हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Tuesday, March 31, 2009

अब हमारी बारी है

तो एकबार फिर से सिद्ध हो गया कि देश में कुछ संस्थाएं हैं, जो अपना काम बखूबी कर रही हैं। सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने भले ही अभिनेता से नेतागिरी के मैदान में उतरे संजय दत्त का दिल तोड़ दिया हो। लेकिन देश के बहुत से लोग खुश होंगे, आखिर एक सज़ायाफ्ता मुज़रिम के साथ जो होना चाहिए था... वही हुआ। एक ऐसा शख्स जिसने मुंबई धमाकों के वक्त अपने पास ऐसे हथियार रखे, जो सामान्य नहीं थे। देश की कौन सी अदालत कहेगी सही था ? जैसा कि साफ था, कोर्ट ने संजय दत्त को दोषी माना और उन्हें आर्म्स एक्ट के तहत 6 साल की सजा सुनाई। संजय दत्त फिलहाल जमानत पर जेल से बाहर हैं।
देश की सर्वोच्च अदालत ने कहा कि संजय दत्त चुनाव नहीं लड़ सकते। सुप्रीम कोर्ट ने संजय दत्त की चुनाव लड़ने की इजाज़त मांगने के लिए दायर याचिका खारिज कर दी। याचिका में संजय दत्त ने मुंबई ब्लास्ट मामले में दोषी ठहराए जाने का फैसला सस्पेंड करने की मांग की थी, ताकि वह लोकसभा चुनाव लड़ सकें।
चीफ जस्टिस केजी बालाकृष्णन की अध्यक्षता वाली बेंच ने संजय दत्त के वकील और याचिका का विरोध कर रही सीबीआई की दलीलों को सुनने के बाद अपना फैसला सुनाया। न्यायाधीशों ने कहा कि किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ने की इजाजत देने के लिए उसकी सजा को निलंबित करने के कोर्ट के अधिकार का इस्तेमाल दुर्लभ मामलों में ही किया जाता है। कानून के जानकार सुप्रीम कोर्ट के फैसले को बेहद अहम बता रहे हैं। लेकिन इस फैसले ने उन तमाम अपराधियों की नींद उड़ा दी है, जो जेल से नेता बनने का ख्वाब देख रहे थे।
अब इस विरोधाभाष को देखिए संजय दत्त को टाडा कोर्ट ने सज़ा सुनाई। उस कोर्ट ने जो संविधान के मुताबिक काम कर रही है। लेकिन राजनीतिक दलों को लगता है कि कोर्ट का फैसला ठीक नहीं, देश के एक राजनीतिक दल की नज़र संजू भाई पर पड़ी। जैसे उन्हें अपने लिए हीरा नज़र आ गया। और उठाकर बना दिया मुन्नाभाई को नेता। जैसे देश में नेतागिरी का ठेका दलाल, चोर, बदमाश और अपराधियों ने उठा रखा है। ऐसा नहीं कि अच्छे नेता नहीं, पर ये अच्चे नेता राजनीति की कीचड़ को साफ क्यों नहीं करते ? मेरी समझ से बाहर है।
कोई तो हो, जो ये काम करे। कोई दल, कोई नेता। कोई अपराधी नेता जब ए नाम की राजनीतिक पार्टी में होता है, तो बी पार्टी उसे कोसती है। लेकिन जब यही अपराधी नेता बी पार्टी में आता है, तो उसे डिफेंड करने लगती है। पता नहीं क्यों वोट का जुगाड़ करने के लिए ऐसे उम्मीदवार चुने जाते हैं, जो नोट और वोट का जुगाड़ एकसाथ कर सकें। चंद दिन पहले ही भारत के पूर्व उप राष्ट्रपति भैरो सिंह शेखावत ने कहा था कि राजनीतिक दल ऐसे उम्मीदवार चुन रहे हैं, जो नोट का जुगाड़ कर सकें। शेखावत ने कहा कि इससे पार्टियों में भ्रस्टाचार तेज़ी से बढ़ रहा है, और राजनीति में अच्छे लोग नहीं आ पा रहे।
शेखावत की बात बिल्कुल सही लगती है। पढ़े लिखे लोग वोट पॉलिटिक्स से दूर ही रहना पसंद करते हैं। यही वजह है कि जो भी नेता साफ छवि का है, या जोड़ तोड़ नहीं कर सकता वो राज्यसभा में जाकर बैठ जाता है। या फिर राजनीतिक दलों के मैनेजमेंट और प्रवक्ता की कुर्सी संभाल लेता है। और लड़ने यानि चुनाव लड़ने का काम लड़ाकू लोगों को मिल जाता है।.... और फिर ऐसे लोग ढूंढे जाते हैं, जो दबंग हों। या फिर किसी तरह से वोट का जुगाड़ कर एक सीट पक्की कर लें।
ऐसा नहीं है कि देश में सज़ायाफ्ता लोगों के चुनाव लड़ने से संबंधित कानून नहीं है। जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 8 (3) के तहत दो साल से ज्यादा के सजायाफ्ता चुनाव नहीं लड़ सकते। लेकिन अक्सर इस कानून का भी फायदा उठाया जाता रहा है। अब इस फैसले के बाद उम्मीद बंधने लगी है, कि कम से कम सज़ायाफ्ता लोग चुनाव की दौड़ से बाहर रहेंगे।
हालांकि ऐसे लोग इसका भी तोड़ जानते हैं। ऐसे कई अपराधी नेता हैं, जो चुनाव नहीं लड़ सकते, सो उन्होने अपनी पत्नी, भाई या किसी और रिश्तेदार को चुनाव मैदान में उतार दिया है। यानि चेहरा बदल गया है, पर असल चीज़ में कोई बदलाव नहीं हुआ।
उम्मीद थी कि इस बार के चुनाव में राजनीतिक दल अपराधियों पर नकेल कसेंगे। लेकिन राजनीति की रसाकसी में अपराधियों के कपड़ों पर लगे खून के धब्बे किसी पार्टी को नज़र नहीं रहे। क़त्ल, लूटपाट, ब्लात्कार, चोरी, आगजनी, धोखाधड़ी, अपहरण और भी ना जाने कितने अपराध लादे नेता पार्टियों से टिकट मांगे फिर रहे हैं। एक पार्टी टिकट देने से मना करती है, तो वो आंख दिखाकर दूसरी पार्टी के दरवाजे चला जाता है। और अंतत: अपराध से सने लिपटे नेता टिकट पा रहे हैं। कोर्ट अधिक नहीं कर सकती। वो दो चार नेताओं पर नकेल कस सकती है। असल काम राजनीतिक दल कर सकते थे, लेकिन वो नहीं करते।

तो कौन करेगा राजनीति से इस कीचड़ को साफ ? अदालत ने अपना काम किया। अब हमारी बारी है।.... वोट वाले दिन हमें तय करना होगा कि वोट किसे दें ? एक अपराधी को........ जिसके दामन पर किसी गरीब के खून का धब्बा लगा है, या फिऱ ऐसे शख्स को जो ईमानदार है ?

खुद से एक सवाल पूछते रहिए ........... तब तक जब तक आप अपने वोट की ताकत से कुछ बदल ना दें।

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