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Thursday, October 26, 2017

इतिहास बदला जाएगा… इतिहास बदल रहा है !



इन दिनों एक सवाल मेरे जेहन में बार बार आ रहा है। क्या हम एक 'आक्रमणकारी समाज' में तब्दील हो रहे हैं? क्या एक समाज के रुप में हम पर 'आक्रमणकारी विचार' हावी हो रहे हैं? कुछ लोग इस सवाल और ख्याल को बेतुका कह सकते हैं। इसे खारिज करने के कई तर्क तो मेरे पास भी हैं। पर बार बार सोचने के बावजूद ये ख्याल दूर नहीं जा रहा है।
आक्रमणकारी विचारों से भरे समाज का ख्याल जो मेरे जेहन में उभरा है। वो यूं ही नहीं पैदा हुआ। पिछले कुछ दिनों में समाज के अंदर से उठ रही कुछ आवाजें इसका इशारा दे रही हैं। अपनी बातों को आगे बढ़ाऊं। उन आवाज़ों पर एक नज़र डालिए, जिसने मुझे आक्रमणकारी विचार के बारे में सोचने पर मजबूर कर दिया है।

ताजमहल की एक तस्वीर मेरे कैमरे से
 

ताजमहल विरासत है या धब्बा ?

कुछ मीडिया हेडलाइन्स पर गौर करिए। इनमें से एक वो है जिसके केंद्र में बीजेपी के चर्चित विधायक संगीत सोम हैं। संगीत सोम आम विधायक नहीं हैं। अपने बयानों की वजह से चर्चा में बने रहते हैं, या कहें विवादों में। पर इससे क्या होता है? ये तो गालिब के चेले हैं, जैसे बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा। तो इन्हें बदनामी से गुरेज नहीं।
बीजेपी के ये विधायक संगीत सोम, इस आक्रमणकारी लहजे के ताजा उदाहरण हैं। जब संगीत सोम ताजमहल को भारतीय संस्कृति पर धब्बा कहते हैं, तो इसके पीछे के विचार को समझने की जरुरत ज्यादा है। मतलब तो यही है कि अगर कहीं धब्बा है, तो उसे मिटाए जाने की जरुरत पड़ती है।
ndtv.com की एक खबर का स्क्रीन शॉट

ताजमहल कैसा इतिहास? कहां का इतिहास?


संगीत सोम ने मेरठ की एक सभा में क्या कहा – “उत्तर प्रदेश में एक ऐसी निशानी, मुझे नहीं कहना चाहिए। बहुत लोगों को बहुत दर्द हुआ कि आगरा का ताजमहल ऐतिहासिक स्थलों में से निकाल दिया गया। कैसा इतिहास? कहां का इतिहास? कौन सा इतिहास? क्या वो इतिहास, "ताजमहल को बनाने वाले ने अपने बाप को कैद किया था?" क्या वो इतिहास कि ताजमहल बनाने वाले ने उत्तर प्रदेश और हिंदुस्तान से सभी हिंदुओं का सर्वनाश करने का काम किया था? ऐसे लोगों का अगर आज भी इतिहास में नाम होगा तो ये दुर्भाग्य की बात है। और मैं गारंटी के साथ कहता हूं, कि इतिहास बदला जाएगा। इतिहास बदल रहा है।
वेबसाइट scroll.in की एक खबर का स्क्रीन शॉट

इतिहास बदला जाएगाइतिहास बदल रहा है !

संगीत सोम खुलकर ताजमहल के इतिहास को बदलने की बात करते हैं। वो कहते हैं कि इतिहास बदल रहा है। जब वो ताजमहल को केंद्र में रखकर कहते हैं कि कौन सा इतिहास? तो क्या इशारा भारतीय संस्कृति पर इस कथित धब्बे को मिटाने की तरफ है? ताजमहल के संदर्भ में देखें तो क्या ये एक आक्रमणकारी विचार नहीं है?

इतिहासकार पी एन ओक और तेजोमहालय का विचार

जाहिर है संगीत सोम के इस विचार से सहमत लोग कहेंगे, ताजमहल तो तेजोमहालय था। जैसा महान इतिहासकार पी एन ओक ने अपनी पुस्तक The Taj Mahal is Tajo Mahalya – A Shiva Temple और The Taj Mahal Is A Temple Place में साबित किया है।


हिंदुस्तान की विरासत और अनमोल रतन है ताजमहल

जिस तरह संगीत सोम ने ताजमहल को भारतीय संस्कृति पर धब्बा बताया। उससे उनकी पार्टी का बड़ा चेहरा और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहमत नहीं है। उन्होंने संगीत सोम के बयान को अपने दूसरे बयान से खारिज कर दिया। जिसमें उन्होंने ताजमहल को हिंदुस्तान की विरासत कहा। और 26 अक्टूबर को ताजमहल देखने आगरा चले आए। तो इस तरह से ताजमहल पर आक्रमणकारी विचार को आया गया मान लेना चाहिए।
योगी आदित्यनाथ के इस बयान को सुनकर एकबारगी लग सकता है कि संगीत सोम का बयान एक शख्स की गलत बयानी है। लेकिन क्या सच में ऐसा है? संगीत सोम ने जो कहा, वो एक सोचा समझा विचार लगता है। जिसे कुछ संगठन धीरे धीरे फैलाते जा रहे हैं। ऐसा क्यों है, इसे समझते हैं।
वेबसाइट aljazeera.com की एक खबर का स्क्रीन शॉट

इतिहास को फिर से लिखने की जरुरत है?

संगीत सोम के विचार को बीजेपी के एक और बड़े नेता विनय कटियार ने आगे बढ़ाया। विनय कटियार महान इतिहासकार पी एन ओक के शोध से पूरी तरह सहमत हैं। बीजेपी के एक और नेता सुब्रमण्यम स्वामी भी ताजमहल को लेकर इसी तरह का विचार रखते हैं। और सबसे अहम बात, बीजेपी को विचार देने वाले संगठन आरएसएस से निकलती है। ताजमहल भारतीय संस्कृति पर धब्बा है या नहीं, आरएसएस के वरिष्ठ नेता इंद्रेश कुमार इस विषय को बड़े परिप्रेक्ष्य में लेकर जाते हैं। इंद्रेश कुमार कहते हैं, इतिहास को फिर से लिखने की जरुरत है। इसके पीछे इंद्रेश कुमार के अपने तर्क हैं। 

सिर्फ योगी आदित्यनाथ हैं, जो ताजमहल को विरासत और अनमोल रतन बता रहे हैं। उन्हीं की पार्टी और संगठनों से जुड़े लोग ताजमहल के बारे में ऐसे विचार नहीं रखते। अगर विनय कटियार, सुब्रमण्यम स्वामी और इंद्रेश कुमार योगी के विपरीत विचार रखते हैं, तो इसे आम बात नहीं मानना चाहिए। क्योंकि ये आम लोग नहीं हैं।
दरअसल जिस धब्बे को मिटाने की बात अनकहे तौर पर प्रतिपादित की जा रही है। उसी को सुने और समझे जाने की जरुरत है। समझना जरुरी है कि क्या संगीत सोम जैसे नेता जो कहते हैं, वो अचानक कही बात है? या फिर एक रणनीति का हिस्सा
वेबसाइट economictimes.com की एक खबर का स्क्रीन शॉट

एक ताजमहल पर एक संगठन की दो बातें

योगी आदित्यनाथ ताजमहल को विरासत कहते हुए, एक बार आपको संगीत सोम के विरुद्ध ध्वनि देते प्रतीत होते हैं। लेकिन वो विरासत के साथ एक और बात जोड़ देते हैं। योगी आदित्यनाथ बार बार कह रहे हैं कि ताजमहल भारतीय मजदूरों के खून पसीने से बना है। इसलिए ये सवाल मत करो कि इसे किसने बनाया और कब बनाया? मतलब योगी आदित्यनाथ ताजमहल को विरासत और अनमोल रतन बताने के बावजूद इसे बनवाने वाले बादशाह शाहजहां को तवज्जो देने से बच रहे हैं। योगी आदित्यनाथ एकबार भी ये नहीं कह रहे हैं कि ताजमहल को शाहजहां ने बनाया। आप कह सकते हैं कि ऐसा उन्हें कहने की जरुरत भला क्यों है? सोचिए, क्या ये मूल सवाल का सरलीकरण तो नहीं है
वेबसाइट hindustantimes.com की खबर का स्क्रीन शॉट

क्या इतिहास के पुनर्लेखन से पैदा होगी सांस्कृतिक श्रेष्ठता?

बीजेपी नेता सुब्रमण्यम स्वामी की राय ताजमहल को लेकिर आरएसएस की लाइन पर है। स्वामी कहते हैं कि ताजमहल, लालकिला जैसी इमारते विदेशी शासकों ने बनवाई हैं। ये हमारी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा नहीं हैं। ये इतिहास की एक घटना की गवाह मात्र हैं। लिहाजा इन्हें इसी रुप में देखना और आने वाली पीढ़ियों को दिखाना चाहिए। यहां भी इतिहास के पुनर्लेखन की बात है। हालांकि स्वामी एक और बात कहते हैं - हम तालिबान नहीं हैं कि इतिहास की गवाह रही बुद्ध की मूर्तियों को तोड़ डालें। 
सौजन्य : wikipedia; बामियान में बुद्ध की प्रतिमा का ध्वंस

वो आक्रमणकारी पन्ने जब इतिहास और संस्कृति मारी गयी

इसी के साथ मैं इतिहास के उन आक्रमणकारी अध्यायों के बारे में सोचने लगा। जब एक आक्रमणकारी ने सोमनाथ के मंदिर को अपनी लूट के लिए तहस नहस कर दिया। संगीत सोम की तरह सोचने वाले इस आक्रमण पर अक्सर आंसू बहाते हैं। ऐसा कई और मंदिरों के लिए भी कहा जाता है। 
2001 में अफगानिस्तान में तालिबान आक्रमणकारियों ने अपनी इस्लामिक संस्कृति की श्रेष्ठता को स्थापित करने लिए बामियान में बुद्ध की उन प्रतिमाओं को धवस्त कर दिया, जो ऐतिहासिक धरोहरों में शामिल रही हैं। इस आक्रमण के कई सालों बाद बुद्ध की इन प्रतिमाओं को पुराना स्वरुप दिया गया है। 
सौजन्य : wikipedia
इराक में आतंकी संगठन आईएसआईएस ने शिया मस्जिदों को आक्रमण करके ध्वस्त कर दिया। ज्यादातर वो ऐतिहासिक इमारते निशाना बनीं, जो शिया मुस्लिमों से ताल्लुक रखती थीं, या ईसाई धर्म से।
इराक में शिया मस्जिदें आक्रमणकारियों का निशाना बनाई गयी। इसपर शिया लोग सहानुभूति की मांग करेंगे। लेकिन आक्रमणकारी यहां भी हैं। तभी शिया वक्फ बोर्ड ने कहा हुमांयू के मकबरे को तोड़कर यहां कब्रगाह बना देनी चाहिए।
 
सौजन्य : wikipedia
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सौजन्य : wikipedia

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dailypioneer.com की एक खबर का स्क्रीन शॉट

संस्कृति का विस्तार तोड़फोड़ से या साझा समझ से?

अंत में आक्रमण करके किसी इमारत को तोड़ देने और आक्रमणकारी विचार में फर्क क्या है? इसे समझने की जरुरत है। बामियान में बुद्ध की प्रतिमा तो किसी एक तारीख के किसी एक लम्हे में टूटी। लेकिन बुद्ध की उस ऐतिहासिक मूर्ति या कहें विरासत को तोड़ने का आक्रमणकारी विचार तो सिर्फ उस लम्हे में नहीं आया होगा। तालिबान की संस्कृति ने इस विचार को पैदा किया, फिर आगे बढ़ाया, फैलाया और इतना मजबूत कर दिया कि फिर दूसरे विचार बेमानी से हो गए। ऐसा ही इराक और सीरिया में आईएसआईएस के आतंकियों ने किया। 

सवाल ये है कि क्या संस्कृति का विस्तार आक्रमणकारी विचार और तोड़फोड़ से होगा? या फिर इस विस्तार के लिए हम एक दूसरे के साथ साझा समझ पैदा करेंगे, जैसा असली भारतीय संस्कृति हजारों बरस से रही है। संस्कृत में - सर्व धर्म समभाव। ऊर्दू लहज़े वाली हिंदी में गंगा जमुनी तहज़ीब। और अंग्रेजी समझने वालों के लिए – Unity in Diversity.
संस्कृति का विस्तार इसी समझ और विचार से होगा। आक्रमणकारी विचार से नहीं।    

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