प्रधानमंत्री और उनके प्रेम में डूबा एक कवि, लंदन से भारत की बात का वर्ल्ड प्रीमियर
लंदन के वेस्टमिंस्टर
सेंट्रल हॉल में ‘भारत की बात, सबके साथ’ कार्यक्रम को लेकर एक हेडलाइन दिमाग में चिपक सी गयी है। एक
न्यूज चैनल ने लिखा – “लंदन से भारत की बात का वर्ल्ड प्रीमियर”। जैसा न्यूज चैनल्स की शब्दावली होती है। यहां ‘भारत की बात’ और ‘वर्ल्ड प्रीमियर’ को उद्धरण चिन्हों के बीच
रखा गया था। ऐसा जानबूझकर किया गया या ये अनजाने में हुआ। ये सवाल पूछा जा सकता
है। पर ‘वर्ल्ड प्रीमियर’ शब्द मेरे जेहन में अटक
गया है।
लंदन में भारत की बात सबके साथ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी |
बात भारत की थी, पर सवालों की पटकथा चुनावों के इर्द गिर्द बुनी गयी थी। स्क्रिप्ट राइटर ने दो
घंटे 20 मिनट की फिल्म को हिट कराने के लिए सारे मसाले डाले। पर हर मसाले में एक
तत्व समान था। हर डॉयलॉग में मोदी था। सूत्रधार हो या सामने की कुर्सी पर बैठे
प्रधानमंत्री, हर सवाल और उसका हर जवाब 2019 को ध्यान में रखकर गढ़ा गया।
इस कहानी में
पाकिस्तान था। सर्जिकल स्ट्राइक थी। रेप की घटनाएं थी। प्रधानमंत्री की फकीरी का
पूरा विवरण था। फकीरी से आगे की बात हुई। औलिया का जिक्र छिड़ा। दानवीर कर्ण की
तरह दान से भरे किस्सों को इस कहानी में जगह दी गयी थी। इस कहानी में बेहाली से
जूझते किसानों के लिए सोने से चमकते सुनहरे सपनों की दास्तान भी थी।
वैसे प्रधानमंत्री
मंच पर हों, तो माहौल हॉलीवुड की किसी फंतासी सा बन ही जाता है। मंच पर
भावनाओं के सारे रस उमड़ पड़ते हैं। आप नाम लीजिए, सारे मिलेंगे। कभी वो
दुश्मन को चुनौती देते हैं,
तो वीर रस का भाव आता है।
विपक्ष पर हमला कर दें, तो रौद्र रस। प्रधानमंत्री का हास्य बोध भी गजब
है। करुणा भी एक दो बार उनकी बातों में जरुर उमड़ती है। यहां भी ऐसा ही हुआ। किसी
रस की कमी संभव ही नहीं थी। साथ में मोदीत्व में डूबा एक कवि बैठा था और मोदी मोदी
के नारे लगाने में अभ्यस्त एक भीड़ भी थी।
लंदन में भारत की बात सबके साथ कार्यक्रम में प्रधानमंत्री मोदी |
कवि की कल्पना देखिए।
कवि ने पूरे दार्शनिक अंदाज में डूबकर लंबी सांसें भरकर पूछा – “आपको कुछ नहीं चाहिए। एक फकीरी है आपके नेचर में ! ये कैसे हुआ?” ऐसे सवाल सुनकर कौन न भावविभोर हो जाता।
प्रधानमंत्री भी हुए। एक मिनट तक वो भावों में खो से गए। फिर उन्होंने खुद को
संभाला। भावों से वापस आए, तो फकीरी पर पूरा विवरण बताया। व्याख्या और
संदर्भों के साथ। यहीं पर आकर औलिया का जिक्र छिड़ा। इस जवाब से कवि करुण रस से भर
गया। उसके मन में प्रधानमंत्री के लिए प्रेम एक ही पल में कई गुना बढ़ गया था। इस
तरह करुण रस से होते हुए कवि श्रृंगार रस में पहुंच गया।
एक कवि बेचारा छोटे
से मन में कितने आलोड़न संभाल सकता है। इसलिए अगला सवाल भीड़ की तरफ से पूछा गया। सवाल
था – “प्रधानमंत्री जी, बीस घंटे काम करना, कोई छोटा काम नहीं। मेरा सवाल है कि आपके अंदर ऊर्जा कैसे आती है?” ये सवाल प्रधानमंत्री के मनमाफिक था। वैसे सारे
सवाल ही थे। लेकिन यहां प्रधानमंत्री ने अपने दार्शनिक पहलू से लोगों को अवगत
कराया। एक कहानी सुनाई। और बताया कि जिस देश का वो बोझ उठा रहे हैं, वो उनका अपना है इसलिए बोझ जैसा महसूस ही नहीं होता। हर पल लगता
है, जैसे काम करता रहूं। बीच बीच में मोदी मोदी की ध्वनि
पार्श्व में उभरती। तालियां बजती। प्रधानमंत्री 20 सेकेंड का पॉज ले लेते। और फिर
क्रम आगे बढ़ता रहता।
इस कार्यक्रम में
प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान की ऐसी की तैसी कर दी। पाकिस्तान को दोटूक कह दिया। “पीठ पर वार करने के प्रयास होते हों, तो ये मोदी है, उसी की भाषा में जवाब देना जानता है।“ तो जिस वक्त
प्रधानमंत्री ने पाकिस्तान और आतंकवाद को तिरछी आंख दिखाई। अगली सुबह अखबार में एक
खबर साया हुई। केंद्रीय गृह मंत्रालय की सालाना रिपोर्ट के हवाले से इसमें लिखा था
– 2017 में 2016 के मुकाबले आम नागरिकों के हताहत होने के
मामले 166 फीसदी बढ़े। 2017 में 342 आतंकवादी हमले हुए। इन आतंकवादी घटनाओं में 40
आम नागरिक मारे गए। और सिक्योरिटी फोर्स के 80 जवानों को शहादत देनी पड़ी।
जिस वक्त
प्रधानमंत्री आतंकवाद पर सर्जिकल स्ट्राइक कर रहे थे। गृह मंत्रालय की रिपोर्ट बता
रही थी कि 2014 के बाद आतंकी घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं। 2013 में 170 आतंकी घटनाएं हुईं। 2014 में 222 घटनाएं, 2015 में 208 घटनाएं, 2016 में 322 घटनाएं और 2017 में 342 आतंकी घटनाएं हुईं। आंकड़े साफ हैं। पर सरकार समर्थक कह सकते हैं, सर्जिकल स्ट्राइक और पाकिस्तान पर प्रधानमंत्री की सख्ती का जबर्दस्त असर हुआ
है।
शुरू में जैसा कहा
गया, ये भारत की बात का ‘वर्ल्ड प्रीमियर था’। कवि के हर सवाल और प्रधानमंत्री के एक एक जवाब को सुनकर लगा, 2019 के चुनावी प्रचार का प्रीमियर लंदन से हो रहा है। 2019 से पहले कर्नाटक
की जंग जीतनी है। इसलिए सवालों में कर्नाटक के संत बसवेश्वर को डाला गया। इसके
बहाने प्रधानमंत्री ने लिंगायतों पर निशाना साधा। लिंगायत कर्नाटक में चुनाव
जिताने का रास्ता हो सकते हैं। इसलिए संत बसवेश्वर की शिक्षाओं पर एक छोटा
व्याख्यान हुआ।
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