प्रेम बंद है : एक लघु-कथा
सन 1266 में दिल्ली
की गद्दी पर सुल्तान ग्यासुद्दीन बलबन की ताजपोशी हुई।
सुल्तान ने अपने
दरबार में हंसने और मजाक करने पर रोक लगा दी।
बड़े ओहदों पर बैठे
सरदारों का हंसना मजाक करना बंद हो गया।
धीरे धीरे सल्तनत की
आम जनता हंसने से घबराने लगी।
बहुत साल बाद उत्तर
देश में एक और राजा हुआ।
राजा को किसी ने
बताया दिया था कि छेड़खानी बड़ी समस्या है।
गद्दीनशीन होते ही
राजा ने हुक्म सुनाया।
पार्क, बाजार, कॉलेज के आसपास लड़के न दिखाई दें।
कारिंदे जैसे हुक्म
के इंतजार में बैठे थे।
“प्रेम विरोधी दल” बनाए गए।
वो अपनी टोली के साथ
पार्क और बाजारों की तरफ निकल पड़े।
पार्क में प्रेमी
जोड़े बैठे थे। बाजारों से भी कुछ जोड़े निकल रहे थे।
“प्रेम विरोधी दल” ने जो सामने दिखा पकड़
लिया।
प्रेमिका के सामने
प्रेमी से कान पकड़वाए।
आगे से खुलेआम प्रेम
न करने की शपथ दिलवाई।
और सख्त हिदायत के
साथ छोड़ दिया।
कुछ लड़के अपने घर
की गली के सामने से गुजरते दिखाई दिए।
“प्रेम विरोधी दल” ने तुरंत पकड़ा।
सवाल पूछे – यहां क्या कर रहे हो
लड़के सकपका गए…म ..म..म मेरा घर है यहां
“प्रेम विरोधी दल” का लीडर कड़क आवाज में बोला – साबित करो
“प्रेम विरोधी दल” पर राजा के हुक्म को तामील
कराने की जिम्मेदारी थी।
धीरे धीरे कॉलेज, पार्क, बाजारों से लड़के गायब हो गए।
प्रेमी अपनी
प्रेमिकाओं के साथ घर से बाहर निकलने से घबराने लगे।
ये सिलसिला लंबा
चला।
धीरे धीरे उत्तर देश
में प्रेम खत्म हो गया।
राजा अपनी इस
उपलब्धि पर धीरे से मुस्कराया।
मंत्री हंसने लगे।
कारिंदे जोर से
हंसे।
और राजा के चाहने
वाले ठहाके लगा रहे थे।
(डिसक्लेमर : ये कहानी और इसके पात्र काल्पनिक हैं, इनका किसी की निजी जिंदगी से मिलता जुलता होना एक संयोग हो सकता है। कुछ बातें इतिहास से ली गयी हैं। )
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