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बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Friday, June 29, 2018

जनता दरबार का नाटक, और अपमानित होते लोग



उत्तराखंड के मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत बहुत अभागे हैं, क्योंकि उन्हें ईश्वर ने कुछ नेमतों से महरुम रखा है। मुझे त्रिवेंद्र सिंह रावत पर तरस आता है। सिर पर अधपके बाल वाला करीब करीब बुजुर्ग सा दिखने वाला ये शख्स उन गुणों को न पा सका, जिसे पाने का आशीर्वाद बढ़े बूढ़े हमेशा दिया करते हैं। और इन दिनों तो इन गुणों को व्यक्तित्व में जगाने के लिए बकायदा स्पेशल पर्सनैलिटी क्लास चलाए जाते हैं। हां, ये जरुर है कि जिस पीढ़ी के त्रिवेंद्र सिंह रावत हैं, वहां बड़े बूढ़ों के आशीर्वाद और ईश्वर की अनुकंपा से ही ये गुण किसी व्यक्तित्व में घुलते थे। (इस लेख को आप www.janchowk.com पर भी पढ़ सकते हैं)


धैर्य, सहनशीलता, भाषा की मधुरता और न्याय कर पाने की क्षमता यही तो वो गुण हैं; जो सार्वजनिक जीवन में किसी इंसान को एक यादगार शख्सियत बना देते हैं। त्रिवेंद्र सिंह रावत बड़ी पार्टी के बड़े नेता बन गए, एक राज्य के मुख्यमंत्री बन गए; लेकिन अपने दोषों को ज्यादा दिन सार्वजनिक होने से बचा नहीं पाए। 

तो 28 जून को देहरादून में एक राजा के मानिंद मुख्यमंत्री का जनता दरबार लगा। जैसे आधुनिक राजा प्रजा के सारे दुखों, परेशानियों को चुटकी बजाते खत्म कर देगा। सूबे के सबसे बड़े पद पर आसीन शख्स के सामने कोई फरियाद करेगा, तो यही सोचकर करेगा कि अब उसकी परेशानियां दूर हो जाएंगी। हालांकि ये एक गलतफहमी है!


उत्तरकाशी जिले के दूर दराज इलाके में तैनात शिक्षिका उत्तरा पंत बहुगुणा भी इसी उम्मीद के साथ मुख्यमंत्री के जनता दरबार में चली आईं। उत्तरा पंत बहुगुणा की परेशानी क्या है? – वो विधवा हैं, बच्चों को अकेले पाल रही हैं; और लंबे वक्त से दुर्गम इलाके में शिक्षिका के पद पर तैनात हैं। इससे उन्हें परिवार और बच्चे पालने में दिक्कत होती है।

मुख्यमंत्री को अपनी दिक्कत बताने के लिए इंतजार में बैठीं उत्तरा पंत बहुगुणा की बारी आई, तो उनकी परेशानी का गुबार फट पड़ा। फिर क्या हुआ, हुबहू पढ़िए। 



उत्तरा पंत बहुगुणा - 25 साल से मैं वहां सर्विस कर रही हू। मेरी समस्या ये है कि मेरे पति की मौत हो चुकी है। मेरे बच्चों को कोई देखने वाला नहीं है। मैं अकेली हूं, अपने बच्चों का सहारा। मैं अपने बच्चों को अनाथ नहीं छोड़ सकती और नौकरी भी नहीं छोड़ सकती हूं। आपको मेरे साथ न्याय करना पड़ेगा।


त्रिवेंद्र सिंह रावत - जब नौकरी की थी, तब क्या लिखकर दिया था, वहां
  
उत्तरा पंत बहुगुणा - ये लिखकर थोड़ी दिया था कि मैं वनवास भोगूंगी, जिंदगी भर। ये आपका है बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ। और ये नहीं है कि वनवास के लिए भेज रहे हैं।
त्रिवेंद्र सिंह रावत - अध्यापिका हो, नौकरी करती हो। ठीक से रहो। जरा सभ्यता सीखो। सस्पेंड कर दूंगा। अभी सस्पेंड कर दूंगा, यहीं पर।  
उत्तरा पंत बहुगुणा - एक मिनट सुनिए। हर कोई नेता होता है। हमारी भी भावनाएं होती हैं। एक मिनट।
उत्तरा पंत बहुगुणा – लुच्चे चोर कहीं के।
त्रिवेंद्र सिंह रावत - बंद करो ये सब। इसको ले जाओ। बंद करो इसको। कस्डडी में लो इसको। ले जाओ इसको, कस्डडी में।

मुख्यमंत्री का आदेश था। पुलिसवाले भला कैसे न मानते। पुलिसवाले महिला को घेर कर हॉल से बाहर ले आए। सालों से अपनी दिक्कतों में घिरी महिला चीखती रही, चिल्लाती रही। 

उसने कुछ ऐसे शब्द कहे। जो दिमाग में धंस गए हैं। कुर्सी पर बैठे हैं, तो पता नहीं क्या समझ रहे हैं? स्स्साले, शराब के व्यापारी। मेरे बच्चों को शराब पिलाकर मार दिया। तुम देवी देवता को पूजने वाले। देवी देवताओं का अपमान करने वाले। साले चोर।  

उत्तरा पंत बहुगुणा ने गलती की। लुच्चे और चोर सभ्यता के खिलाफ है, पर ये छोटी गलती है। उत्तरा पंत बहुगुणा ने इससे बड़ी गलती मुख्यमंत्री के जनता दरबार में आकर की। जहां वो ये सोचकर पहुंच गई कि मुख्यमंत्री धैर्य से उनकी बात सुनेगा। उनके गुस्से के प्रति सहनशीलता दिखाएगा। और फिर उनकी दिक्कतों को समझते हुए, उनकी तमाम तीखी बातों को नजरअंदाज करके मधुर भाषा में मरहम लगाने की कोशिश करेगा। और अंत में न्याय होगा।  


जिस हिंदू धर्म की ध्वज पताका लहराने का दावा त्रिवेंद्र सिंह रावत और उनके हमदम हमकदम हरदम कहते रहते हैं। वो धर्म क्या कहता है?
संस्कृत का एक सूक्ति वाक्य है –
क्षमा शस्त्रं करे यस्य दुर्जन: किं करिष्यति
अर्थात क्षमारुपी शस्त्र जिसके हाथ में हो, उसे दुर्जन क्या कर सकता है?
यह भी कहा गया है - श्रद्धाभक्तिसमायुक्ता नान्यकार्येषु लालसा:
अर्थात योग्य श्रोता वही है जिनके पास श्रद्धा तथा भक्ति है, जिनका हेतू केवल ज्ञान प्राप्त करना है।

माना अपनी दिक्कतों से परेशान और गुस्से में भर गई महिला ने आपा खोकर एक दो गलत शब्द बोल दिए। पर क्या हिंदू धर्म का ठेका उठाकर चलने वालों को दुनिया के सबसे महान धर्म में दी गई शिक्षाओं की जानकारी नहीं है

कबीर को गले लगाने की इन दिनों हड़बड़ी मची है। धैर्य और सहनशीलता पर कबीर ने भी कुछ कहा है। कबीर कहते हैं -
कबीरा धीरज के धरे हाथी मन भर खाए,
टूक टूक बेकार में स्वान घर घर जाय।
अर्थात मनुष्य को धीरज रख कर ही काम करना चाहिए, जल्दबाजी में किया गया काम त्रुटिपूर्ण ही होता है। जिस प्रकार हाथी धीरे धीरे अपना भोजन खाता है, और पूर्ण तृप्ति के साथ भोजन ग्रहण करता है; जबकि दूसरी तरफ कुत्ता इधर उधर भागता फिरता है और हर घर में सिर्फ एक टुकड़ा ही पाता है।

तो अपनी परेशानी के साथ मुख्यमंत्री के जनता दरबार पहुंची महिला के साथ यही होना था। धैर्य, सहनशीलता, मधुर भाषा और न्याय की कमी से लबरेज व्यक्ति से क्या उम्मीद रखी जाए। 

पर मुख्यमंत्री इसे बड़ी बात नहीं मानते। मर्यादा में रहने का पाठ पढ़ाते हैं। जब पत्रकारों ने जनता दरबार में इस हंगामे पर त्रिवेंद्र सिंह रावत से सवाल पूछा। तो उन्होंने कहा – देखिए, ये हमेशा कुछ न कुछ लोग घुस जाते हैं। एकआध ऐसा हो जाता है। कोई बड़ी बात नहीं है। लेकिन हां, अपनी मर्यादा में रहना चाहिए।

मुख्यमंत्री ने सही कहा, आम आदमी को मर्यादा में रहना चाहिए। अन्याय सहते रहना चाहिए। न्याय मांगने के बारे में तो सोचना भी नहीं चाहे।
सीएम साहब को एक महिला टीचर का दर्द समझना चाहिए था। ऐसा इसलिए सोचा जा सकता है क्योंकि त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी भी एक टीचर हैं। वो उत्तर पंत बहुगुणा की परेशानी चाहते तो समझ जाते। लेकिन ये भी तो है कि त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी ने वो परेशानी कभी झेली ही नहीं, जो उत्तरा पंत बहुगुणा जैसी शिक्षिकाओं और हजारों महिला कर्मचारियों को झेलनी पड़ती हैं।

अखबारों और खबरों की बेवसाइट्स में आरटीआई का एक पेपर घूम रहा है। आरटीआई में उपलब्ध दस्तावेजों के मुताबिक त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी सुनीता रावत अपनी पहली नियुक्ति से लेकर अब तक सुगम स्थानों पर ही तैनात रही हैं। सुनीता रावत की पहली नियुक्ति 24 मार्च 1992 को पौड़ी गढ़वाल के कफल्डी स्वीत में हुई थी, जो सुगम इलाके में आता है। नेताजी की अच्छी पहुंच थी। सिर्फ चार साल में नेताजी की पत्नी का ट्रांसफर देहरादून के अजबपुर कलां में हो गया। और फिर नेताजी का टशन ऐसा था कि उनकी पत्नी को यहां से बाहर का मुंह नहीं देखना पड़ा। 10 साल पहले मिसेज सीएम का प्रमोशन अजबपुर कलां में ही हो गया। नेताजी का प्रताप ऐसा है कि सरकार बदलती रहती है; पर पत्नी पिछले 22 साल से एक ही जगह टिकी हैं। 

तो मामला ये है कि एक उत्तरा पंत बहुगुणा हैं, जो पिछले 25 साल से दुर्गम इलाके में अपने परिवार से दूर नौकरी कर रही हैं। वो बार बार अपने परिवार के पास ट्रांसफर करने की गुहार लगाती भटक रही हैं। और दूसरी त्रिवेंद्र सिंह रावत की पत्नी सुनीता रावत हैं, जो गुगल सर्च के मुताबिक सीएम हाउस से सिर्फ 10 मिनट यानी 4.7 किलोमीटर की दूरी पर नौकरी कर रही हैं। है न मजेदार?

मैं दुखी हूं, त्रिवेंद्र सिंह रावत के व्यवहार से। और इससे भी बढ़कर शर्मसार हूं।

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