कल बत्तियां बुझाकर रखना
शिकागो, कोपनहेगन, टोरॉन्टो, डबलिन और दिल्ली, मुंबई समेत दुनिया के 371 शहर शनिवार की शाम एक घंटे के लिए अंधेरे में डूब जाएंगे। पर घबराने की कोई बात नहीं है। दरअसल इन शहरों के लोग अपनी मर्जी से एक घंटे के लिए बिजली से चलने वाले सभी उपकरण बंद कर देंगे, जिससे दुनिया में ग्लोबल वॉर्मिन्ग के बढ़ते खतरे के बारे में जागरुकता बढ़ाई जा सके।
इस घंटे का नाम ' अर्थ आवर ' यानी ' एक घंटा धरती के लिए रखा गया है। इस दिन की शुरूआत एक ख़ास मकसद के लिए 2007 में हुई, ये मकसद था, धरती को बचाना। लोगों में जलवायु समस्या के प्रति जागरूकता फैलाने के लिए लोगों ने एक अलग तरीका निकाला। इस दिन लोग एक साथ अपने-अपने स्तर पर अपने-अपने घरों की बत्तियां बुझाते हैं। लक्ष्य यही है कि आने वाली पीढ़ियों को रहने लायक दुनिया मिल सके।
ऑस्ट्रेलियाई नागरिकों ने 2007 में विश्व का तापमान बढ़ने के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए "अर्थ आवर" को मनाने के लिए 60 मिनट के लिए अपनी बत्तियां बुझायी। अभियान को विश्व वन्य जीवन कोष (डब्ल्यू डब्ल्यू एफ) ने सिडनी में शुरू किया था। अब यह अभियान दुनिया भर के बड़े शहरों डब्लिन से लेकर शिकागो तक और बैंकॉक से लेकर मनीला तक फैल गया है और अर्थ आवर एक अंतर्राष्ट्रीय आंदोलन बन गया है ।
सिडनी में 2007 में जब अर्थ आवर की शुरुआत हुई, तो इस अभियान में करीब 20 लाख लोग जुड़े, लेकिन एक साल बाद ही इसमें दुनियाभर के करीब 5 करोड़ लोग जुड़ गए। जब ये अभियान सिडनी में शुरू हुआ तो लोगों को उम्मीद नहीं थी कि ये लोगों के बीच इतना लोकप्रिय हो जाएगा। इस अभियान के आयोजकों का उद्देश्य यह दिखाना है कि लोग पर्यावरण परिवर्तन के बारे में परवाह करते हैं तथा अपनी सरकारों पर निर्णायक कदम उठाने के लिए दबाव डालना चाहते हैं।
अर्थ आवर के फाउंडर ऐंडी रिडली के मुताबिक ऑस्ट्रेलिया, कनाडा से लेकर फिजी तक 371 शहरों और स्थानीय प्रशासन इस मुहिम का हिस्सा बनेंगे। अर्थ आवर के तहत सभी लोग 60 मिनट के लिए बिजली का इस्तेमाल नहीं करेंगे। इनमें दफ्तर और घर सभी शामिल हैं। रिडली के मुताबिक कई यूरोपीय शहर जैसे रोम और लंदन आधिकारिक रूप से इस मुहिम से नहीं जुड़े हैं, लेकिन उम्मीद की जा रही है कि इन शहरों में भी लोग एक घंटे के लाइटें स्विच ऑफ करेंगे और अर्थ आवर का हिस्सा बनेंगे।
इस साल 'अर्थ आवर' मुहिम के तहत भारत के दो मुख्य शहर दिल्ली और मुंबई में भी लोग रात 8.30 बजे से रात 9.30 तक एक घंटे के लिए इमारतों की बत्तियां बुझाएंगे। इस अभियान में भारत पहली बार शिरकत कर रहा है। लोग बत्तियां बुझाकर दुनियाभर के नीति निर्माताओं तक यह संदेश पहुंचाना चाहते हैं कि हमारे धरती को बचाने की खातिर ठोस नीतियां बनाने और उन्हें अमल में लाने का वक्त आ चुका है।
ये अभियान ऑस्ट्रेलिया में ख़ासा लोकप्रिय हो रहा है। ऑस्ट्रेलिया में "अर्थ आवर" अभियान को मनाने के लिए कई तरह के समारोह होते हैं। जिनमें पारंपरिक ऐबोरिजिनल मशाल अभियान, पर्यावरण की दृष्टि से लाभदायक रात्रिभोज और अकेले रहने वाले लोगों के लिए मोमबत्ती के प्रकाश में विशेष शामें आयोजित की जाती हैं। कुछ नाइट क्लबों तो बत्तियां जलाए बगैर काम करते हैं, जबकि ज्यादातर ऑस्ट्रेलियाई नागरिक इस अभियान का हिस्सा बनने के लिए अपने घर पर अंधेरा करते हैं। यहां तक
की सिडनी हार्बर ब्रिज और ओपेरा हाउस जैसे प्रतीकात्मक स्थलों में भी प्रकाश धीमा कर दिया जाता है।
की सिडनी हार्बर ब्रिज और ओपेरा हाउस जैसे प्रतीकात्मक स्थलों में भी प्रकाश धीमा कर दिया जाता है।
ऑस्ट्रेलिया में विश्व का तापमान बढ़ने का मुद्दा अहम है और इसका कारण भी है । ऑस्ट्रेलिया प्रतिव्यक्ति ग्रीनहाउस पैदा करने वाले विश्व के सबसे खराब देशों में से एक है । बहुत से देशों का मानना है कि हाल ही में पड़ा आकाल और बाढ़ पर्यावरण को असंतुलित करने के मनुष्य के कार्यों का परिणाम है ।
Labels: मेरी धरती
3 Comments:
दिलचस्प ....
बहुत बढ़िया।
बहुत अच्छा ... किसी ने पर्यावरण के बारे में सोचा तो ... खुशी की बात है कि भारत के दो शहर भी इस वर्ष इसमें शामिल रहेगे।
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