झाड़ू के साथ तस्वीरें खिंचवाना, सफाईकर्मियों के साथ अश्लील मजाक है!
दिल्ली के पहाड़गंज इलाके में स्थित ‘बाबा साहेब अंबेडकर उच्च माध्यमिक विद्यालय’ में एक साफ-सुथरे लंबे झाड़ू की व्यवस्था की गई थी। वहां फावड़ा था। प्रधानमंत्री के पहुंचने से पहले मौका-ए-वारदात पर ‘स्वच्छ भारत मिशन’ के नारों वाली शर्ट पहने लोग मौजूद थे। कुछ अफसरनुमा लोग घूमते दिखे।
देशभर के टीवी चैनल्स को भी पता था कि 15 सितंबर की उस सुबह प्रधानमंत्री इस स्कूल में आकर झाड़ू उठाएंगे। प्रधानमंत्री के आने से पहले स्कूल के टीचर्स ने भी खास तैयारी जरुर की होगी। सरकारी स्कूल के चुनिंदा बच्चों को प्रधानमंत्री के सामने तैयारी के साथ खड़ा किया गया था। तस्वीरें देखकर इसका आभास मिल रहा है।
प्रधानमंत्री अचानक 15 सितंबर की सुबह सीधे इस स्कूल में तो पहुंच नहीं गए होंगे? ऐसा मन में सवाल उठ रहा है। जाहिर है उनका पहले से तय कार्यक्रम होगा। इसलिए सुरक्षा के सभी प्रोटोकॉल का पालन भी किया गया होगा। यानी प्रधानमंत्री की सुरक्षा के मद्देनजर ‘बाबा साहेब अंबेडकर उच्च माध्यमिक विद्यालय’ की पहले से जांच और निगरानी की गई होगी।
अजीब-अजीब से सवाल मन में उमड़ घुमड़ रहे हैं। इनमें से एक ये है कि इतने जबर्दस्त इंतजाम किए गए, तो कूड़ा साफ क्यों नहीं किया गया? बाबा साहेब अंबेडकर उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रधानमंत्री के साफ करने लायक कूड़ा क्यों छोड़ा गया?
एक और सवाल है, प्रधानमंत्री को कैसे पता चला कि कूड़ा अंबेडकर की मूर्ति के बगल में लगे शिलापट के इर्द-गिर्द बिखेरा गया है?
शायद ‘बाबा साहेब अंबेडकर उच्च माध्यमिक विद्यालय’ के टीचर्स ने बताया होगा? पर सवाल ये है कि अगर टीचर्स को पता था कि कूड़ा शिलापट के पास है, तो भला उन्होंने इसे साफ क्यों नहीं किया? क्या सोचकर सीमित मात्रा में कूड़े को वहीं पड़े रहने दिया गया?
खैर छोड़िए। उस तस्वीर पर लौटते हैं, जो 15 सितंबर को सुबह से रात तक टीवी न्यूज चैनल्स में छाई रही।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे झाड़ू से हरी घास के बीच छिपे कूड़े को निकालने की भरपूर कोशिश की। उन्होंने पूरे तीस बार (संख्या एक दो कम या एक दो ज्यादा हो सकती है!) झाड़ू को आगे पीछे घुमाया। पर ये कूड़ा जिद्दी निकला। हरी घास से बाहर आने को तैयार नहीं हुआ। सो जब कूड़े ने अपनी जगह नहीं छोड़ी, तब प्रधानमंत्री को कूड़ा अपने हाथों से उठाना पड़ा।
प्रधानमंत्री ने कूड़ा उठाया, तभी एक अधिकारी (कन्फर्म नहीं, पर शायद वो अधिकारी था!!) दौड़कर प्रधानमंत्री के करीब पहुंच गया। प्रधानमंत्री के हाथों से कूड़ा अपने हाथों में लेकर अधिकारी ने सीने से चिपका लिया। ऐसा तस्वीरों में दिखा। ये अफसर कूड़े को सीने से लगाए झटपट कैमरे के फ्रेम से बाहर आ गया। शायद वो कूड़ा लेकर कूड़ेदान की तरफ दौड़ा था।
झाड़ू के बाद प्रधानमंत्री ने फावड़ा उठाया। ठीक उस वक्त जब प्रधानमंत्री झाडू। छोड़ने की तैयारी में थे, वहां उनके हाथों से झाड़ू थामने के लिए तीन अफसरों ने हाथ आगे बढ़ा दिए। अंतत: एक ने झाड़ू पकड़ लिया। और फिर कैमरा अफसर को फ्रेम से बाहर करता हुआ, वापस प्रधानमंत्री और फावड़े पर आकर टिक गया।
ठीक सामने बाबा साहेब अंबेडकर की मूर्ति चुपचाप सफाई अभियान के हर दृश्य और हर कार्रवाई को देखे जा रही थी।
सफाई अभियान का ये कार्यक्रम यहीं नहीं रुका। दिनभर न्यूज चैनलों में केंद्र सरकार के मंत्रियों, बीजेपी के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों की तस्वीरें दिखती रहीं। हाथों में शानदार दस्ताने, मुंह पर मास्क और बदन पर ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के नारे लिखी टीशर्ट पहने लोग झाड़ू को आड़ा तिरछा घूमाते रहे। इससे कितना कूड़ा साफ हुआ? कितनी गंदगी बाहर निकली? राम जाने!
पर इन तस्वीरों को देखकर दिमाग में कुछ सवाल और मन में गहरा दुख उतर गया है। सफाई अभियान की सहेज कर रखे जाने योग्य इन शानदार तस्वीरों को देखकर; कुछ ‘बदबूदार’ तस्वीरें जेहन में ताजा हो रही हैं।
मेरे, हमारे और हम सबके टॉयलेट से होते हुए सीवर में जमा गंदगी को साफ करते सफाई कर्मचारियों की तस्वीरें। वहां हाथों में न दस्ताने हैं, न मुंह पर मास्क, न पैरों में जूते और न बदन पर टंगे कपड़े पर ‘स्वच्छ भारत मिशन’ का नारा लिखा है।
ऐसे वक्त जब हम पूरे जोश और जज्बे के साथ प्रधानमंत्री के सफाई अभियान के ‘वीर जवान’ बन गए हैं। हमें अपना और सरकार का ध्यान उन तस्वीरों की तरफ धकेलना चाहिए; जिन्हें देखकर “विश्व गुरु” को शर्म आ सकती है।
‘द वायर’ में ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के संयोजक बेज़वाड़ा विल्सन के हवाले से दो जुलाई के दिन एक रिपोर्ट छपी। इस रिपोर्ट को पढ़ेंगे, तो लगेगा कि सफाई अभियान के नाम पर देशभर में फूहड़ता का घिनौना प्रदर्शन हो रहा है। और देशभर के सफाई कर्मचारियों के साथ देश का एलीट क्लास एक भद्दा मजाक कर रहा है।
इस रिपोर्ट में लिखा है– “सफाई कर्मचारी आंदोलन के अगस्त 2017 के अध्ययन के मुताबिक मैला ढोने वाले श्रमिकों की पांच सालों में 1,470 मौतें हुई हैं। इस अवधि में सिर्फ दिल्ली में 74 सफाइकर्मियों की मौत हुई।”
इसी लेख के अगले हिस्से में मैगसेसे पुरस्कार विजेता बेज़वाड़ा विल्सन के हवाले से चौंकाने वाली बात बताई गई है – “इस साल अप्रैल से जुलाई के बीच पूरे देश में 54 सफाईकर्मियों की मौत हुई।”
अगर इन चार-पांच लाइनों में दर्ज बातों को पढ़कर भी आपको नेताओं के हाथों में झाड़ू वाली तस्वीरें लुभाती हैं; आपको बेचैनी नहीं होती और ऐसी तस्वीरें आपको वल्गर नहीं दिखती हैं। तो फिर आपको सामान्य गणित के एक आंकड़े के बारे में जोर देकर सोचना चाहिए।
‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के मुताबिक पांच साल के दौरान 1,470 सफाई कर्मचारी सीवर और सेफ्टिक टैंक की सफाई करते-करते मारे गए। यानी औसतन हर साल 294 सफाई कर्मचारियों की मौत सीवर या सेफ्टिक टैंक के अंदर हुई।
साल के 52 रविवार और त्योहारों की सरकारी छुट्टियों को हटा दें, तो हर वर्किंग डे पर कम से कम एक सफाई कर्मचारी ने देश की गंदगी साफ करते हुए शहादत दे दी।
सवाल पूछना पड़ेगा कि सरकार ने सफाई कर्मचारियों के लिए क्या किया? वो भी तब जब सिर्फ दिल्ली में पिछले पांच साल के दौरान औसतन हर साल 15 सफाई कर्मचारियों की मौत सीवर के अंदर सफाई करते वक्त हो रही है।
ये वही दिल्ली है, जहां इस वक्त सफाई अभियान के सबसे बड़े चेहरे नरेंद्र मोदी की हुकूमत चलती है।
ध्यान रखने वाली बात ये भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे बड़े कैंपेन में से एक ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को अगले महीने चार साल पूरे होने वाले हैं।
तो हिसाब लगाना पड़ेगा कि इस अभियान से क्या मिला है?
ऐसे सवाल इसलिए भी जरुरी हैं, क्योंकि ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के मुताबिक इस साल अप्रैल से जुलाई के बीच पूरे देश में 54 सफाईकर्मियों की मौत हुई।
चार महीने में 54 सफाईकर्मियों की मौत। यानी हर महीने औसतन 14 सफाई कर्मियों की मौत। हर दूसरे दिन एक सफाईकर्मी सीवर, सेफ्टिक टैंक साफ करते हुए मर रहा है।
अगर स्वच्छ भारत अभियान सफाईकर्मियों की मौतों से उपजे सवालों के जवाब नहीं दे पा रहा है; तो माफ कीजिए प्रधानमंत्री जी, कहना पड़ेगा – हाथों में झाड़ू के साथ तस्वीरें खिंचाना देश के लाखों सफाईकर्मियों के साथ अश्लील मजाक है।
देशभर के टीवी चैनल्स को भी पता था कि 15 सितंबर की उस सुबह प्रधानमंत्री इस स्कूल में आकर झाड़ू उठाएंगे। प्रधानमंत्री के आने से पहले स्कूल के टीचर्स ने भी खास तैयारी जरुर की होगी। सरकारी स्कूल के चुनिंदा बच्चों को प्रधानमंत्री के सामने तैयारी के साथ खड़ा किया गया था। तस्वीरें देखकर इसका आभास मिल रहा है।
प्रधानमंत्री अचानक 15 सितंबर की सुबह सीधे इस स्कूल में तो पहुंच नहीं गए होंगे? ऐसा मन में सवाल उठ रहा है। जाहिर है उनका पहले से तय कार्यक्रम होगा। इसलिए सुरक्षा के सभी प्रोटोकॉल का पालन भी किया गया होगा। यानी प्रधानमंत्री की सुरक्षा के मद्देनजर ‘बाबा साहेब अंबेडकर उच्च माध्यमिक विद्यालय’ की पहले से जांच और निगरानी की गई होगी।
अजीब-अजीब से सवाल मन में उमड़ घुमड़ रहे हैं। इनमें से एक ये है कि इतने जबर्दस्त इंतजाम किए गए, तो कूड़ा साफ क्यों नहीं किया गया? बाबा साहेब अंबेडकर उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्रधानमंत्री के साफ करने लायक कूड़ा क्यों छोड़ा गया?
एक और सवाल है, प्रधानमंत्री को कैसे पता चला कि कूड़ा अंबेडकर की मूर्ति के बगल में लगे शिलापट के इर्द-गिर्द बिखेरा गया है?
शायद ‘बाबा साहेब अंबेडकर उच्च माध्यमिक विद्यालय’ के टीचर्स ने बताया होगा? पर सवाल ये है कि अगर टीचर्स को पता था कि कूड़ा शिलापट के पास है, तो भला उन्होंने इसे साफ क्यों नहीं किया? क्या सोचकर सीमित मात्रा में कूड़े को वहीं पड़े रहने दिया गया?
खैर छोड़िए। उस तस्वीर पर लौटते हैं, जो 15 सितंबर को सुबह से रात तक टीवी न्यूज चैनल्स में छाई रही।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लंबे झाड़ू से हरी घास के बीच छिपे कूड़े को निकालने की भरपूर कोशिश की। उन्होंने पूरे तीस बार (संख्या एक दो कम या एक दो ज्यादा हो सकती है!) झाड़ू को आगे पीछे घुमाया। पर ये कूड़ा जिद्दी निकला। हरी घास से बाहर आने को तैयार नहीं हुआ। सो जब कूड़े ने अपनी जगह नहीं छोड़ी, तब प्रधानमंत्री को कूड़ा अपने हाथों से उठाना पड़ा।
प्रधानमंत्री ने कूड़ा उठाया, तभी एक अधिकारी (कन्फर्म नहीं, पर शायद वो अधिकारी था!!) दौड़कर प्रधानमंत्री के करीब पहुंच गया। प्रधानमंत्री के हाथों से कूड़ा अपने हाथों में लेकर अधिकारी ने सीने से चिपका लिया। ऐसा तस्वीरों में दिखा। ये अफसर कूड़े को सीने से लगाए झटपट कैमरे के फ्रेम से बाहर आ गया। शायद वो कूड़ा लेकर कूड़ेदान की तरफ दौड़ा था।
झाड़ू के बाद प्रधानमंत्री ने फावड़ा उठाया। ठीक उस वक्त जब प्रधानमंत्री झाडू। छोड़ने की तैयारी में थे, वहां उनके हाथों से झाड़ू थामने के लिए तीन अफसरों ने हाथ आगे बढ़ा दिए। अंतत: एक ने झाड़ू पकड़ लिया। और फिर कैमरा अफसर को फ्रेम से बाहर करता हुआ, वापस प्रधानमंत्री और फावड़े पर आकर टिक गया।
ठीक सामने बाबा साहेब अंबेडकर की मूर्ति चुपचाप सफाई अभियान के हर दृश्य और हर कार्रवाई को देखे जा रही थी।
सफाई अभियान का ये कार्यक्रम यहीं नहीं रुका। दिनभर न्यूज चैनलों में केंद्र सरकार के मंत्रियों, बीजेपी के नेताओं, कार्यकर्ताओं और समर्थकों की तस्वीरें दिखती रहीं। हाथों में शानदार दस्ताने, मुंह पर मास्क और बदन पर ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के नारे लिखी टीशर्ट पहने लोग झाड़ू को आड़ा तिरछा घूमाते रहे। इससे कितना कूड़ा साफ हुआ? कितनी गंदगी बाहर निकली? राम जाने!
पर इन तस्वीरों को देखकर दिमाग में कुछ सवाल और मन में गहरा दुख उतर गया है। सफाई अभियान की सहेज कर रखे जाने योग्य इन शानदार तस्वीरों को देखकर; कुछ ‘बदबूदार’ तस्वीरें जेहन में ताजा हो रही हैं।
मेरे, हमारे और हम सबके टॉयलेट से होते हुए सीवर में जमा गंदगी को साफ करते सफाई कर्मचारियों की तस्वीरें। वहां हाथों में न दस्ताने हैं, न मुंह पर मास्क, न पैरों में जूते और न बदन पर टंगे कपड़े पर ‘स्वच्छ भारत मिशन’ का नारा लिखा है।
ऐसे वक्त जब हम पूरे जोश और जज्बे के साथ प्रधानमंत्री के सफाई अभियान के ‘वीर जवान’ बन गए हैं। हमें अपना और सरकार का ध्यान उन तस्वीरों की तरफ धकेलना चाहिए; जिन्हें देखकर “विश्व गुरु” को शर्म आ सकती है।
‘द वायर’ में ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के संयोजक बेज़वाड़ा विल्सन के हवाले से दो जुलाई के दिन एक रिपोर्ट छपी। इस रिपोर्ट को पढ़ेंगे, तो लगेगा कि सफाई अभियान के नाम पर देशभर में फूहड़ता का घिनौना प्रदर्शन हो रहा है। और देशभर के सफाई कर्मचारियों के साथ देश का एलीट क्लास एक भद्दा मजाक कर रहा है।
इस रिपोर्ट में लिखा है– “सफाई कर्मचारी आंदोलन के अगस्त 2017 के अध्ययन के मुताबिक मैला ढोने वाले श्रमिकों की पांच सालों में 1,470 मौतें हुई हैं। इस अवधि में सिर्फ दिल्ली में 74 सफाइकर्मियों की मौत हुई।”
इसी लेख के अगले हिस्से में मैगसेसे पुरस्कार विजेता बेज़वाड़ा विल्सन के हवाले से चौंकाने वाली बात बताई गई है – “इस साल अप्रैल से जुलाई के बीच पूरे देश में 54 सफाईकर्मियों की मौत हुई।”
अगर इन चार-पांच लाइनों में दर्ज बातों को पढ़कर भी आपको नेताओं के हाथों में झाड़ू वाली तस्वीरें लुभाती हैं; आपको बेचैनी नहीं होती और ऐसी तस्वीरें आपको वल्गर नहीं दिखती हैं। तो फिर आपको सामान्य गणित के एक आंकड़े के बारे में जोर देकर सोचना चाहिए।
‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के मुताबिक पांच साल के दौरान 1,470 सफाई कर्मचारी सीवर और सेफ्टिक टैंक की सफाई करते-करते मारे गए। यानी औसतन हर साल 294 सफाई कर्मचारियों की मौत सीवर या सेफ्टिक टैंक के अंदर हुई।
साल के 52 रविवार और त्योहारों की सरकारी छुट्टियों को हटा दें, तो हर वर्किंग डे पर कम से कम एक सफाई कर्मचारी ने देश की गंदगी साफ करते हुए शहादत दे दी।
सवाल पूछना पड़ेगा कि सरकार ने सफाई कर्मचारियों के लिए क्या किया? वो भी तब जब सिर्फ दिल्ली में पिछले पांच साल के दौरान औसतन हर साल 15 सफाई कर्मचारियों की मौत सीवर के अंदर सफाई करते वक्त हो रही है।
ये वही दिल्ली है, जहां इस वक्त सफाई अभियान के सबसे बड़े चेहरे नरेंद्र मोदी की हुकूमत चलती है।
ध्यान रखने वाली बात ये भी है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सबसे बड़े कैंपेन में से एक ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को अगले महीने चार साल पूरे होने वाले हैं।
तो हिसाब लगाना पड़ेगा कि इस अभियान से क्या मिला है?
ऐसे सवाल इसलिए भी जरुरी हैं, क्योंकि ‘सफाई कर्मचारी आंदोलन’ के मुताबिक इस साल अप्रैल से जुलाई के बीच पूरे देश में 54 सफाईकर्मियों की मौत हुई।
चार महीने में 54 सफाईकर्मियों की मौत। यानी हर महीने औसतन 14 सफाई कर्मियों की मौत। हर दूसरे दिन एक सफाईकर्मी सीवर, सेफ्टिक टैंक साफ करते हुए मर रहा है।
अगर स्वच्छ भारत अभियान सफाईकर्मियों की मौतों से उपजे सवालों के जवाब नहीं दे पा रहा है; तो माफ कीजिए प्रधानमंत्री जी, कहना पड़ेगा – हाथों में झाड़ू के साथ तस्वीरें खिंचाना देश के लाखों सफाईकर्मियों के साथ अश्लील मजाक है।
1 Comments:
वैसे भी सफाई आदि कार्यों के लिए पीएम अथवा अन्य मंत्रियों की ज़रूरत नहीं. उनका काम तो बस प्रेरित करना या माहौल बनाने तक ही है. अगर प्रधानमंत्री और अन्य मंत्री सफाई या अन्य कामों की समस्याएं नहीं देख पा रहे हैं तो यह उनकी बहुत बड़ी विफलता है. देश में किसानों का मरना, सफाई वालों का मरना आदि इस बात का संकेत है कि नीतियों में कमी है.बेहतर होता सरकार ऐसी व्यवस्था बनाती कि लोग खुद काम के लिए प्रेरित होते और पीएम को सड़क पर निकलने की आवश्यकता ही नहीं होती.
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