हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Friday, March 9, 2018

चल किसान, लॉन्ग मार्च पर निकलें

महाराष्ट्र में नासिक से मुंबई के बीच चल रहे किसानों के लॉन्ग मार्च पर 5 कविताएं।

  • जितेंद्र भट्ट

(1)
चल किसान, चल
लॉन्ग मार्च पर निकलें
चल दिखाते हैं
उनको अपनी ताकत
अपना एक सा दर्द का समंदर
अपनी एक सी भूख, प्यास
एक जैसे दुख के अंबार
उम्मीदों का एक सा पहाड़
आंखों पर पलते एक से सपने
छोटी छोटी चाहतों के मासूम से अहसास
चल किसान, चल
लॉन्ग मार्च पर निकलें


 
(2) 
चल दिखाएं, हाथों के छाले
पैरों की फटी एड़ियां
पैंतीस की उम्र में माथे पर पड़े बल
और सर पर छितराए बाल
ढेर सारी परेशानी, हैरानी और मलाल
चल दिखाते है
पेट खाली दिखाते हैं
चल किसान, चल
लॉन्ग मार्च पर निकलें
करें कूच, मुंबई की तरफ
लॉन्ग मार्च पर निकलें

 
Credit : Google Search
(3)
चल आह दिखाते हैं
सीने में बसा गम
अनकहा दर्द दिखाते हैं
गले के नीचे फंसी सांस लेकर
आंखों में धंसी आस लेकर
उम्मीदों की लाश लेकर चल
घर के कोने में पड़ी टीस उठाकर
पेट की भूख और प्यास लेकर चल
फटेहाल सपनों का बोझ
चल साथ उठाते हैं
चल किसान, चल

लॉन्ग मार्च पर निकलें
Credit : Google Search


(4)


बेटी के आंखों के सपने लेकर चलते हैं

बहन की राखी लेकर चल

उस मां का दर्द लेकर चलते हैं
जिसके बेटे को कर्ज ने मारा
उस बेवा का चीख लेकर चल
जिसका मर्द दो बच्चे छोड़ गया पीछे
उन बच्चों की गहरी आंखों का भाव लेकर
चल किसान, चल
लॉन्ग मार्च पर निकलें

(5)
चल कुछ रात, सर्द हवाओं में बिताएं
ठंडी नश्तर सी हवा खाते हैं
चल गांव से बाहर निकलें
दिन में कुछ तपते तपाते हैं
कुछ घिसते हैं, पैरों के तलवे
रात को गांव से कोसों दूर 
सो जाएंगे, बेघर 
चल किसान, चल
लॉन्ग मार्च पर निकलें

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