हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Thursday, June 25, 2009

ये भी सबको कहां मिलता है ?

चलो जीतने दो उसको
आज नहीं दौड़ना मुझको
उसे खुश होने दो आज
मुझे हार जाने दो ।।

चलो रंग भर दो
उसके फलक पर
मेरे हिस्से के भी सारे
मुझे थोड़ा सा काला
और सफेद दे दो ।।

सुर उसके कानों में भर दो
सारेगामापा सारे
मुझे सुनने दो
वक्त की कड़वी तान ।।
उसकी सुबह कर दो चमकदार
बिखेर दो सारी किरणें
मुझे शाम का थोड़ा अंधेरा
थोड़ा सा उजाला दे दे ।।

उसको प्यार दे दो ढेर सारा
और मीठी मीठी बातें भी
मुझे दो
प्यार कर सकने का और भरोसा
और सहने दो मुझे
बार-बार खोने का अहसास ।।

बहुत कुछ है
वैसे तो मेरे इर्द गिर्द यहां ।।
लेकिन सब कुछ होना
और फिर नहीं होना
दुख के दूसरे छोर तक जाना
और फिर लौटना
ये भी सबको कहां मिलता है ?

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3 Comments:

At June 25, 2009 at 10:29 AM , Blogger Nidhi said...

चलो जीतने दो उसको

आज नहीं दौड़ना मुझको
उसे खुश होने दो आज
मुझे हार जाने दो ।।


चलो रंग भर दो
उसके फलक पर
मेरे हिस्से के भी सारे
मुझे थोड़ा सा काला
और सफेद दे दो ।।

Good...

 
At June 25, 2009 at 6:30 PM , Blogger Udan Tashtari said...

बेहतरीन!

 
At June 26, 2009 at 12:17 AM , Blogger नीरज गोस्वामी said...

सुर उसके कानों में भर दो
सारेगामापा सारे
मुझे सुनने दो
वक्त की कड़वी तान

वाह जीतेन्द्र जी वाह...बहुत सुन्दर भावः हैं आपकी रचना के...शब्द चयन भी अनूठा है...बहुत प्यारी रचना.
नीरज

 

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