क्या डॉलर के मुकाबले 80 तक पहुंच जाएगा रुपया?
इस साल सबसे ज्यादा परेशान
करने वाली आर्थिक घटनाओं में रुपये का गिरना भी है। लेकिन खबरों में इसने उतनी जगह
नहीं पाई, जितनी इसे मिलनी चाहिए थी।
करेंसी बाजार में डॉलर के
मुकाबले रुपये की कीमत का ऊपर नीचे होना एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। लेकिन यह तब
अस्वाभाविक हो जाता है, जब रुपया लगातार गिर रहा हो।
रुपये का डॉलर के मुकाबले
71 रुपये के करीब पहुंच जाने के क्या मायने हो सकते हैं?
इसे आंकड़ों की नजर से ही
समझिए। इस साल के शुरुआती 8 महीने में रुपए की कीमत डॉलर के मुकाबले 7.345 रुपये
गिर चुकी है। 1 जनवरी 2018 को रुपया 63.68 के लेवल पर था, जबकि 31 अगस्त को एक डॉलर
71.005 रुपये का हो गया।
सिर्फ अगस्त के महीने में
रुपया डॉलर के मुकाबले 2.50 रुपये गिरा।
रुपये की कीमत का लगातार घटना अच्छी बात नहीं
डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत सीधे 71 के दायरे में नहीं पहुंची है।जनवरी में रुपया 63 और 64 के करीब घूम रहा था। फरवरी और मार्च में रुपया 63 से 65 के बीच घूमता रहा। अप्रैल में रुपया गिरा, और 65 से 66 के बीच आ गया। मई में रुपया 66 के ऊपर पहुंचा और 66 से 68 के बीच कारोबार करता रहा। जून में ज्यादातर दिन रुपया 67 से ऊपर रहा। जुलाई में 68 के ऊपर आ गया; और अगस्त में रुपया 68 को पार करते हुए रोज नए रिकॉर्ड बनाकर 71 के पार चला गया।
डॉलर के मुकाबले रुपये का
गिरते जाने का यह ट्रेंड खतरनाक है। रुपया एक गहरे ढालान की तरफ फिसल रहा है। इस
साल के शुरुआती आठ महीने में डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत करीब साढ़े सात रुपया
गिरी। इस साल के आठ महीने में रुपया 11.53 फीसदी गिरा है।
डॉलर के मुकाबले रुपया 80 तक गिर सकता है !
चिंता इसी सवाल में छिपी
है। फैक्टर एलएलसी के सीईओ पीटर ब्रैंड ने टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए एक इंटरव्यू
में जो बात कही, वो बेहद परेशान करने वाली है। अगस्त के बीच में दिए गए इस इंटरव्यू में पीटर
ब्रैंड ने डॉलर के मुकाबले गिरते रुपये को लेकर अपना आंकलन सामने रखा था। पीटर
ब्रैंड ने कहा कि अगर रुपया 71 तक गिर सकता है, तो चार से छह महीने में यह 80 तक
भी जा सकता है। ध्यान दीजिए, जिस वक्त पीटर ब्रैंड ने ये इंटरव्यू दिया, तब रुपया 69 और
70 के दायरे में था।
सरकार के खजाने पर गिरते रुपये का इफेक्ट
डॉलर के मुकाबले भारतीय
करेंसी में हर गिरावट का सरकार के खजाने पर भारी असर पड़ता है। खासतौर से इंपोर्ट
पर आधारित भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए रुपये का कमजोर होना बड़ी परेशानी की बात
है। डॉलर के मुकाबले भारतीय करेंसी में एक रुपये की गिरावट के क्या मायने हैं? इसे समझते हैं।
पेट्रोलियम प्लानिंग एंड एनालिसिस
सेल की वेबसाइट www.ppac.org.in के प्रोविजनल आंकड़ों के
मुताबिक 2017-18 में भारत ने 66,305 मिलियन डॉलर के पेट्रोलियम
प्रोडक्ट इंपोर्ट किए। समझने के लिए इसे आसान बनाते हैं। भारत ने 6,630.50 करोड़ डॉलर के पेट्रोलियम प्रोडक्ट इंपोर्ट किए।
इसका सीधा मतलब है कि डॉलर
के मुकाबले भारतीय करेंसी में एक रुपये की गिरावट आ जाए, तो इससे पेट्रोलियम
प्रोडक्ट के इंपोर्ट पर देश को 6630.5 करोड़ रुपये ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे।
रुपये का कमजोर होना सिर्फ
पेट्रोलियम प्रोडक्ट तक सीमित नहीं है। भारत सालाना करीब 450 बिलियन डॉलर का
इंपोर्ट करता है। यानी 45,000 करोड़ डॉलर का इंपोर्ट। ऐसे हालात में डॉलर के
मुकाबले भारतीय करेंसी की कीमत में एक रुपये की गिरावट का मतलब है सरकार के खजाने
को 45,000 करोड़ रुपये का नुकसान। पिछले चार साल के दौरान भारत का इंपोर्ट पर खर्च
देखिए।
साल
|
2014
|
2015
|
2016
|
2017
|
बिलियन डॉलर
|
462.91
|
392.87
|
361.21
|
447.24
|
करोड़ डॉलर
|
46,291
|
39,287
|
39,287
|
44,724
|
Source: www.statista.com
|
रुपये का हाल : मनमोहन सिंह VS नरेंद्र मोदी
मोदी सरकार अर्थव्यवस्था के
मजबूत होते जाने के कई दावे कर रही है। इन दावों के बीच मनमोहन सिंह और नरेंद्र
मोदी सरकार के दौरान रुपये में गिरावट का एक दिलचस्प आंकड़े पर गौर करिए।
यूपीए-2 में रुपये का हाल
|
|
22/05/2009
|
46.830
|
26/05/2014
|
58.715
|
गिरावट
|
11.885 (25.37%)
|
पहले यूपीए-2 की बात करते हैं। 22 मई 2009 को
जब यूपीए-2 सत्ता में आई। डॉलर के मुकाबले रुपया 46.830 के स्तर पर था। यूपीए-2 सरकार 26 मई 2014 तक रही। इस दिन रुपया 58.715 के स्तर पर था। इस तरह यूपीए-2
में रुपया करीब 11.885 गिरा। यूपीए-2 के पांच साल के कार्यकाल में डॉलर के
मुकाबले रुपया करीब 25.37 फीसदी नीचे गिरा।
|
एनडीए में रुपये का हाल
|
|
26/05/2014
|
58.715
|
31/08/2018
|
71.005
|
गिरावट
|
12.29 (20.93%)
|
मोदी सरकार के कार्यकाल में
डॉलर के मुकाबले रुपये का क्या हाल रहा, इसपर नजर डालते हैं। जिस दिन नरेंद्र मोदी ने
सत्ता संभाली उस दिन डॉलर के मुकाबले रुपया 58.715 के स्तर पर था। 4 साल 3 महीने बाद 31 अगस्त 2018 के दिन रुपया 71.005 के स्तर पर पहुंच गया। इस तरह 4 साल 3 महीने में रुपया 12.29 गिर चुका है। एनडीए
के चार साल तीन महीने के कार्यकाल में रुपया 20.93 फीसदी गिर चुका है।
रुपये की गिरावट VS महंगाई का ग्राफ
रुपये की गिरावट का असर
सिर्फ सरकार के खजाने तक सीमित नहीं रहता। रुपये की कीमत घटने से कच्चे तेल की
खरीदारी पर तेल कंपनियों को ज्यादा पैसा खर्चना पड़ता है। घरेलू बाजार में तेल
उत्पाद महंगे हो जाते हैं। इसका असर ट्रांसपोर्ट पर होता है। इस तरह ट्रांसपोर्ट
के जरिए इधर से उधर जाने वाला माल भी महंगा हो जाता है।
रिजर्व बैंक के एक अनुमान
के मुताबिक रुपये में हर पांच फीसदी गिरावट से महंगाई दर करीब 0.20 फीसदी बढ़ जाती
है। इसका मतलब यह है कि अगर किसी साल रुपया 25 फीसदी गिर जाए, तो उस साल सिर्फ
रुपये की गिरावट से महंगाई दर में एक फीसदी का इजाफा हो जाएगा।
रुपये की गिरावट कोई मुद्दा क्यों नहीं है? |
|
जिस दिन रुपये की खस्ता
हालत के बारे में मैंने लेख लिखने के बारे में सोचा। तब डॉलर के मुकाबले रुपया 70
पर जाने को तैयार था। रिसर्च जुटाते जुटाते रुपया 71 को पार कर गया, और अब 72 की तरफ तेजी से
बढ़ रहा है।
पर क्या इसे लेकर आपको अखबारों
के पहले पन्ने पर कोई हेडलाइन दिखती है? क्या रुपये की खराब सेहत पर सरकार के चिंतित होने
की कोई खबर आपने महीने दो महीने के दौरान पढ़ी? हिंदू-मुसलमान के निर्मित मुद्दों पर बहस करने
वाले टीवी न्यूज चैनल में इस गंभीर विषय पर क्या आधे घंटे की चर्चा आपने सुनी,
देखी? मोदी मोदी के नारे लगाने वाली सोशल मीडिया आर्मी को अर्थव्यवस्था के इस अहम
पैमाने के गिरते जाने का अंदाजा हो, ऐसा कोई संकेत आपने उनके फेसबुक पोस्ट या
ट्वीटर पर देखा है?
संभवतया इन सवालों का जवाब
नहीं में हो? बार-बार कहना होगा, कि हमने चौंकना छोड़ दिया है। किसी देश की करेंसी का गिरते
जाना अर्थव्यवस्था के प्रति अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भरोसे का कम होना है।
क्या निवेशकों का भारतीय अर्थव्यवस्था से भरोसा घटा है?
आर्थिक मामलों के जानकार
करेंसी को लेकर एक बात आमराय से कहते हैं। करेंसी किसी देश के आर्थिक हालात का बैरोमीटर
है। करेंसी की कीमत बताती है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर उस देश की अर्थव्यवस्था के
बारे में निवेशकों की सोच क्या है? उन्हें उस अर्थव्यवस्था पर कितना भरोसा है?
आंकड़ों के लिहाज से देखें,
तो रुपये की गिरावट का हाल यूपीए-2 और एनडीए सरकार में करीब करीब एक जैसा है।
लेकिन प्रधानमंत्री बनने से पहले नरेंद्र मोदी ने चुनावी रैलियों में रुपये की
गिरावट को बड़ा मुद्दा बनाया था। नरेंद्र मोदी ने बार बार रुपये की खराब हालत को
देश के स्वाभिमान और अस्मिता से जोड़ा था। उन्होंने जनता में उम्मीद जगाई थी कि
उनकी सरकार रुपये की मजबूती के लिए आर्थिक माहौल बेहतर बनाएगी। बहरहाल रुपये का जो
हाल दिख रहा है, उससे ऐसा नहीं लगता कि कुछ किया गया है।
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home