रेटा थनबर्ग के गुस्से की वजह है। क्योंकि डॉलर और आर्थिक विकास प्राथमिकता में सबसे ऊपर हैं।

और आखिर में ग्रेटा अहम नहीं है। धरती अहम है। ग्रेटा अहम नहीं है। उसके सवाल अहम हैं। ग्रेटा अहम नहीं है। उसके सवालों के उत्तर मिले, ये अहम है। क्योंकि ग्रेटा जानती है, अगर अभी मुल्कों और उसके नेताओं ने खतरे से निपटने की तैयारी नहीं की। तो इसमें ग्रेटा थनबर्ग का भविष्य ही बर्बाद नहीं होगा।

उन करोड़ों बच्चों के भविष्य का सवाल है। जो भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, युगांडा, सीरिया, ईराक जैसे मुल्कों में ही नहीं रह रहे। बल्कि करोड़ों बच्चे अमेरिका, फ्रांस, ब्रिटेन, चीन, जर्मनी और पूरे यूरोप में रह रहे हैं।

ग्रेटा के सवालों का जवाब करोड़ों बच्चों को चाहिए। आज नहीं, तो कल। इन सवालों के जवाब तलाशने ही पड़ेंगे। क्यों न शुरुआत जल्द हो।

 

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home