भाषणों के राजा को सम्मान सहित समर्पित
जिधर तक देखो। दूर
दूर तक झंडे ही झंडे दिख रहे थे। शहर के एक छोर से दूसरे छोर तक झंडों को करीने से
लगा दिया गया था। झंडों का रंग, लाल,
केसरिया, भगवा या इन्हीं के मिश्रण जैसा कुछ था। मंच पर नेताजी के आने में
थोड़ा वक्त था। तो दृश्य कुछ ऐसा था, जैसे टी ट्वेंटी मैच की पहली बॉल फेंकी जानी हो।
फास्ट बॉलर पहली बॉल फेंकने के लिए अपने पैर के पंजे जमीन पर रगड़ रहा हो। और
पवेलियन की हजारों कुर्सियों पर बैठे दर्शक समवेत स्वर में इंडिया इंडिया इंडिया।
या धोनी धोनी धोनी चिल्ला रहे हों।
वैसे तो ये एक
नेताजी की सभा थी। लेकिन जोश और जुनून क्रिकेट या फुटबॉल मैच से जरा भी कम न था। मंच
के सामने की तरफ के मैदान को पवेलियन मान लिया जाए। और कार्यकर्ताओं की भीड़ को
दर्शक। तो इस तरह समझिए कि माहौल इलेक्ट्रिफाइंग था। जैसा हर बार होता है। उसी तरह
के रोमांच के इंतजार में हजारों कार्यकर्ता बेचैन हुए जा रहे थे। उनकी आंखों की
पुतलियां एक जगह पर स्थिर हो गयी थी। और वो कभी मंच की तरफ तो कभी आसमान की तरफ
देख रहे थे। अभी हेलीकॉप्टर दिख नहीं रहा था।
नेताजी भाषणों के
बाजीगर हैं। भाषण की बात हो, तो यहां क्रिकेट की तरह फास्ट बॉलर की ज्यादा
पूछ नहीं है। फन के इस मैदान में स्पिनर चाहिए। तो हमारे नेताजी भी भाषणों के
स्पिन की कला में माहिर हैं। उनके गुगली भाषणों की पूरी दुनिया में धूम मच रही है।
अक्सर विरोधियों को समझ ही नहीं आता। नेताजी की गुगली का क्या जवाब दें। कार्यकर्ता
और नेताजी के समर्थक भी कई बार उनकी गुगली को भांप नहीं पाते। लेकिन उन्होंने कभी
ये जाहिर नहीं होने दिया। हर बार वो यही कहते हैं, लपेट दिया नेताजी ने। अब
तो लोग इतिहास के पन्नों में दर्ज कई नामचीन भाषणबाजों से नेताजी की तुलना करने
लगे हैं। सच बात तो ये है कि तुलना करने वाले हमारे नेताजी को पहली पायदान पर खड़ा
करते हैं। इनका मानना है कि नेताजी जैसा आजतक कोई पैदा ही नहीं हुआ। इन लोगों का
मानना है कि नेताजी ने भाषण की कला को नए मुकाम पर लाकर खड़ा कर दिया है।
दरअसल नेताजी हैं ही
ऐसे। जब नेताजी इतिहास पर बोलते हैं, तो लगता है वर्तमान चल रहा है। और जब वो वर्तमान
की बात करते हैं, तो सारे अखबार बड़ी हेडलाइंस लगाते हैं। नेताजी
का ऐतिहासिक भाषण। दरअसल हमारे नेताजी तारीफ के पूरे हकदार हैं। जब वो बोलते हैं, लगता है बिना संगीत के गजल बह रही है। उनका आरोह स्वर, वाह वाह। अवरोह की बात ही क्या करना? और फिर जब वो ऊपर के सुर पर
जाकर, अचानक ब्रेक लगाते हैं। तो पब्लिक पागल हो जाती है। और फिर
वही, समवेत स्वर में धोनी धोनी धोनी।
कहने का मतलब ये है
कि नेताजी भाषणबाजी की कला के गुलाम अली हैं। वही गुलाम अली, जिन्हें दुनिया गजल गायकी का ‘बादशाह’ कहती है। जिस तरह गुलाम
अली गजल सुनाते सुनाते सामने बैठी आडिएंस की ताली और हर वाह वाह पर रिस्पांस देते
हैं। और गजल का वो शेर दोहरा देते हैं। जिस पर ताली मिली थी। नेताजी भी कार्यकर्ताओं
का जोश भांप लेते हैं। नेताजी कार्यकर्ताओं की हर हरकत का मतलब समझते हैं। भाषण की
जिस लाइन पर कार्यकर्ता की दाद मिलती है। वहां वो थोड़ी देर ठहर कर कार्यकर्ता की
दाद का पूरा मजा लेते हैं। और फिर जैसे शायर दाद मिलने पर शेर को दोहराता है। वैसे
ही नेताजी भी अपनी बात को दोहराते हैं। सच मायने में नेताजी भाषण कला के सिद्धपुरुष
हैं।
जैसे नेताजी
कार्यकर्ता के मन की बात जानते हैं। उसी तरह कार्यकर्ता भी नेताजी को खूब पहचानते
हैं। जैसे ही नेताजी अपनी बात दोहराते हैं, कार्यकर्ता समझ जाते हैं कि
नेताजी को क्या चाहिए? और फिर तालियां तालियां। धोनी धोनी धोनी। नेताजी
के भाषणों का सिलसिला लंबे वक्त से चल रहा है। नेताजी ने बकायदा भाषणबाजी का रियाज
किया है। नेताजी ने शुरू में आधे आधे घंटे से शुरू किया। अब अच्छा स्टेमिना हो गया
है। तो नेताजी कभी आधा घंटा, कभी एक घंटा और कभी कभी इससे भी ज्यादा देर तक
प्रस्तुति देते हैं। पर कार्यकर्ता कभी बोर नहीं होते। वो हर बार जब भी भाषण सुनकर
मैदान से बाहर निकलते हैं। तो उनके चेहरे पर एक अनदेखी से खुशी दिखती है। हर बार
एक ही भाव दिखता है। कमाल हैं यार हमारे नेताजी। क्या बात है। ऐसा कैसे कर लेते
हैं? वाह वाह।
नेताजी का लक्ष्य है
कि वो भाषण देने का रिकॉर्ड बनाएं। सबसे लंबा भाषण देने का रिकॉर्ड। कार्यकर्ताओं
का हौसला देखकर नेताजी का खुद पर विश्वास मजबूत होता जा रहा है। उन्होंने तय कर
लिया है कि वो 2022 तक देश में सबसे लंबा भाषण देने का रिकॉर्ड कायम करेंगे। नेताजी
का मानना है कि ये उनकी तरफ से आजादी के पिछहत्तर साल पूरे होने पर देशवासियों को
एक ट्रिब्यूट होगा।
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