‘गोएबल्स’ पर नजर रखिए, वक्त बड़ा नाजुक है
ऐसा अक्सर होता है; जब देश और समाज के सामने एक
ही वक्त में एकसाथ दो ऐसे व्यक्तित्व आकर खड़े हो जाते हैं, जो एक दूसरे के विरुद्ध
हों।
अजीब विरोधाभास है, लेकिन गोडसे की विचारधारा की
बात हो, तो गांधी की अहिंसा का जिक्र छिड़ता ही है। नेहरु, पटेल, आंबेडकर और ऐसे ही कई और नेताओं
के रुप में लोकतंत्र को पुख्ता करने वाले नामों की चर्चा छिड़े; तो इतिहास के उसी वक्फ़े
में दो और चेहरों की बात न हो, ऐसा संभव नहीं है। लोकतंत्र की बात होगी, तो फासिज्म की बात भी होगी।
यानी हिटलर और गोएबल्स के नाजी जर्मनी का चर्चा जरुर होगा।
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न जाने क्यों? आज गोएबल्स की बात करने का
मन है। इसलिए नहीं कि मैं गोएबल्स का फैन हूं, बल्कि इसलिए ताकि समझा जा सके, झूठ की तस्वीर कैसी होती है?
पॉल जोसेफ गोएबल्स नाजी जर्मनी
में हिटलर की सरकार में प्रोपेगैंडा मंत्री रहा। 1933 से 1945 के बीच 12 साल का यही
वो दौर था, जब गोएबल्स ने हिटलर के मुख्य सहयोगी के तौर पर काम किया।
यही वो वक्त था, जब प्रोपेगैंडा की नई शक्ल
उभरी।
वो भाषण देने की कला में
माहिर था। उसके भाषण किसी नृत्य की तरह कोरियोग्राफ होते थे। भाषण देने से पहले वो
कई बार रिहर्सल करता। शीशे के आगे खड़े होकर भाषण के दौरान पेश की जाने वाली नाटकीय
मुद्राओं को जांचता परखता। भाषण की किस बात पर चेहरे में कैसे भाव रखने हैं, ये पहले से तय करता। कहां
हंसना है? कहां सख्त लहजा देना है? और कहां आवाज को ऊपर नीचे करना है? गोएबल्स इसकी पूरी तैयारी
करता था।
गोएबल्स अपनी स्पीच के
कार्यक्रम को एक मेगा इवेंट बनाने की कला भी जानता था। इसके लिए भाषण वाली जगह की
साज सज्जा पर खास ध्यान दिया जाता था। स्पीच के दौरान साउंड सभास्थल के
हर कोने तक पहुंचे; इसके लिए उस वक्त के आधुनिक से आधुनिक लाउडस्पीकर का
इस्तेमाल किया जाता था। सभास्थल पर आतिशबाजी का इंतजाम किया जाता। हिटलर की नाजी
आर्मी की खास पोशाक में लोग मार्च करते। जर्मन नस्ल की सर्वोच्चता के बारे में
नारे लगाए जाते। जर्मनी को दुनिया का सबसे ताकतवर मुल्क बनाने की बातें की जाती।
1933 में हिटलर की नाजी
पार्टी ने जर्मनी की सत्ता पर कब्जा किया। इसी के बाद गोएबल्स के नेतृत्व में
अखबारों के जरिए खबरों पर नियंत्रण का एक सिलसिला शुरू हुआ।
गोएबल्स ने दो तरह से काम
किया। पहला, पारंपरिक मीडिया पर कंट्रोल किया। दूसरा, उस वक्त उभरते मीडिया (रेडियो और फिल्म) का इस्तेमाल नाजी विचारों
और हिटलर के प्रचार के लिए किया।
प्रोपेगैंडा (प्रचार) को गोएबल्स ने एक अलग ही
स्तर पर पहुंचा दिया। जहां जर्मनी का मतलब नाजी पार्टी और नाजी पार्टी का मतलब
हिटलर था। जर्मन्स को बताया और समझाया गया कि जर्मनी की बेहतरी का मतलब हिटलर की
बेहतरी है। पर हुआ इसका उलट। जर्मनी और जर्मन्स सबकी बेहतरी एक हिटलर में
अंतर्निहित होती चली गयी। ऐसे में सत्ता के इर्द गिर्द जितनी भी संस्थाएं थी, हिटलर के इशारे पर घूमने
लगीं। मीडिया भी इससे नहीं बच सका।
यहीं पर आकर गोएबल्स ने कहा, “सोचिए, जैसे प्रेस एक विशाल की-बोर्ड है, जिस पर सरकार अपनी
उंगलियां चला सकती है।“
जर्मनी में दूर दूर तक फैले
प्रेस के की-बोर्ड पर हिटलर की उंगलियां चलने लगी। ज्यादातर जर्मन्स को अहसास ही नहीं हुआ कि
उनकी सोच पर पहरे की बात हो रही है। इस एक नारे के जरिए, गोएबल्स ने सीधे
सीधे प्रेस को मारा। इसी के साथ खबर मारी गयी। फिर विचार भी नहीं रहे, और सोचने की शक्ति भी।
गोएबल्स यहीं नहीं रुका।
उसने कला के उन माध्यमों पर भी नियंत्रण कर लिया। जो किसी न किसी तरह से समाज पर
असर डाल सकते थे। गोएबल्स ने कहा – “बौद्धिक (इंटलेक्चुअल) गतिविधियां चरित्र के निर्माण के लिए एक खतरा है।“ इशारा साफ था, हिटलर की नाजी
जर्मनी में बुद्धि की जरुरत नहीं है। बुद्धि नहीं होगी, तो बुद्धि से जुड़ी गतिविधियों का सवाल ही नहीं
रहेगा। छोटे बड़े सभी सवालों को सत्ता द्वारा हजम कर लिया गया।
गोएबल्स ने प्रोपेगैंडा को
निगेटिव दायरे से बाहर निकालकर एक शास्त्र बना दिया। गोएबल्स ने कहा –“सबसे बेहतरीन
प्रोपेगैंडा (प्रचार) तकनीक से कोई फायदा नहीं होगा, जब तक एक मूल
सिद्धांत दिमाग में लगातार पैदा नहीं होता – इसे कुछ खास बातों तक सीमित
रखना होगा और बार बार दोहराना होगा।“
बात को समझिए। गोएबल्स के
प्रचार तंत्र के दो मुख्य बिंदु थे। पहला, झूठ ही सही, पर उसे बार बार बोलो। और दूसरा, कुछ खास बातों पर फोकस करो।
खास बात राष्ट्रवाद या किसी व्यक्ति के इर्दगिर्द घूमती है। जो भी बात करनी हो, उसमें जर्मनी और जर्मन्स की
चाशनी डाल दो।
इसी के बाद उसने अपने
कार्यकर्ताओं से कहा – “अगर आप कोई बड़ा झूठ बोलते हो, और इसे बार बार
दोहराते हो, तो अंतत:
लोगों को एक दिन इसपर विश्वास हो जाएगा।“ गोएबल्स इसे लेकर पूरी तरह
आश्वस्त था।
गोएबल्स जर्मन नस्ल की
सर्वोच्चता का अड़ियल समर्थक था। यहूदियों के प्रति नफरत उसके दिलो दिमाग में बसी
हुई थी।
जर्मन्स को एकजुट करने के
लिए हिटलर के नेतृत्व में गोएबल्स ने जो तरीका अपनाया। वो बड़ा खतरनाक था।
यहूदियों के खिलाफ लोगों को भड़काया गया। चर्चों पर हमले की बातें प्रमुखता से
उभारी गयी। इनमें से ज्यादातर बातें अफवाह थी। कई बार उसने चर्चों पर खुद ही हमले
करवाए और इसका इस्तेमाल यहूदियों के खिलाफ प्रोपेगैंडा के तौर पर किया गया।
गोएबल्स ने हिटलर की
सरपरस्ती में जर्मन्स और यहूदियों के बीच प्रोपेगैंडा के जरिए गहरी खाई बना दी।
जर्मन्स और यहूदी लंबे वक्त से एकसाथ जर्मनी में जी रहे थे। गोएबल्स ने हिटलर के
साथ मिलकर पहले दोनों के बीच नफरत का बीज बोया। फिर नफरत को पंख लगाए। और बाद में इस
नफरत का इस्तेमाल हिटलर को सत्ता पर काबिज कराने और सत्ता में ताकतवर बनाए रखने के
लिए किया।
दूसरे वर्ल्ड वॉर के वक्त
1941 से 1945 के बीच होलोकास्ट नरसंहार के पीछे जो प्रमुख विचार थे, उनमें एक गोएबल्स भी था।
होलोकास्ट के जरिए हिटलर ने करीब 60 लाख यहूदियों को यातनाएं देकर मरवा दिया। इस
तरह उस वक्त यूरोप में यहूदियों की कुल आबादी के दो तिहाई यहूदी मारे गए।
इससे बड़ा विरोधाभास क्या
होगा? जो पॉल जोसेफ गोएबल्स हिटलर का प्रोपेगैंडा मिनिस्टर बनकर यहूदियों का दुश्मन
बन गया, उसी गोएबल्स ने हाइडबर्ग यूनिवर्सिटी के एसोसिएट प्रोफेसर के निर्देशन में
अपनी पीएचडी पूरी की। एसोसिएट प्रोफेसर Max Freiherr von Waldberg यहूदी थे।
भीड़ को और क्या चाहिए? धर्म और नस्ल इंसान को
बांटने का सबसे पैना हथियार है। जर्मनी की श्रेष्ठता के नारे के साथ राष्ट्रवाद का
जो नशा जर्मन्स के दिमागों में भरा गया, वो जबर्दस्त तरीके से कारगर रहा। बेरोजगारी और
तमाम दिक्कतों से जूझ रहे जर्मन्स को अहसास ही नहीं हुआ कि राष्ट्रवाद उन्हें खोखला
कर रहा है।
और देखिए घोर राष्ट्रवाद के
साथ सिर्फ 6 साल में हिटलर ने जर्मनी को मलबे में बदलने की जमीन तैयार कर दी। 1933
में हिटलर ने जर्मनी की कुर्सी को दबोचा, 1939 में दूसरा वर्ल्ड वॉर शुरू हो गया। फिर कुछ
ही साल में क्या हुआ, सब जानते हैं। इतिहास ने हिटलर को एक गुनहगार के रुप में
अपने अंदर समेट लिया है। इस गुनाह में गोएबल्स के आरोप भी दर्ज हैं।
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