सर कलम कर दूंगा
'ये हाथ नहीं है, ये कमल की ताकत है जो किसी का सर कलम कर सकता है।'
"अगर कोई हिंदुओं की ओर हाथ बढ़ाता है या फिर ये सोचता हो कि हिंदू नेतृत्वविहीन हैं तो मैं गीता की कसम खाकर कहता हूँ कि मैं उस हाथ को काट डालूंगा।"
ये पढ़कर क्या ऐसा नहीं लगता कि कोई तालिबान की भाषा बोल रहा है ? तालिबान की भाषा पीलीभीत में।..... चुनाव के मौसम में अलगाव की भाषा। पर इससे भी ज़रुरी ये है कि ये सब कौन बोल रहा है ?... ये एक युवा नेता की आवाज़ है.... जो पांच साल पहले बेहद कम उम्र में संसद पहुंचा।.... अब वो पहले से ज़्यादा परिपक्व हो गया है।...... पहले उसका नाम बता दूं.... उसका नाम है.... वरुण गांधी।..... मेनका गांधी के बेटे हैं वरुण गांधी।............ और बीजेपी में राजनीति करते हैं।
उत्तर प्रदेश के पीलीभीत से भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार वरुण गांधी ने चुनाव प्रचार के दौरान अपने भाषण में ये बातें कहीं। जिसके बाद चुनाव आयोग ने भड़काऊ भाषण देने के आरोप में उन्हें नोटिस जारी किया है।
वरुण गांधी पांच साल पहले राजनीति में आए तो सीधे संसद पहुंच गए।..... पांच साल संसद में नेतागिरी के दांवपेंच ने उन्हें सिखा दिया है कि वोट बैंक की राजनीति कैसे करनी है।.... 'ये हाथ नहीं है, ये कमल की ताकत है जो किसी का सर कलम कर सकता है।' ये शब्द जब वरुण गांधी के मुंह से निकल रहे होंगे.... तो सोचिए उनके ज़ेहन में क्या चल रहा होगा।.... हमारी युवा पीढ़ी का नेता ...... सर कलम करने की बात कह रहा है।
चुनाव जीतने के लिए क्या सर कलम करना ज़रुरी है ?.... क्या विकास और आगे बढ़ने के मुद्दों के साथ चुनाव नहीं जीते जा सकते ?.... चुनाव से ठीक पहले ये बड़ा सवाल है।...... वोटों के धुव्रीकरण से हमारे नेता कब तक कुर्सी हथियाते रहेंगे... क्या हमें ये नहीं सोचना चाहिए ?
मैं ब्राह्मण... मैं ठाकुर.... मैं बनिया.... मैं पिछड़ा.................... इन्हीं खांचों में बंटकर हम राजनीति के हाथ के खिलौने बन रहे हैं।.... हमारी आंखों के सामने पार्टियां राजनीति की बिसात बिछाती हैं।.... और फिर ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया, पिछड़ा.... और भी ना जाने क्या-क्या ? .... उम्मीदवार हम पर थोप दिए जाते हैं।..... फिर मतदान के दिन क्या होता है ? ..... ब्राह्मण, ठाकुर, बनिया, पिछड़े सब घरों से निकलते हैं..... और बिना सोच विचार किए.... वोट देकर घर लौटते हैं।
अब अगर ये फॉर्मूला कारगर है, तो नेता इसका इस्तेमाल क्यों ना करें ? ज़ाहिर है... राजनीति में सत्ता के करीब पहुंचना ही सबसे बड़ा मंत्र है। इसके लिए क्या कुछ नहीं किया जाता। इसका इतिहास भी साक्षी रहा है।.... लेकिन हम नेता नहीं हैं... ना ही राजनीति में हैं।..... हम जनता हैं...... सच मायने में राजनीति को बदलने की काबिलियत हमारे पास है।.... लेकिन जब तक हम अलग-अलग हैं.... कुछ नहीं कर सकते।
तो रास्ता क्या है ?............ रास्ता एक ही है.... अलगाव की राजनीति करने वालों को मुंहतोड़ जवाब दिया जाए। सर कलम करने वालों को बताया जाए, कि किसी समुदाय का सर कलम करने की ताकत उनके पास नहीं है।..... इस बात को समझा जाए.... कि हम लड़कर नहीं चल सकते।..... अगर हम लड़ना भी चाहें, अपने हाथों में हथियार उठा भी लें..... तो क्या ये लड़ाई एक-दो दिन में ख़त्म हो जाएगी ?.... लड़ने की बात करना आसान है.... पर शांति के साथ आपस में मिलकर काम करना उतना ही मुश्किल।
तो क्यों आसानी के रास्ते पर चलकर हम अपने लिए मुश्किलें खड़ी कर लें ? ..... अफगानिस्तान, इराक, फिलिस्तीन का इतिहास गवाह है...... एक समुदाय दूसरे को कभी पूरी तरह नहीं कुचल सकता। तो क्यों इतिहास की अवहेलना की जाए ? इतिहास सबक लेने के लिए होता है। उसे भूलाकर फिर से दोहराने के लिए नहीं।...... अगर ये नेता इस बात को नहीं समझ सकते, तो क्या हमें (जनता को) भी ये बातें भूल जानी चाहिए ?...................... सवाल कई हैं.............. जवाब हमें ढूंढना है।..... अपने मन से पूछिए क्या गलत है.... और क्या सही ?
शायद आपको जवाब मिल जाए।
Labels: राजनीति
2 Comments:
छी छी, एसा बोला वरूण ने! बहुत गलत बात है
हिन्दुओं की ओर कोई हाथ बढ़ाता है तो उस हाथ को काटना कतई नहीं चाहिये, बहुत ही गलत बात है.
कोई गाल पर चांटा मारता हो तो क्यों मारें उसके गाल पर चांटा? हमें तो दूसरा गाल आगे बढ़ा देना चाहिये, हम तो गांधी के अनुयायी हैं.
महमूद गजनवी ने पचास हजार की फौज लाकर सोमनाथ के मंदिर पर आक्रमण करते समय 1 लाख हिन्दू काट डाले थे. हमें वही परम्परा याद रखनी चाहिये. आक्रामक की बात का जबाब देने जैसी भड़काऊ बात नहीं करनी चाहिये, ये तो तालिबानी बात है.
आपने हमें शांति का पाठ की फिर याद दिलायी, आपका आभार और धन्यवाद,
चुनाव का मौसम है। देखना आगे आगे क्या होता है
। जहाँ दो वक्त की रोटी के लिए आदमी हाँफता है। और इन्हें ......।
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home