हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Thursday, April 23, 2009

सुनो, मैं नैनीताल बोल रहा हूं-3

इक शहर की आत्म-कथा

(ये एक शहर की कहानी है। जैसे हर शहर की एक कहानी होती है, मेरी भी है। मैं नैनीताल हूं। करीब डेढ़ सौ साल पुरानी है मेरी कहानी। डेढ़ सौ सालों का इतिहास देखा है, मैंने। अंग्रेज़ों के पहली बार शहर में आने को देखा, फिर उनकी बसासत देखी है....... वो दौर भी देखा जब यहां एक भी घर नहीं थी..... और फिर एक अंग्रेज ने अपनी कोठी बनाई...... और आज कोई खाली जगह नज़र ही नहीं आती। मैंने देखा कि कैसे एक शहर कई बार प्रकृति के झंझावातों से जूझा। टूटा, बिखरा और फिर से खड़ा हुआ और बस गया। मैंने देखा कि किस तरह देश की सबसे पुरानी नगरपालिका का गठन हुआ और धीरे-धीरे इसकी आय दिन-ब-दिन बढ़ती गयी। मैंने इसके पहले हिस्से में अपनी कहानी में बताया थी की किस तरह नैनीताल में पहला स्कूल खुला। कैसे नैनीताल के घरों में बिजली पहुंची। और बात शहर की दो मुख्य सड़कों की भी हुई......... अब आगे)

मैंने, सबकुछ देखा है।मेरी बूढ़ी आंखों में आज भी पुराने चित्र साफ-साफ उभर आते हैं। फिरंगियों से जूझते आज़ादी के परवानों को देखा है... मैंने। शुरू में ये चिंगारी हल्की ही रही, पर जैसे-जैसे वक्त गुजरा.... चिंगारी ने ज्वाला का रुप ले लिया। लेकिन कुमांऊ के इस हिस्से पर इसका वो प्रभाव नहीं था, जो देश के दूसरे हिस्सों पर था। उस समय यहां का शासक एक अंग्रेज़ी कप्तान हेनरी रैमजे था। वह १८५६ से १८८४ तक कुमांऊ का कमिश्नर रहा। रैमजे लोगों के बीच काफी लोकप्रिय था। शायद इसी का प्रभाव था कि १८५७ का गदर पहाड़ में अपना रंग ना जमा सका। रैमजे को आज भी पहाड़ा का राजा कहा जाता है। उसे मेरी वादियों से बहुत प्यार था। और अंतिम बार जब वो यहां से विदा हुआ..... वह बहुत रोया था.... मैं भी चुप नहीं रह सका.... मेरी आंखों से भी आंसू लुढक आए थे उस दिन।

गदर के समय १८५७ में नवाब वाजिद अली शाह ने श्री कालू महरा को एक गुप्त पत्र भेजा। कालू महरा विसुंग का प्रधान था.... और उसका इलाके पर का असर था। नवाब ने कहा कि अगर उसके लोग गदर में शामिल हो जाएं, तो उसे ढेर सारा धन मिलेगा। कालू महरा ने उस समय बड़ी ज़ोरदार नीति चली। उसने गुप्त मंत्रणा कर आधे लोगों को नवाब की ओर भेज दिया.... और शेष बचे आधे लोगों को अंग्रेज़ों की ओर। ताकि हर स्थिति में उसकी हार ना हो। इस समय फांसी गधेरे का उपयोग गदर में भाग लेने वाले लोगों को फांसी चढ़ाने के लिए होता था। (फांसी गधेरा आज भी नैनीताल में हैं.... तल्लीताल बस स्टैंड से गवर्नर हाउस की ओर जाने वाले रास्ते पर फांसी गधेरा पड़ता है। )

धीरे-धीरे कुंमाऊ में भी अंग्रेज़ी नीतियों का विरोध होने लगा। कुली उतार आंदोलन ने पहाड़ में एक नई चेतना भर दी थी। कुली उतार और कुली बेगार से आज़ादी पाने के लिए जनता जी जान से जुटी थी। मैंने वो दौर देखा है... जब लोग कुली उतार से मुक्ति पाने के लिए आंदोलन कर रहे थे। कुमांऊ के दूसरे शहरों की तुलना में नैनीताल में अग्रेंज़ों की ताकत अधिक थी। फिर भी देशभक्त आज़ादी के मतवाले... मौका पाते ही कुछ ना कुछ कर जाते थे।

और अंतत: सैंतालिस में देश को आज़ादी मिल गयी। मुझे भी लगा... मैं अपने हाथों में आ गया। उस दिन मैं बहुत खुश हुआ था। और धीरे-धीरे कालखंड खिसकते रहे। लेकिन जब पीछे मुड़कर देखता हूं..... तो कभी-कभी मुझे उन अंग्रेज़ों से प्यार होने लगता है...... जिन्हें मैंने कभी अच्छी नज़र से नहीं देखा था। अंग्रेज़ों की अनुशासित नीतियों के प्रति मन में एक आदर की भावना भर जाती है। उन्होने पहाड़ों के लिए जो नीतियां बनाई वो काबिले तारीफ थी। ब्रिटेन से आए अंग्रेजों ने वहां के पहाड़ी शहरों की तर्ज़ पर मुझे बसाने के कायदे कानून बनाए थे। कहां मकान बनने हैं ? कहां सड़कें ? सबके नियम थे। लेकिन आज जब अंग्रेजों के समय से तुलना करता हूं, तो अपने लोगों पर तरस आता है। मेरे अपने मुझ पर अंधाधुंध बोझ बढ़ा रहे हैं। नियम कायदे अभी भी हैं..... पर ले देकर सबकुछ हो रहा है। एक मंज़िल की अनुमति मिलती है, लेकिन सरकारी अफसर को थोड़ा बहुत पैसा खिलाकर दो मंज़िल बनाना मुश्किल नहीं है।

अग्रेंजों के समय में मालरोड पर गिनी चुनी गाड़ियां ही नज़र आती थी। गाड़ियों के चलने का वक्त तय था। लेकिन आज जब अपने सीने पर भारी-भारी गाड़ियों को चलते देखता हूं.... तो दर्द के मारे मेरा सीना नीचे की ओर धंस जाता है। अंग्रेज़ों ने शहर में पानी की निकासी के लिए भी सुंदर व्यवस्था की थी। शहर में वाटर ड्रेनेड के लिए एक जाल बिछाया गया था। आज भी अंग्रेजों के वक्त का ड्रेनेज सिस्टम शहर में मौजूद है। हालांकि लोगों की लापरवाही ने इसे जर्जर कर दिया है। अंग्रेजों का वक्त था कि शहर को साफ रखने की नियत से उन्होने शहर के अंदर कुत्ता पालने पर टैक्स आयद कर दिया। ताकि लोग कुत्ता घुमाते-घुमाते गंदगी ना फैलाएं। लेकिन आज तो जैसे राम राज्य है। लोग जहां चाहें गंदगी ला सकते हैं। और मैं जो पहले बहुत खुबसूरत हुआ करता था..... अपने नए रुप को देखकर शर्मिंदा होता जाता हूं।

एक ज़माना था, जब मेरे पुराने साथी खुश थे। आज नैना देवी का मंदिर और ताल भी खुश नज़र नहीं आते। एक समय था, जब फिरंगियों की गुलामी में भी नैनादेवी मंदिर में साल में एक बार पारंपरिक तरीके से मेला लगता था। भक्त तुतरी, नगाड़े, नरसिंहे (ये कुंमाऊ क्षेत्र के पारंपरिक वाद्य यंत्र हैं) की धुन पर भजन गाते.... तो पूरी वादियां गूंजने लगती थी। सफेद रंग की पोशाक , सर पर साफा और कांधे पर सिंदूरी रंग का अंगवस्त्र डालकर जब नृतक नृत्य करते तो देखने आए लोग भी थिरकने लगते थे।
ऐसा नहीं है कि मेला आज नहीं होता। मेला आज भी होता है, लेकिन काफी कुछ बदल गया है।मेले में जब बदली हु चीज़ें देखता हूं तो मन व्यथित हो जाता है। पारंपरिक वाद्य यंत्रों की जगह आधुनिक वाद्य यंत्रों ने ले ली है। नंदा देवी जो पहले कांधे पर सवार होकर विदा होती थी। अब गाड़ी पर सवार होती है। पारंपरिक लोकवाद्यों की जगह ब्रास बैंडों ने ले ली है। फिल्मी धुनें बजती हैं। तो मेरा बुढाया मन और व्यथित हो जाता है। पातरों (कुंमाऊ के पारंपरिक नृत्य को करने वाले व्यावसायिक कलाकार) का स्थान आधुनिक डांसरों ने ले लिया है। चांचरी, हुड़का जैसे गायब हो गया है। (चांचरी- कुमाऊं क्षेत्र की एक नृत्य शैली...... हुड़का-कुंमाऊं क्षेत्र का बेहद लोकप्रिय वाद्ययंत्र, जो भगवान शिव के डमरु की तरह दिखता है)

(मेरी कहानी का पहला हिस्सा पढ़ने का मन करे, तो 'इक शहर की आत्मकथा' लेबल पर क्लिक कर, पहले हिस्से में पहुंच सकते हैं।)

Labels:

2 Comments:

At April 23, 2009 at 7:12 AM , Blogger hem pandey said...

'जब बदली हु चीज़ें देखता हूं तो मन व्यथित हो जाता है। पारंपरिक वाद्य यंत्रों की जगह आधुनिक वाद्य यंत्रों ने ले ली है। नंदा देवी जो पहले कांधे पर सवार होकर विदा होती थी। अब गाड़ी पर सवार होती है। पारंपरिक लोकवाद्यों की जगह ब्रास बैंडों ने ले ली है। फिल्मी धुनें बजती हैं। तो मेरा बुढाया मन और व्यथित हो जाता है। पातरों (कुंमाऊ के पारंपरिक नृत्य को करने वाले व्यावसायिक कलाकार) का स्थान आधुनिक डांसरों ने ले लिया है। चांचरी, हुड़का जैसे गायब हो गया है। '
- यह व्यथा नैनीताल की ही नहीं पूरी कुमाऊं की है.

 
At April 23, 2009 at 7:41 AM , Blogger निर्मला कपिला said...

bahut badia apne hame bhi nainital ki sair karva di abhar is rochak post ke liye

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home