हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Tuesday, July 21, 2009

चाहतें

वे कहते हैं
कितनी छोटी-छोटी हैं उनकी चाहतें
मानो वे कुछ नहीं चाहते
वे पेड़ों को काटना नहीं चाहते
उनका हरापन चूस लेना चाहते हैं
वे पहाड़ों को रौंदना नहीं चाहते
उनकी दृढ़ता निचोड़ लेना चाहते हैं
वे नदियों को पाटना नहीं चाहते
उनके प्रवाह को सोख लेना चाहते हैं
अगर पूरी हो गयीं उनकी चाहतें
तो जाने कैसी लगेगी दुनिया !


-मदन कश्यप

'लेकिन उदास है पृथ्वी' संग्रह से

2 Comments:

At July 21, 2009 at 8:52 AM , Blogger श्यामल सुमन said...

गहरे भावयुक्त रचना की प्रस्तुति। धन्यवाद।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com

 
At July 21, 2009 at 9:54 AM , Blogger Udan Tashtari said...

सच कहा-सोच कर भी भय होता है. अच्छी रचना.

 

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