हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Wednesday, July 25, 2018

कितने पाकिस्तान?

चलिए, मान लिया शशि थरूर निरे मूरख हैं। उन्हें हिंदुस्तान की सभ्यता और संस्कृति की जरा भी समझ नहीं। वो भारत के संविधान को जानते नहीं, और लोकतंत्र की भावना को समझते नहीं। 
 
शशि थरूर को एक खास सोच विचार वालों की तरफ से दी गई सारी गालियां भी मंजूर। चलिए, आपकी गालियों में एक गाली मेरी भी शामिल कीजिए। आपकी प्रबल इच्छा है कि भारत हिंदू पाकिस्तान न बने। आमीन। मेरी शुभकामना भी स्वीकार की जाए; प्रार्थना है कि ईश्वर आपकी सद्इच्छा पूरी करे। 


पर ये तो पता चले कि जो पाकिस्तान हिंदुस्तान के अंदर तैयार कर दिए गए हैं, उनका क्या होगा?

 
शशि थरूर ने क्या गलत बोला?

इस वाक्य विन्यास को गौर से पढ़िए। आपको अपने मतलब के अर्थ मिलेंगे। शशि थरूर ने, क्या गलत बोला? और दूसरा, शशि थरूर ने क्या गलत बोला

पहले सवाल में आप तर्क के साथ विवेचना कर सकते हैं। और बहस मुबाहिसा का स्कोप बना रहता है। दूसरे सवाल में तर्क की जगह नहीं है। ये क्लोज एंडेड सवाल है; जिसका जवाब हां या ना, लोग अपनी पसंद नापसंदगी के हिसाब से ही देंगे।

फिलहाल पहले वाले सवाल पर डटे रहते हैं। 

शशि थरूर ने दो-तीन ही तो आरोप लगाए भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ पर। पहला, ये संविधान बदलना चाहते हैं। दूसरा, इनकी परिकल्पना में भारत एक हिंदू राष्ट्र है, और इनके तमाम सपनों में से एक बड़ा सपना हिंदू राष्ट्र का है। और तीसरी बात, जिसपर आप (बीजेपी और संघ समर्थक) आग बबूला हैं, और राहुल गांधी के मां बाप से होते हुए दादी और परनाना तक पहुंच गए हैं। उन्होंने यही तो कहा कि अगली बार भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीती, तो भारत हिंदू पाकिस्तान बन जाएगा।

संविधान बदलने की बात करने वाले मंत्री का कोई क्या बिगाड़ लेगा?

पहले बात शशि थरूर के पहले दो आरोपों की। एक, बीजेपी और आरएसएस संविधान बदलना चाहते हैं। 

क्या ये आरोप गलत है? अगर आपका जवाब हां में है। तो फिर मुझे आपको उस केंद्रीय मंत्री के बारे में बतलाना पड़ेगा, जो एक पब्लिक मीटिंग में माइक के आगे जोर जोर से चिल्लाकर कहता है। बीजेपी सत्ता में आई ही संविधान बदलने है। 

कुछ याद आया। मैं बात कर रहा हूं कर्नाटक बीजेपी के उभरते सितारे और नरेंद्र मोदी सरकार में केंद्रीय कौशल विकास एवं उद्यमशीलता राज्य मंत्री अनंत कुमार हेगड़े की। ज्यादा दिन नहीं हुए हैं, जब उन्होंने ये बात कही।

पिछले साल 26 दिसंबर को हेगड़े ने कर्नाटक के कोप्पल में कहा, बीजेपी संविधान बदलने के लिए सत्ता में आई है। लोग धर्मनिरपेक्ष शब्द से इसलिए सहमत हैं, क्योंकि यह संविधान में लिखा है। इसे (संविधान) बहुत पहले बदल दिया जाना चाहिए था, और हम इसे बदलने जा रहे हैं।
हेगड़े यहीं चुप नहीं रहे,जो लोग खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, वे बिना माता पिता से जन्म लेने वालों की तरह हैं। अगर कोई कहता है कि मैं मुस्लिम, ईसाई, लिंगायत, ब्राह्मण या हिंदू हूं; तो मुझे खुशी होती है, क्योंकि वो अपनी जड़ों को जानते हैं। लेकिन जो खुद को धर्मनिरपेक्ष कहते हैं, मैं नहीं जानता उन्हें क्या कहा जाए।

संभव है, कुछ लोग बीजेपी और संघ समर्थक होने पर भी अनंत कुमार हेगड़े की बातों का समर्थन न करते हों। बेशक आप अनंत कुमार हेगड़े का विरोध भी करते होंगे। पर बीजेपी ने विरोध किया क्या? संघ का कोई नेता अनंत कुमार हेगड़े के खिलाफ बोला क्या? अगर विरोध किया, तो फिर अनंत कुमार हेगड़े मोदी मंत्रिमंडल में अभी भी क्यों हैं

तो फिर क्यों न मान लिया जाए कि हेगड़े को बतलाया गया है; सीधे या संकेतों के जरिए कि जो आपने कहा, सही कहा। कहते रहिए। हम आपके साथ हैं !!!

क्या संघ और बीजेपी ने हिंदू राष्ट्र की कल्पना को छोड़ दिया है?
 
दूसरी बात जो शशि थरूर ने कही, वो यही कही ना? बीजेपी और संघ की परिकल्पना में भारत एक हिंदू राष्ट्र है, और इनके तमाम सपनों में से एक बड़ा सपना हिंदू राष्ट्र का है। क्या शशि थरूर ने कुछ गलत बोला है? क्या बीजेपी और संघ के नेता हिंदू राष्ट्र की बात आए दिन नहीं करते?

और तीसरी बात, हिंदुस्तान के हिंदू पाकिस्तानबन जाने की आशंका की। इसे लेकर शशि थरूर आशंकित हो सकते हैं, पर उन्हें शायद पता नहीं कि ये प्रक्रिया तो हिंदुस्तान में कई दिनों से जारी है। दुख होता है, पर सच है। न जाने कितने पाकिस्तान बन गए हैं, वसुधैव कुटंबकम को मानने वाले इस हिंदुस्तान में। 

अगर कोई ये समझे की वसुधैव कुटुंबकम की अवधारणा पर टिका भारतीय समाज झारखंड के रामगढ़ की घटना को भूल जाएगा, तो वो गलती कर रहे हैं। उस दिन हमने रामगढ़ में पाकिस्तान को उभरते देखा है। 

वसुधैव कुटुंबकम का भारत और रामगढ़ की गोरक्षक भीड़

झारखंड के रामगढ़ में 29 मार्च, 2017 की घटना, क्या हमें पाकिस्तान नहीं बनाती? मीट कारोबारी अलीमुद्दीन उर्फ असगर अंसानी रोजाना की तरह उस दिन भी अपने काम के सिलसिले से निकला था। इस बात से अनजान की 11 कथित गोरक्षक एक खास इरादे से उसका इंतजार कर रहे हैं। इस गोरक्षक भीड़ ने अलीमुद्दीन को घेरा और गोमांस के शक में पीट-पीटकर मार डाला। 

कोर्ट ने एक बीजेपी नेता सहित 11 लोगों को आईपीसी की धारा 302 के तहत हत्या का दोषी पाया। इनमें से तीन लोगों पर धारा 120बी के तहत आपराधिक साजिश रचने का आरोप भी साबित हुआ। कोर्ट ने माना कि ये एक पूर्व नियोजित हमला था।

हत्यारों का स्वागत, क्या हिंदुस्तान की परंपरा है

उस वहशियाना मॉब लिंचिंग की तस्वीरें आज भी इंटरनेट के संसार में घूम रही हैं। कोर्ट सजा का ऐलान कर चुकी है। पर केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा मॉब लिंचिंग के इन दोषियों का अपने घर पर फूल मालाओं से स्वागत करते हैं। 

क्या हत्या के दोषियों का स्वागत भारत की परंपरा है? भारत की हजारों साल की संस्कृति के झंडाबरदार संगठन और समर्थक क्या बता पाएंगे कि खून बहाने वालों की शान में कसीदे गढ़ना उन्होंने कहां से सीखा है?
सही कह रहे हैं, बीजेपी और संघ के समर्थक। निसंदेह हम पाकिस्तान नहीं बन सकते। शशि थरूर ने जो कहा बिल्कुल गलत कहा!! पर रामगढ़ को कैसे भूल जाएं? और कैसे भूल जाएं, जयंत सिन्हा की उन फूल मालाओं को?
पूर्वाग्रहों को थोड़ा दूर छोड़कर आएंगे, तो आपको महसूस होगा कि एक पाकिस्तान राजस्थान के अलवर में भी दिखा था। 

पहलू खान ने बहरोड़ में पाकिस्तान देखा

राजस्थान के अलवर जिले में पहलू खान की मौत के साल भर बाद भी परिवार को इंसाफ का इंतजार है। हरियाणा के नूह के रहने वाले पहलू खान की एक अप्रैल, 2017 में कथित गोरक्षों ने हत्या कर दी। पहलू खान जयपुर से पशु खरीदकर अपने घर ले जा रहे थे। नेशनल हाईवे नंबर 8 पर बहरोड़ के पास कथित गोरक्षकों की भीड़ ने गोतस्करी का आरोप लगाकर उन्हे बुरी तरह पीटा। दो दिन बाद पहलू खान की अस्पताल में मौत हो गई।

मरने से पहले (डेथ डिक्लेयरेशन में) पहलू खान ने पुलिस को 6 आरोपियों के नाम बताए। इनमें से तीन आरोपी एक दक्षिणपंथी संगठन से जुड़े हैं।

पर मजे की बात देखिए। पहलू खान के साथ जानलेवा मारपीट कैमरे में रिकॉर्ड है। आज भी इंटरनेट पर एक क्लिक के साथ उस हैवानियत को देखा जा सकता है। एक एक आरोपी के चेहरे को पहचाना जा सकता है। लेकिन पुलिस ने पहलू खान की मौत के करीब छह महीने बाद जांच में छह के छह आरोपियों को क्लीन चिट दे दी।

ये तो होना ही था। पहलू खान की निर्मम हत्या के कुछ रोज बाद ही राजस्थान के गृह मंत्री गुलाब चंद कटारिया ने सही बताने की कोशिश की। उन्होंने बिना जांच पहलू खान को गोतस्कर बता दिया। ऐसे में पुलिस की क्या बिसात थी, जो उनसे अलग रास्ता पकड़ती।

पर किसी ने तो पहलू खान को मारा होगा? तस्वीरों में कुछ लोग मारते दिख रहे थे। अगर बहरोड़, पाकिस्तान नहीं था; तो फिर हत्यारों को सजा क्यों नहीं मिली?

क्या ये सवाल पूछने पर कोई हमें पाकिस्तान भेज देगा?

बिसाहड़ा के अखलाक को भूल गए !!

बहस मुबाहिसा में हिंदुस्तान को पाकिस्तान बनने से बचाने वालों, 2015 की 28 सितंबर के उस वक्फे को याद करो। जब उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में एक पाकिस्तान उभर आया था। संभव है कुछ लोग याद न करना चाहें। ग्रेटर नोएडा के बिसाहड़ा गांव में अखलाक को एक धर्मोन्मादी भीड़ ने घेरकर मार डाला।

अखलाक को क्यों मारा गया? भीड़ को शक था कि उसके घर के अंदर रखे फ्रिज में गोमांस है। भीड़ ने एक शख्स पर आरोप लगाए, भीड़ ही वकील बनी और भीड़ जज बन गई। और फिर जल्लाद भी, तुरंत न्याय किया गया। भीड़ ने एक इंसान को पीट पीटकर मार डाला।

पुलिस देश के कानून के मुताबिक आरोपियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज करती है। पर कुछ नेता खड़े हो जाते हैं। कानून के संरक्षण के लिए नहीं, एक शख्स के हत्यारों के पक्ष में। 

हत्या आरोपियों के पक्ष में सरकार का खड़ा होना, क्या कहलाता है?

एक आरोपी की जेल में मौत होती है, तो उसके शव को तिरंगे में लपेटा जाता है। भीड़ हत्या के आरोपी के परिवार के लिए एक करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग करती है। और मजे की बात देखिए, भीड़ का समर्थन करने के लिए इलाके के सांसद और केंद्रीय मंत्री महेश शर्मा भी पहुंच जाते हैं। बीजेपी के नेताओं की पूरी जमात पहुंच जाती है। उत्तर प्रदेश सरकार आरोपी के परिवार के लिए मुआवजे का ऐलान करती है। 

जिस वक्त ये सब होता है, भीड़ द्वारा घेरकर मारे गए अखलाक का परिवार न्याय की उम्मीद पाले हाशिए पर खड़ा दिखता है। इस पीड़ित परिवार के घर न कोई अफसर जाता है, न विधायक जाता है, न केंद्रीय मंत्री और न बीजेपी का नेता। 

क्या इस घटना में पाकिस्तान का अक्श नहीं देखना चाहिए? या हमें कहना चाहिए, ये एक सामान्य बात है। 

कितने किस्से सुनाए जाएं, हिंदुस्तान में पाकिस्तान की भटकती आत्माओं के? बहुत से हैं। हर किस्से में इंसानियत मरती है। वसुधैव कुटंबकम का विचार मरता है। हर किस्से में गंगा जमुनी तहजीब दम तोड़ती दिखती है। और अंत में जब सत्ता उन्मादी भीड़ के साथ खड़ी दिखे, तो न्याय भी धीरे धीरे मरता है।



0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home