हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Wednesday, April 15, 2009

'अभिलाषाओं' तुम धीरे चलना

'अभिलाषाओं' तुम थम जाओ
अपने पंखों को सीमा दो
इक जीवन पथ पर दौड़ाओ
तुमको देखा है
खुले गगन में ऊंचा-ऊंचा उड़ते हो
कभी-कभी तो टूट बिखर
तेज़ी से तुम गिरते हो ।।

'अभिलाषाओं' तुम रुक जाओ
अपनी सांसों पर हाथ रहे
इतना चल कि / वापस घर की याद रहे
अक्सर होता है
दूर राह पर.... राही खो जाते हैं
अपनी, अपनों की / अपने घर की बांट रहे ।।

'अभिलाषाओं' तुम धीरे चलना
अपनी गति का / थोड़ा सा ख़्याल रहे
ऐसे चलना कि / सबकी चालों का भान रहे
अक्सर होता है
तेज़ी से चलने वाले / गिर जाते हैं
ऐसा ना हो
गिरकर / उठने की
फिर ना कोई / आस रहे ।।

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2 Comments:

At April 15, 2009 at 8:59 AM , Blogger अनिल कान्त said...

ultimate ....bahut achchha likha hai aapne

 
At April 18, 2009 at 1:09 AM , Blogger hem pandey said...

'अभिलाषाओं' तुम धीरे चलना
अपनी गति का / थोड़ा सा ख़्याल रहे
ऐसे चलना कि / सबकी चालों का भान रहे
-सुन्दर.

 

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