कुछ तो कीजिए....
क्या आप चाहते हैं कि अगली बार गर्मियों में बर्फ पड़े ? क्या आप चाहतें हैं कि बरसात में सूखा पड़े ? या फिर आप सर्दियों में लू लाने की बांट जोह रहे हैं ? शायद ही कोई हो, जो ऐसा चाहेगा। पर धरती को हम इसी ओर धकेल रहे हैं।
अब से ठीक दो घंटे बाद दुनिया को बचाने की हसरत रखने वाले लोग 'अर्थ आवर' का हिस्सा बनेंगे। जो लोग चाहते हैं कि उनकी आने वाली पीढ़ी के लिए हवा, पानी और पहाड़ बचे रहें, वो लोग अज रात ८.३० बजे से ९.३० बजे तक बत्तियां बुझाने वाले हैं। और जो पृथ्वी की परवाह नहीं करते , उनके बारे में कुछ कहना कहां मुनासिब होगा ?
लोग कह सकते हैं, कि उनके एक घंटा बिजली बंद करने से क्या फर्क पड़ेगा ? लेकिन अर्थ आवर मुहिम का हिस्सा होने का मतलब सिर्फ बत्तियां बुझा लेना नहीं है। इस मुहिम का हिस्सा बनकर हम खुद से एक वादा कर सकते हैं, कि हम बेवजह ऊर्जा बरबाद नहीं करेंगे। साथ ही हम खुद से वादा कर सकते हैं कि हम आने वाले दिनों में अपनी धरती, अपने पर्यावरण और अपने आस-पास के पेड़ों का ख्याल रखेंगे।
हर पेड़ की सुरक्षा अर्थ आवर की मुहिम का हिस्सा है। सब जानते हैं कि धरती गरम हो रही है, मौसम लगातार बदल रहा है। बरसात के दिनों में सूखा, गर्मी में बरसात-ओले और सर्दियों में लू पड़ रही है। कौन चाहेगा कि हमारी आने वाली पीढी के लिए शिमला और नैनीताल में बर्फबारी एक इतिहास बन जाए ?
क्या आप चाहेंगे, कि बर्फबारी देखने के लिए हमारी आने वाली पीढियों को अंटार्कटिका जाना पड़े। और कौन जाने कि धरती के गरम होने का सिलसिला यूं ही चला तो पचास साल बाद अंटार्कटिका का क्या हाल होगा ?
दूर क्यों जाएं ? आज से पच्चीस साल पहले तक जिस नैनीताल में भारी बर्फबारी होती थी, आज बर्फ कभी कबार ही पड़ती है। हिमालय से निकलने वाला गोमुख लगातार सिकुड़ रहा है।
हममें से कई कह सकते हैं, इसके लिए हम तो ज़िम्मेदार नहीं। पर बिजली की खपत हमने ही बढ़ाई है, घड़े को फेंककर फ्रिज़ घर में कौन लाया है ? फ्रिज़ लाने में कोई बुराई नहीं.... पर बिजली की खपत नियंत्रित रहे, ये कौन देखेगा ? ज़ाहिर है, हमें ज़िम्मेदार बनना होगा।
तो हम एक संकल्प तो ले ही सकते हैं, आज केवल एक घंटा अपने घर की बत्तियां बुझाएं। याद रखना, हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को वही दुनिया देनी है, जिसमें हमने सांस ली। दोस्तों.... मैं तो रात ८.३० बजे से लेकर ९.३० बजे तक बत्तियां बुझाने वाला हूं। आप क्या करेंगे नहीं जानता ?
अब से ठीक दो घंटे बाद दुनिया को बचाने की हसरत रखने वाले लोग 'अर्थ आवर' का हिस्सा बनेंगे। जो लोग चाहते हैं कि उनकी आने वाली पीढ़ी के लिए हवा, पानी और पहाड़ बचे रहें, वो लोग अज रात ८.३० बजे से ९.३० बजे तक बत्तियां बुझाने वाले हैं। और जो पृथ्वी की परवाह नहीं करते , उनके बारे में कुछ कहना कहां मुनासिब होगा ?
लोग कह सकते हैं, कि उनके एक घंटा बिजली बंद करने से क्या फर्क पड़ेगा ? लेकिन अर्थ आवर मुहिम का हिस्सा होने का मतलब सिर्फ बत्तियां बुझा लेना नहीं है। इस मुहिम का हिस्सा बनकर हम खुद से एक वादा कर सकते हैं, कि हम बेवजह ऊर्जा बरबाद नहीं करेंगे। साथ ही हम खुद से वादा कर सकते हैं कि हम आने वाले दिनों में अपनी धरती, अपने पर्यावरण और अपने आस-पास के पेड़ों का ख्याल रखेंगे।
हर पेड़ की सुरक्षा अर्थ आवर की मुहिम का हिस्सा है। सब जानते हैं कि धरती गरम हो रही है, मौसम लगातार बदल रहा है। बरसात के दिनों में सूखा, गर्मी में बरसात-ओले और सर्दियों में लू पड़ रही है। कौन चाहेगा कि हमारी आने वाली पीढी के लिए शिमला और नैनीताल में बर्फबारी एक इतिहास बन जाए ?
क्या आप चाहेंगे, कि बर्फबारी देखने के लिए हमारी आने वाली पीढियों को अंटार्कटिका जाना पड़े। और कौन जाने कि धरती के गरम होने का सिलसिला यूं ही चला तो पचास साल बाद अंटार्कटिका का क्या हाल होगा ?
दूर क्यों जाएं ? आज से पच्चीस साल पहले तक जिस नैनीताल में भारी बर्फबारी होती थी, आज बर्फ कभी कबार ही पड़ती है। हिमालय से निकलने वाला गोमुख लगातार सिकुड़ रहा है।
हममें से कई कह सकते हैं, इसके लिए हम तो ज़िम्मेदार नहीं। पर बिजली की खपत हमने ही बढ़ाई है, घड़े को फेंककर फ्रिज़ घर में कौन लाया है ? फ्रिज़ लाने में कोई बुराई नहीं.... पर बिजली की खपत नियंत्रित रहे, ये कौन देखेगा ? ज़ाहिर है, हमें ज़िम्मेदार बनना होगा।
तो हम एक संकल्प तो ले ही सकते हैं, आज केवल एक घंटा अपने घर की बत्तियां बुझाएं। याद रखना, हमें अपनी आने वाली पीढ़ियों को वही दुनिया देनी है, जिसमें हमने सांस ली। दोस्तों.... मैं तो रात ८.३० बजे से लेकर ९.३० बजे तक बत्तियां बुझाने वाला हूं। आप क्या करेंगे नहीं जानता ?
Labels: मेरी धरती
1 Comments:
मैंने की,सब करेगें!
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