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बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Friday, October 6, 2017

कुछ तस्वीरों को मीडिया क्यों छिपा रहा है?



कुछ तस्वीरें दिमाग में अटक जाती हैं। और यहीं पर आकर पत्रकारिता में पढ़ाया जाने वाला एक सिद्धांत सच साबित होता है। जो कहता है, “एक तस्वीर हजार शब्दों से ज्यादा कीमती होती है।
मतलब “A picture is worth a thousand words.” एक तस्वीर की अहमियत को अखबारों के संपादकों ने सौ साल से भी ज्यादा पहले समझ लिया था। 106 साल पहले 1911 में अमेरिका के Syracuse Post Standard अखबार के पत्रकार और एडिटर Tess Flanders ने एक आर्टिकल में एक पिक्चर (तस्वीर) की अहमियत की बात की। उसी आर्टिकल में उन्होंने “A picture is worth a thousand words.”लिखा।

दो तस्वीरें, दिमाग में अटक गयी हैं

खैर, मैं पत्रकारिता के सिद्धांतों की बात नहीं करना चाहता। आपको दो तस्वीरें दिखानी हैं। पहले तस्वीर देखिए।
राजस्थान के जयपुर में किसानों का सत्याग्रह (सौजन्य: Google Search)
 
मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में थाने में किसान (सौजन्य: Google Search)
पहली तस्वीर, राजस्थान की राजधानी जयपुर के बाहरी इलाके की है। तस्वीर में दो चीजें साफ साफ दिख रही हैं। पहली, कुछ लोग हैं। और दूसरा, एक गड्ढा है। लोग उसमें धंसे हुए हैं। आप कहेंगे, इस वक्त तो पूरा देश ही एक गहरे दुष्चक्र में धंसा है। गरीब तो हमेशा से परेशानियों के पहाड़ के नीचे धंसा हुआ था। खैर, गड्ढे हों या दिक्कतें या बीमारी। इन बातों में एक चीज कॉमन है। ये कहीं भी हों। इनमें गिरा, धंसा और फंसा जो जीव आपको दिखाई देगा। उसका नाम गरीब है। जिसे इन दिनों लोग किसान, मजदूर, छोटा दुकानदार, बेरोजगार कहते हैं। 
राजस्थान के जयपुर में किसानों का सत्याग्रह (सौजन्य: Google Search)

तो तस्वीर में गड्ढे में धंसे दिख रहे लोग किसान हैं। और अपनी जमीन को सरकार के कब्जे में जाने से बचाने की कोशिश कर रहे हैं। सब जानते हैं, इनका सरकार से जीत पाना बहुत मुश्किल है।  
इस तस्वीर के बारे में थोड़ा बता दूं। जयपुर विकास प्राधिकरण ने इस शहर के बाहरी इलाके के नींदड़ गांव के किसानों को एक नोटिस थमाया है। इस नोटिस में किसानों से उनकी 1350 बीघा जमीन खाली करने को कहा गया है। पर किसान इससे इनकार कर रहे हैं। और दो अक्टूबर से गड्ढे बनाकर समाधि पर बैठ गए हैं।
तस्वीर से बात शुरू हुई। तस्वीर देखकर आप किसानों से कुछ कहना चाहेंगे? या सरकार के लिए आपकी कुछ राय है

अब दूसरी तस्वीर देखिए। ये मध्य प्रदेश का टीकमगढ़ है। 
मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में थाने में किसान (सौजन्य: Google Search)

किसानों ने खेतों में बीज बोए। बारिश अच्छी नहीं हुई। सूखे जैसे हालात बन गए। किसान की पूरी मेहनत खराब हो गयी है। चार बहुत छोटे से वाक्यों में कही गयी बात सरकार को समझ नहीं आई। तो किसान तीन अक्टूबर को सरकार से गुहार लगाने टीकमगढ़ कलेक्ट्रेट पहुंच गए। देश का हैरान, परेशान आदमी एक काम कर सकता है। धरना, प्रदर्शन और विरोध। टीकमगढ़ के किसानों ने भी यही किया। अखबारों की सुर्खियां बता रही हैं कि किसान 45 मिनट तक प्रोटेस्ट करते रहे। कलेक्टर साहब ज्ञापन लेने के लिए नहीं आए। किसानों का गुस्सा बढ़ा तो पथराव शुरू हो गया। पुलिस ने लाठीचार्ज किया, आंसू गैस छोड़ी। और प्रोटेस्ट कर रहे किसानों को पकड़कर थाने ले आई।
ये पूरी कहानी का बैकग्राउंड है। थाने में लाकर पुलिस ने किसानों के कपड़े उतरवा दिए। यही तस्वीर है। पुलिस ने ऐसा क्यों किया? वैसा क्यों नहीं किया? ये सिर्फ सवाल हैं। तस्वीर देखकर आपको कैसा महसूस होता है? किस पर गुस्सा आता है? किसे कोसने का मन करता है? ये सब आपकी संवेदनाओं पर निर्भर करता है।
क्या ऐसी तस्वीर आपने पहले देखी थी? मैंने तो कभी नहीं देखी। पानी में डूबे किसानों को देखा। जंतर मंतर पर बैठे तमिलनाडु के किसानों को नरकंकाल के साथ देखा। लेकिन जमीन खोदकर खुद को उसमें धंसा लेते नहीं देखा।
राजस्थान के जयपुर में किसानों का सत्याग्रह (सौजन्य: Google Search)

पुलिस की लाठी खाते किसानों को देखा। गोली खाते देखा। पत्थर खाते भी देखा। पर थाने में नंगे किसानों को नहीं देखा। जैसा टीकमगढ़ मध्य प्रदेश में देखा।

टीवी चैनल्स ने इन तस्वीरों को क्यों छिपाया?

तो क्या आपने गौर किया था? टेलीविजन चैनलों की स्क्रीन पर ये तस्वीरें प्रमुखता से नहीं दिखाई दीं। विजुअल्स के लिए भागने दौड़ने वाले टीवी न्यूज़ चैनल्स ने हजार शब्द समेटे इन तस्वीरों को सिरे से खारिज क्यों किया होगा? सोचना तो जरुर चाहिए। वो भी तब जब न्यूज चैनल्स हनीप्रीत की एक स्टिल तस्वीर पर चौबीस घंटे खबर चला रहे हैं। तो जयपुर और टीकमगढ़ की तस्वीरों में ऐसी कौन सी बात रही होगी, जो टीवी न्यूज चैनल चलाने वाले संपादकों को इसमें इंटरेस्ट नहीं दिखा।
कुछ संभावनाओं पर विचार कीजिए।
राजस्थान और मध्य प्रदेश बीजेपी शासित राज्य हैं।
दोनों राज्यों की ब्रैंडिंग कुछ इस तरह की गयी है, जैसे यहां किसान सबसे ज्यादा खुशहाल हैं।
तो मरते किसान, रोते किसानों की ये तस्वीरें दिखाने से, उस ब्रैंडिंग को खतरा हो सकता है।
किसानों की बदहाली की बात दिखाकर मोदी सरकार के न्यू इंडिया इमेज पर धब्बा लगता है।
ऐसी तस्वीरें प्रधानमंत्री के दावे पर चोट करती हैं।
और सरकार के तमाम दावे और अच्छे दिनों की तस्वीर बदरंग हो जाती है।
इनमें से कोई भी एक या सभी बातें सच हो सकती हैं। संभव हो एक भी बात सच न हो। तो कोई एक बात जरुर होगी। क्या है वो बात, इन तस्वीरों को देखते रहिए और इस सवाल के जवाब तलाशिए। बहुत जरुरी है। सच्ची तस्वीर देखना।

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