हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Sunday, June 17, 2018

स्मार्ट सिटी भी एक जुमला बन गया है !

प्रधानमंत्री जी, कूड़ाघर के नीचे कैसे फिट रहेगा इंडिया? 



कई दिन से दफ्तर की तरफ जाते और दफ्तर से घर लौटते हुए एक रेडियो विज्ञापन ध्यान खींच रहा है। विज्ञापन में मोदी सरकार के चार साल की उपलब्धियों की बात की गयी है। आखिर में एक जिंगल बजता है साफ नीयत, सही विकास। इस स्लोगन पर यकीन करने को जी चाहता है, लेकिन जब जब नोएडा के सेक्टर 123 में नोएडा अथॉरिटी की नीति और नीयत की तस्वीरें आंखों के सामने आती है, तब तब मोदी सरकार के इस विज्ञापन में बजने वाला जिंगल खटकने लगता है। अचानक जिंगल में बजने वाले सुर बेसुरे लगते हैं। संगीत कर्कश लगने लगता है। और लगता है, जैसे गायक भद्दी आवाज में गंदी नीयत और गलत विकास के नारे लगा रहा है। 
www.janchowk.com में भी प्रकाशित
  
सिस्टम की नीति और नीयत पर कौन यकीन करेगा?

कोई कैसे यकीन करे कि सिस्टम की नीति और नीयत सही है? नोएडा के सेक्टर 123 के एक छोटे से हिस्से में बने लैंडफिल साइट की हर तस्वीर आपके यकीन पर चोट मारेगी। एक एक तस्वीर साबित करेगी कि सिस्टम की न नीति ठीक है, न नीयत। 14 जून को नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर 123 में बने लैंडफिल साइट पर कूड़े की पहली ट्रॉली पलटी, उसी वक्त एक बार फिर साबित हुआ कि सिस्टम लोगों की भावनाओं, पर्यावरण और तमाम नियम कायदों से बेखबर है।  
नोएडा सेक्टर 123 के वेस्ट लैंडफिल साइट पर कूड़ा डालने की तस्वीर,14 जून 2018
 
जिस बात की आशंका से नोएडा और ग्रेटर नोएडा वेस्ट के हजारों लोग सड़कों पर निकल आए थे, वो आशंका 14 जून को सही साबित हुई। इस इलाके के करीब एक लाख परिवारों ने सिस्टम को अपनी आवाज सुनाने के लिए हर तरीका अपनाया। सड़कों पर उतरे, नारे लगाए। धरना दिया। जून की तपती दुपहरी में लोगों ने नंगे बदन प्रदर्शन किया। पुलिस ने कई लोगों को जेल भेजा। अखबारों ने खबरें छापी। लोगों ने ट्वीटर और फेसबुक पर प्रधानमंत्री से मुख्यमंत्री तक को बार बार टैग करके अपनी बात कही। पर डिजिटल इंडिया का नारा देने वाली सरकार के कानों में जूं नहीं रेंगी। लोगों ने लोकतांत्रिक तरीके से शांति के साथ बार बार नियम और कायदों का हवाला दिया। सिस्टम को बताया कि नोएडा के सेक्टर 123 में बन रहा लैंडफिल साइट नियमों के मुताबिक नहीं है। पर किसी बात का कोई असर नहीं हो रहा है।  


तो फिर यह बात दुरुस्त है कि सही नीति और सही नीयत के बिना चल रहा सिस्टम लोगों की आवाज नहीं सुनता। 

लोगों को आशंका थी कि शहर के कूड़े के भंडारण के लिए बनाए गए लैंडफिल साइट से पर्यावरण को नुकसान होगा। हवा खराब होगी। भूजल दूषित होगा। जब लोग इन आशंकाओं के साथ सड़क पर उतरकर अपनी आवाज उठा रहे थे। नोएडा अथॉरिटी की तरफ से अखबारों में एक विज्ञापन जारी किया गया। विज्ञापन में लोगों की आशंकाओं को बेबुनियाद बताया गया। पूरे अधिकार और भरोसे के साथ नोएडा अथॉरिटी ने लोगों के सवालों को खारिज कर दिया। अच्छा होता कि लोगों की आशंकाएं बेबुनियाद होती, और मन में उठ रहे सवाल गलत साबित हो जाते। पर ये नहीं हुआ।  
नोएडा अथॉरिटी द्वारा अखबारों में प्रकाशित विज्ञापन
 
कूड़े के निपटान की अजीबोगरीब वैज्ञानिक पद्धति !

नोएडा अथॉरिटी ने अखबारों में छपवाए विज्ञापन के जरिए लोगों को भरोसा दिलाया कि ''सेक्टर 123 में डंपिंग ग्राउंड नहीं है, बल्कि यह सेनेटरी लैंडफिल साइट (एसएलएफ) है, जिसमें वेस्ट टू इनर्जी प्लांट लगाया जाना प्रस्तावित है। सेक्टर 123 में कूड़ाघर नहीं बनाया जाएगा, बल्कि कूड़े को वैज्ञानिक पद्धति से निस्तारित किया जाएगा।"

पर हकीकत क्या है? 14 जून को जब नोएडा के सेक्टर 123 में बनाए गए लैंडफिल साइट पर नोएडा अथॉरिटी ने कूड़ा डालना शुरू किया। तब वहां पर वेस्ट टू इनर्जी प्लांट का नामोनिशान नहीं था।  नोएडा अथॉरिटी ने सेक्टर 123 की लैंडफिल साइट में वैज्ञानिक पद्धति से कूड़े के निपटान का दावा किया था। ये जानना जरुरी है कि वो कौन सी वैज्ञानिक पद्धति है, जिसके जरिए नोएडा अथॉरिटी बिना किसी वेस्ट टू इनर्जी प्लांट के कूड़े का निपटान करने वाली है। एक बात साफ है कि वेस्ट टू इनर्जी प्लांट नहीं होने से सेक्टर 123 इस वक्त एक कूड़ाघर से ज्यादा कुछ नहीं है। लोगों को लग रहा है कि उनकी आंखों में धूल झोंकी गयी है। उनकी आशंका सच साबित हुई है।
नोएडा अथॉरिटी के अफसर लैंडफिल साइट पर कूड़ा डलवाते हुए
नोएडा अथॉरिटी ने पूरे अधिकार के साथ अखबारों में छपवाए गए विज्ञापन में एक और बात कही। "कुछ लोगों ने शंका जाहिर की है कि यहां अपशिष्ट से "गाजीपुर" जैसा पहाड़ बनेगा? स्पष्ट किया जाता है कि यहां पर अपशिष्ट के पहाड़ जैसी स्थिति नहीं बनेगी, अपितु दैनिक स्तर पर अपशिष्ट का वैज्ञानिक पद्धति से निपटान किया जाएगा।"

पर सच्चाई क्या है? 14 जून को नोएडा अथॉरिटी ने वाहनों के जरिए कूड़ा सेक्टर 123 में डलवाना शुरू किया, लेकिन जैसा विज्ञापन में दावा किया गया है कि दैनिक स्तर पर कूड़े का वैज्ञानिक पद्धति से निपटान किया जाएगा। उस तरह की कोई व्यवस्था सेक्टर 123 में दिखती नहीं। तस्वीरें बता रही हैं कि नोएडा अथॉरिटी के भरोसे के बावजूद सेक्टर 123 में जिस तरह से कूड़ा डाला जा रहा है। वो दिन दूर नहीं है, जब यहां गाजीपुर जैसा पहाड़ बन जाएगा।  
इस तरह खुले वाहनों में कूड़ा लाया गया
सिस्टम से कुछ सवालों के जवाब पूछने हैं?

सिस्टम और नोएडा अथॉरिटी को कुछ सवालों के जवाब जरुर देने चाहिए।  
14
जून को जब नोएडा अथॉरिटी के अफसर सेक्टर 123 में कूड़ा डलवा रहे थे। तब कूड़ा डालने वाले वाहन ढककर क्यों नहीं लाए गए?
अथॉरिटी के अफसरों ने कूड़ा डालने के लिए बड़ी जगह को खुदवाया, लेकिन कूड़ा डालने की स्थिति में भूजल को होने वाले नुकसान से बचाने के उपाय नहीं किए। कूड़ा इकट्ठा करके रखने के लिए जो जगह खुदवाई गई, उसकी सतह पर आधे अधूरे तरीके से पॉलीथिन बिछाई गई। जिस तरह की तस्वीरें सामने आई हैं। उससे साफ है कि अफसरों ने कूड़े से भूजल पर पड़ने वाले असर को पूरी तरह नजरअंदाज किया। 

नोएडा अथॉरिटी अखबारों में विज्ञापन देकर पर्यावरण की सुरक्षा की बात कह रही थी। विज्ञापन में कहा जा रहा था अपशिष्ट की ऊंचाई धरातल से अधिक नहीं होगी। संपूर्ण परीधि या क्षेत्र को पर्यावरणीय असुविधा से मुक्त रखे जाते हुए निरंतर स्ट्रिक्ट इववायरमेंटल मॉनीटरिंग की जाती रहेगी। तस्वीरें देखिए, पहले दिन ही जब सेक्टर 123 की लैंडफिल साइट पर कूड़ा डाला गया, तो स्थिति क्या थी

सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स, 2016: हकीकत और दावे

ऐसा नहीं है कि नोएडा अथॉरिटी के अफसर सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स, 2016’ के बारे में जानते नहीं। वो जानते हैं कि केंद्र सरकार के इस दस्तावेज के तहत लैंडफिल साइट बनाते वक्त किस गाइडलाइंस का पालन करना होता है? यही वजह है कि नोएडा अथॉरिटी ने अखबार में छपवाए गए विज्ञापन में लिखा है -  ठोस अपशिष्ट प्रबंधन भारत सरकार द्वारा निर्गत सॉलिड वेस्ट (मैनेजमेंट एंड हैंडलिंग) रुल्स, 2016 के अनुरुप किया जाएगा। अस्थाई रुप से रखे गए ठोस अपशिष्ट को निस्तारित करने के लिए उक्त स्थल पर ही रेमेडिएशन प्लांट लगाया जाएगा, जिससे अपशिष्ट का निपटान लगातार किया जाता रहेगा।
सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स, 2016’
 लेकिन सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट रुल्स, 2016’ के कई नियम सीधे सीधे नजरअंदाज किए गए हैं। रिहायशी इलाके से वेस्टफील्ड साइट की दूरी एक बड़ा मुद्दा है। वेस्टफील्ड साइट के बेहद नजदीक से गुजरती हिंडन नदी दूसरा बड़ा मुद्दा है। तीसरा मुद्दा, वेस्टफील्ड साइट के बिल्कुल बगल से दो अहम सड़कें निकल रही हैं। हिंडन एयरपोर्ट से वेस्टफील्ड साइट की 20 किलोमीटर से कम दूरी चौथा प्वाइंट है। और सबसे अहम पांचवां बिंदु, वेस्टफील्ड साइट ऐसी जगह नहीं होना चाहिए, जहां सौ साल के अंदर बाढ़ आई हो। लगता है नोएडा अथॉरिटी 1978 की भीषण बाढ़ को भूल गयी। 
एक हाईटेक सिटी जिसकी लाखों कहानियां हैं

हर शहर की एक कहानी होती है। उत्तर प्रदेश के हाईटेक सिटी नोएडा की भी है। नोएडा की इस कहानी के लाखों किरदार हैं। लाखों लोग अपने घरों से हजारों मील दूर इस शहर में छोटी बड़ी सैकड़ों उम्मीदों के साथ जैसे तैसे जी रहे हैं। इस शहर में पहुंचे हर शख्स का सालों साल की नौकरी के बाद एक ही सपना है - अपना एक घर बन जाए, बस। घर माने फ्लैट। पर फ्लैट सिर्फ पैसों से नहीं मिलता। यकीन मानिए, इसमें किस्मत का हाथ भी होता है। 
नेता, मंत्री, सरकार, अफसर और सिस्टम से एक बात कहनी है, एक छोटी सी गुजारिश है। कभी उस शख्स से मिलिएगा, जिसने आठ दस साल पहले एक फ्लैट ये सोचकर बुक कराया था कि वो दो तीन साल बाद उसमें रहने आएगा। आठ दस साल बाद भी फ्लैट नहीं मिले हैं। ऐसे लोगों की दिक्कतें दूर करने का नेता, मंत्री, सरकार, अफसर और सिस्टम के पास कोई प्लान है क्या? शायद नहीं है।

पर जिनको किस्मत से फ्लैट मिले हैं, उनका पीछा करप्ट सिस्टम छोड़ नहीं रहा। नोएडा के सेक्टर 123 के आसपास के इलाके में ऐसे लोग रहते हैं, जिन्हें अपना फ्लैट पांच छह साल के इंतजार और बिल्डर से लंबी लड़ाई के बाद मिले। दो तीन साल ही चैन से गुजरे। लेकिन अब घर के बिल्कुल करीब कूड़ाघर लोगों का चैन छीन रहा है। सही नीति और सही नीयत नहीं होने का खामियाजा सभी को भुगतना पड़ रहा है।

प्रधानमंत्री मोदी का स्मार्ट सिटी मिशन VS सिस्टम की कारस्तानी

और अंत में प्रधानमंत्री मोदी के उस सपने की बात, जिसकी सिस्टम  ऐसी की तैसी कर रहा है। प्रधानमंत्री मोदी देश के शहरों को स्मार्ट सिटी बनाना चाहते हैं। स्मार्ट सिटी प्रधानमंत्री मोदी का ड्रीम प्रोजेक्ट है। शहरी विकास मंत्रालय की वेबसाइट http://smartcities.gov.in में स्मार्ट सिटी की जो परिभाषा बताई गयी है। उसके मुताबिक स्मार्ट सिटी में पर्याप्त जल आपूर्ति, स्वच्छता, सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम, सतत पर्यावरण, स्वास्थ्य, शिक्षा, सुशासन, -गवर्नेंस और नागरिकों की भागीदारी की पुख्ता व्यवस्था होनी चाहिए।
प्रधानमंत्री स्मार्ट सिटी बनाना चाहते हैं; सिस्टम स्मार्ट सिटी को कूड़ेदान में बदलना चाहता है।
स्मार्ट सिटी की परिभाषा कहती है पर्याप्त जल आपूर्ति; सिस्टम शहर के कूड़े के जरिए भूजल को तबाह कर रहा है, भूजल को जहर में तब्दील कर रहा है।
प्रधानमंत्री स्मार्ट सिटी को सतत पर्यावरण देना चाहते हैं; सिस्टम पर्यावरण को गंदी हवा से भर देना चाहता है।
प्रधानमंत्री स्मार्ट सिटी को स्वस्थ रखना चाहते हैं; सिस्टम प्रदूषित हवा और जहरीले भूजल के जरिए लोगों के स्वास्थ्य को दीमक की तरह खोखला करने पर उतारु है।
प्रधानमंत्री के स्मार्ट सिटी में सुशासन, -गवर्नेंस और नागरिकों की भागीदारी पर जोर है; सिस्टम की नजर में नागरिकों की कोई अहमियत नहीं। अगर होती, तो पिछले एक पखवाड़े से सिस्टम को अपनी आवाज सुना रहे लोगों की कोई सुन लेता। 

प्रधानमंत्री जी, कैसे फिट रहेगा इंडिया?

और सबसे आखिर में भारत के प्रधानमंत्री से नोएडा और ग्रेटर नोएडा के पांच लाख लोगों की तरफ से एक बात कहनी है। प्रधानमंत्री फिट इंडिया मूवमेंट का नारा दे  रहे हैं। योग का दुनिया भर में प्रचार कर रहे हैं। प्लीज बताइए, नोएडा और ग्रेटर नोएडा के पांच लाख लोग अपनी फिटनेस के लिए कहां जाएं? वो योग आसन कहां करें? लोगों को हरे भरे पार्कों की जरुरत थी। लेकिन सिस्टम ने कूड़ाघर बनाया है। क्या कूड़े के ढेर में बैठकर फिट बनेगा इंडिया? लोग पूछ रहे हैं कि सिस्टम द्वारा खराब हवा और पानी से फिट कैसे रहेंगे?

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