आएगी सुबह
जैसे आज सुबह
घने अंधेरे से फूटी थी किरणें
जैसे नन्ही कली... ओस से दबी
खिली थी धूप में
जैसे रात की ठंड में सिकूड़ी नाजुक तितली
चहक रही थी... सुबह-सुबह
जैसे अमावस के बाद
चांद फिर उभरा था
वैसे ही उदासी का ये पल भी बीतेगा
दुख जाएगा
खुशियां लौटेंगी ।।
Labels: मेरी कविता
4 Comments:
नव वर्ष की शुभकामनाएं.
सुन्दर रचना.
वर्ष २०१० मे हर माह एक नया हिंदी चिट्ठा किसी नए व्यक्ति से भी शुरू करवाने का संकल्प लें और हिंदी चिट्ठों की संख्या बढ़ाने और विविधता प्रदान करने में योगदान करें।
- यही हिंदी चिट्ठाजगत और हिन्दी की सच्ची सेवा है।-
नववर्ष की बहुत बधाई एवं अनेक शुभकामनाएँ!
समीर लाल
उड़न तश्तरी
ACHCHHA PRAYS...BADHAYEE
आपकी यह कविता आशावादी है.... जैसे कहती हो ......मन में है विश्वास पूरा है विश्वास हम होंगे कामयाब ......एक दिन .
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