हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Saturday, May 9, 2009

'मां'

( मां के लिए... जिसने बचपन से आज तक हर दम जीने का अहसास दिया है। )

तुम शक्ति हो / शक्तिशाली
तुममें उर्वरता है / अंकुरण क्षमता भी
तुममें है / सह सकने की क्षमता
तुममें लोचकता है
आकर्षण भी / उच्च कोटि का बसता है
तुममें ममता का रस / हरदम रिसता है
तुम पा लेती हो / शब्दों की गहराई
तुम जी लेती हो / पल में जीवन की सच्चाई
तुमने घृणा को / खुशियों से मारा है
तुमने प्रेम बहाकर / दुख को तारा है
तुमने सिखलाया / जीवन की टेढ़ी मेढ़ी राहों को
कैसे पार करें ?
कैसे उन पर / हंसकर
जीवन पथ तैयार करें
तुमने अंधेरे में / चलने का प्रयास दिया
तुमने गिरकर उठने का / मुझको अहसास दिया
तुम शक्ति हो / जीवनदायी हो
करुणा से भरी हुई / सुखदायी हो
'मां'.......... 'मां'

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4 Comments:

At May 9, 2009 at 11:39 PM , Blogger शोभा said...

तुम शक्ति हो / शक्तिशाली
तुममें उर्वरता है / अंकुरण क्षमता भी
तुममें है / सह सकने की क्षमता
वाह! बहुत खूब।

 
At May 10, 2009 at 1:03 AM , Blogger डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सुन्दर कविता,
मातृ-दिवस की शुभ-कामनाएँ।

 
At May 10, 2009 at 1:26 AM , Blogger hem pandey said...

'तुम शक्ति हो / जीवनदायी हो
करुणा से भरी हुई / सुखदायी हो
'मां'.......... 'मां' '

- सुन्दर.

 
At May 10, 2009 at 5:06 AM , Blogger ghughutibasuti said...

सुन्दर!
घुघूती बासूती

 

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