मोदी के इंटरव्यू में बोलने का हुनर ज्यादा, जवाब कम मिले
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जिस इंटरव्यू को टीवी न्यूज चैनल्स ने ‘धमाकेदार इंटरव्यू’ बताया। जिसके लिए टेलीविजन
की स्क्रीन पर ‘2019 का सबसे बड़ा
धमाका’ लिखा गया। जिस
इंटरव्यू के लिए कहा गया कि वो ‘मोदी से पूछे जाने वाले सभी सवालों का जवाब’ है।
क्या वो इंटरव्यू ‘सबसे बड़ा धमाका’ था?
क्या नरेंद्र मोदी से पूछे जा रहे ‘सभी सवालों के जवाब’ इस इंटरव्यू से मिल गए हैं?
जिन पांच सात मुद्दों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 95 मिनट के इंटरव्यू
में जवाब दिए। उनमें पांच राज्यों में मिली चुनावी हार, महागठबंधन और इससे मोदी के
सामने पेश चुनौती, राम मंदिर के निर्माण का सवाल, राफेल डील पर कांग्रेस द्वारा
लगाए जा रहे आरोप, देश की सर्वोच्च संस्थाओं (सीबीआई, आरबीआई, ईडी) में छिड़ी जंग,
किसानों की कर्जमाफी का मुद्दा, सरकार की पाकिस्तान नीति, तीन तलाक और सबरीमाला मंदिर
में महिलाओं के प्रवेश से जुड़े सवाल अहम रहे।
सवालों के जवाब कम, बोलने का हुनर ज्यादा दिखा
एक दर्शक और पत्रकार के तौर पर मुझे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जवाबों में
साफगोई नहीं दिखी। एक राजनेता के तौर पर सवालों से बच निकलने की कला और वाकपटुता
का हुनर तो पूरे इंटरव्यू में दिखता है। चेहरे की हलचल, भावनाओं के उतार-चढ़ाव और
आवाज के आरोह-अवरोह से समां बंधता जरुर है। पर सवालों के असल जवाब नहीं मिलते।
इंटरव्यू में पूछे गए कुछ सवालों के जवाब में एक आदर्श स्थिति पर पहुंच जाने
की बातें हैं। पर देश के सामने मौजूद गंभीर मुद्दों को हल करने के लिए जैसे जवाब
की भारत देश के प्रधानमंत्री से उम्मीद थी, वो इंटरव्यू में नदारद लगा।
एक मित्र ने इंटरव्यू सुनने के बाद मजाकिया लहजे में कहा - प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक पत्रकार के सामने बैठकर भाषण दिया। उस वक्त इस बात को मैंने मजाक में ही लिया। पर अब सोच रहा हूं, तो लगता है - गलत क्या कहा?
सर्वोच्च नेता ने 5 राज्यों की हार की जिम्मेदारी क्यों नहीं ली?
इस ‘धमाकेदार इंटरव्यू’ की शुरुआत पांच राज्यों
में बीजेपी की हार के सवाल से हुई। मुझे सवाल अच्छा लगा। पहले सवाल में प्रधानमंत्री
ने बहुत चतुराई से बच निकलने की कोशिश की। दूसरा सवाल न पूछा जाता, तो
प्रधानमंत्री इसपर ज्यादा बोलने के मूड में नहीं थे। पर दूसरा सवाल फिर इसी पर
पूछा गया, तो उन्हें जवाब देना
पड़ा। सवाल अहम है, और 11 दिसंबर के बाद बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं से लगातार पूछा
जा रहा है।
एक लीडर के तौर पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को इस हार की जिम्मेदारी लेनी
चाहिए थी। जैसी सलाह उनकी सरकार में बड़े मंत्री और पार्टी के बड़े नेता नितिन
गडकरी भी दे चुके हैं। लेकिन प्रधानमंत्री ने हार की जिम्मेदारी नहीं ली। उन्होंने
हार का दूसरा विश्लेषण किया।
बीजेपी के सामान्य कार्यकर्ता और मोदी समर्थक इस सवाल के जवाब में 11 दिसंबर
के बाद से तीन बातें कहते आ रहे हैं। पहली बात, बीजेपी सिर्फ छत्तीसगढ़ में हारी।
दूसरी बात, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बीजेपी कुछ वोट से पीछे रह गई; कांग्रेस स्पष्ट बहुमत नहीं
पा सकी। और तीसरी बात, तेलंगाना और मिजोरम में बीजेपी मुख्य प्रतिद्वंदी नहीं थी,
वहां तो कांग्रेस हारी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच राज्यों में हार के सवाल पर वही तर्क पेश
किए, जो उनकी पार्टी के कार्यकर्ता और संबित पात्रा बार बार दोहरा रहे हैं।
मौत को गले लगाते किसान की कर्जमाफी ‘लॉलीपॉप’ है?
पत्रकार ने किसानों के कर्जमाफी को लेकर सवाल पूछा, तो प्रधानमंत्री ने कर्ज
माफी को ‘लॉलीपॉप’ बता दिया। ऐसे शब्दों को
लेकर पूछा जाना चाहिए कि क्या प्रधानमंत्री किसानों के प्रति संवेदनशील हैं?
सवाल पूछा जाना चाहिए था कि अगर कांग्रेस शासित राज्य मध्य प्रदेश, राजस्थान
और छत्तीसगढ़ में किसानों की कर्जमाफी लॉलीपॉप है, तो बीजेपी शासित राज्यों उत्तर
प्रदेश और महाराष्ट्र में भी ऐसा ही है क्या?
प्रधानमंत्री ने बेशक 55 महीने के दौरान अपनी सरकार द्वारा किसानों के लिए किए
गए अनगिनत काम गिनाए। पर पत्रकार के पूछने पर भी ये नहीं बताया कि इनका असर जमीन
पर क्यों नहीं दिख रहा?
अलबत्ता प्रधानमंत्री के पास 14 दिन पुरानी सरकार (मध्य प्रदेश, राजस्थान और
छत्तीसगढ़) के लिए सवाल थे। आरोपों की फेहरिस्त भी थी।
प्रधानमंत्री ने किसानों को लेकर आदर्श स्थिति की बात कही। उन्होंने कहा - कर्जमाफी कोई हल नहीं है, बात ये होनी चाहिए कि किसान कर्ज क्यों लेता है?
प्रधानमंत्री की बात में दम है, लेकिन उन्हें याद रखना चाहिए कि पांच साल में
चार महीने कम दिल्ली में उनकी सरकार है, और जो सवाल किसानों की हालत को लेकर वो
उठा रहे हैं उन्हें हल करने का जिम्मा उन्हीं के कांधों पर था।
धार्मिक आस्था बड़ी या संविधान के तहत मिले मूल अधिकार?
इस इंटरव्यू में जिस सवाल के जवाब ने सबसे ज्यादा मायूस किया, वो सवाल तीन तलाक और
सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे से जुड़ा था।
इस सवाल के जवाब में प्रधानमंत्री ने साफ कर दिया है कि उनकी सरकार और उनकी
पार्टी महिलाओं को धार्मिक खांचे में बांटकर न्याय करने की पक्षधर है। यानी
महिलाओं को अधिकार तो मिलेंगे, लेकिन हिंदू महिलाओं के अधिकार अलग होंगे, मुस्लिम
महिलाओं के अधिकार अलग।
पत्रकार ने पूछा था – “मोदीजी आप तीन तलाक के मुद्दे पर मुस्लिम महिलाओं के लिए खड़े हुए; लेकिन सबरीमला के मुद्दे पर आपकी पार्टी परपंरा, आस्था और रीति रिवाज की बातें करती है। एक समुदाय के लिए प्रोग्रेसिव सोच और दूसरे के लिए परंपरा वाली बातें क्यों?”
जवाब में प्रधानमंत्री ने तीन तलाक को मुस्लिम समुदाय की कुरिति बताया। उन्होंने
तीन तलाक पर अपनी सरकार के फैसले को जेंडर इक्वलिटी, सामाजिक न्याय और मुस्लिम
महिलाओं के अधिकार से जोड़ा। लेकिन सबरीमाला मंदिर के सवाल पर हिंदू महिलाओं के
अधिकार की जगह उन्होंने परंपराओं को तरजीह दी।
अपनी बातों को कहने के लिए प्रधानमंत्री ने जो तर्क पेश किया, वो सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों
की खंडपीठ की इकलौती महिला जज जस्टिस इंदु मल्होत्रा का तर्क था। प्रधानमंत्री ने जस्टिस
इंदु मल्होत्रा द्वारा लिखी बातों को पढ़ने की सलाह दी।
जिस वक्त प्रधानमंत्री सबरीमाला मामले में माइनॉरिटी जजमेंट का हवाला दे रहे
थे। उन्होंने चार जजों के बहुमत के फैसले को तवज्जो नहीं दी, जो जांच परखकर संविधान
की मूल भावना को ध्यान में रखकर लिखा गया था।
प्रधानमंत्री ने पूर्व चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के उन शब्दों पर ध्यान नहीं दिया। जो उन्होंने फैसले में लिखे हैं – “धर्म के नाम पर पुरुषवादी सोच ठीक नहीं है। उम्र के आधार पर मंदिर में प्रवेश से रोकना धर्म का अभिन्न हिस्सा नहीं है।“
प्रधानमंत्री ने माइनॉरिटी जजमेंट में लिखी बातों को पढ़ने का
अनुरोध किया, लेकिन बहुमत के फैसले में लिखी बातों को पूरी तरह नजरअंदाज किया।
मेरा कहना है कि संविधान की दुहाई देने वाले प्रधानमंत्री
को फैसले के इन शब्दों पर ध्यान देना चाहिए।
जहां सुप्रीम कोर्ट ने कहा – “संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत मंदिर में प्रवेश पर बैन सही नहीं है। संविधान पूजा में भेदभाव नहीं करता है।“
नोटबंदी मास्टर स्ट्रोक थी, परेशानी लोगों की नादानी से हुई!
नोटबंदी का फैसला विफल रहा, इस बात के कई पुख्ता सबूत हमारे सामने हैं। इसके
अर्थव्यवस्था पर गलत प्रभावों के बारे में देश विदेश के अर्थशास्त्री बातें कर रहे
हैं। पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इसे अभी भी मास्टर स्ट्रोक मान रहे हैं।
अच्छा होता, प्रधानमंत्री बड़प्पन दिखाते और इस खराब नीति के लिए देश से माफी
मांग लेते। पर उन्होंने नोटबंदी के दौरान हुई मुश्किलों की पूरी जिम्मेदारी देश की
जनता पर डाल दी।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस इंटरव्यू में कहा, ''नोटबंदी कोई झटका नहीं था। हमने लोगों को पहले ही चेता दिया था कि अगर आपके पास काला धन है, तो आप इसे बैंक में जमा कर दें। आप जुर्माना दें और आपकी मदद की जाएगी, हालांकि लोगों को लगा कि मोदी भी औरों की तरह कह रहे हैं; इसीलिए बहुत कम लोग स्वेच्छा से आगे आए।“
नोटबंदी पर प्रधानमंत्री
की बात बिल्कुल साफ है। शायद वो कहना चाहते हैं कि उन्होंने पहले ही लोगों को
चेतावनी दी थी, लेकिन लोग माने नहीं। अगर माने नहीं, तो फिर जो झेला, जो परेशानी हुई; वो उसके हकदार
थे, क्योंकि लोग इशारों को समझे ही नहीं।
उर्जित पटेल और रिजर्व बैंक पर सवालों के जवाब नहीं मिले?
रिजर्व बैंक में बवाल के
बाद गवर्नर उर्जित पटेल के इस्तीफे पर उठ रहे सवालों को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी
ने इस तरह अपने जवाब से साफ करने की कोशिश की, मानो रिजर्व बैंक में कुछ हुआ ही
नहीं था।
प्रधानमंत्री ने कहा, ''उर्जित पटेल ने निजी कारणों के चलते इस्तीफा दिया था। मैं यह पहली बार बता रहा हूं, लेकिन उन्होंने अपने इस्तीफे के बारे में मुझे 6-7 महीने पहले ही बता दिया था। साथ ही उन्होंने मुझे इस्तीफे की बात लिखित में भी दी थी। इस मामले पर राजनीतिक दबाव का सवाल ही नहीं उठता।“
अगर ऐसी बात है, तो
प्रधानमंत्री को इस सवाल का जवाब जरुर देना चाहिए कि एक ऐसा शख्स जो 6-7 महीने से
इस्तीफे के बारे में सोच रहा था, अचानक वित्त मंत्रालय और पूरी सरकार से क्यों
टकराया?
सर्जिकल स्ट्राइक का सवाल और देशभक्ति का पुराना तराना
और अंत में सर्जिकल
स्ट्राइक के सवाल पर प्रधानमंत्री की वाकपटुता की पूरी झलक दिखी। सर्जिकल स्ट्राइक
के मुद्दे पर पूछे गए दो सवालों के जवाब देने के लिए प्रधानमंत्री ने पूरे दस मिनट
लिए।
प्रधानमंत्री ने अपने
इंटरव्यू में दो साल से भी ज्यादा पुरानी घटना पर दस फीसदी से ज्यादा वक्त दिया। जबकि
तीन तलाक और सबरीमाला पर प्रधानमंत्री का जवाब दो से तीन मिनट में निपटा। उर्जित
पटेल और रिजर्व बैंक पर सवाल का जवाब बमुश्किल दो मिनट के अंदर खत्म हुआ। इससे साफ
है कि चुनाव से ठीक पहले नरेंद्र मोदी की प्राथमिकताएं क्या हैं?
इन दस मिनट के दौरान
नरेंद्र मोदी के चेहरे पर हर भाव को आप महसूस कर सकते हैं। वो भावुक हुए। वो
मुस्कराए। भर्राई आवाज में हल्का हंसे। ऐसा लगा जैसे आंखें नम होने को हैं। उन्होंने
रहस्यमयी अंदाज में 28-29 सितंबर 2016 के सर्जिकल स्ट्राइक की पूरी दास्तान सुनाई।
नरेंद्र मोदी ने बताया कि
वो उस दिन कितना बेचैन थे। अपनी बेचैनी उन्होंने इस तरह बयान की, कि सुनने वाला
बेचैन हो जाए।
पर दस मिनट की किस्सागोई
सुनने के बाद पत्रकार ने अच्छा सवाल पूछा। सर्जिकल स्ट्राइक का असर क्या हुआ? पाकिस्तान तो वही
हरकतें कर रहा है, जो वो कर रहा था।
यहां मोदीजी दार्शनिक
अंदाज में बोले।
जवाब दिया – “पाकिस्तान एक लड़ाई से नहीं सुधरेगा। ये सोचना बड़ी गलती होगी कि पाकिस्तान एक लड़ाई से सुधर जाएगा।“
इशारा साफ है, इंतजार
कीजिए, और जंगों का।
किसान का एक बेटा खेत में
सुसाइड करेगा, और दूसरा बेटा सरहद पर मारा जाएगा।
और लेख के आखिर में ऊपर लिखी दो लाइन दोहराना चाहूंगा। चेहरे की हलचल, भावनाओं
के उतार-चढ़ाव और आवाज के आरोह-अवरोह से समां बंधता जरुर है। पर सवालों के असल
जवाब नहीं मिलते।
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