हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Saturday, March 7, 2009

थोड़ी सी आज़ादी दो...

वैसे तो इस तरह की ख़बरें नयी नहीं है। लेकिन जब भी इस तरह की खबरें सामने आती हैं, तो फिर सोचना ही पड़ता है, कि आखिर प्यार किसे कहते होंगे ? पहले वो खबर बता दूं, जिसने मन में कुछ सवाल खड़े कर दिए हैं। दरअसल वाकया बिहार की राजधानी पटना का है। पटना का जानामाना आर्ट्स कॉलेज।

वो एक प्रेमी था, एक लड़की से प्रेम करने लगा। ज़ाहिर है, मन खुशियों से सराबोर हुआ होगा। लड़के ने प्यार किया तो प्रेमिका के लिए दिल में कुछ अरमान भी सजाए होंगे। लेकिन प्यार की इस कहानी में जल्द ही थोड़ा टिव्स्ट आ गया।.... लड़की कुछ कारणों से लड़के से दूर-दूर रहने लगी। यही बात प्रेमी को परेशान कर रही थी। शायद प्रेमी का अहम जाग गया। हारना तो किसी को बर्दाश्त नहीं, वो भी एक लड़की से हार, ये तो कतई नहीं हो सकता..... ऐसा लड़के ने सोचा होगा।

लड़की जो कभी उसकी प्रेमिका थी, ऐसा कैसे कर सकती है ? वो प्यार के लिए हां ज़रुर कह सकती है। लेकिन फिर ना कैसे ?...... प्रेमी चाहे जो करे। उसके पास अधिकार होते हैं। ..... प्रेमिका के अधिकार सीमित हैं।.... उसे समर्पण सिखाया जाता है। कविता में कवि समर्पण की बातों से ही उसकी तारीफ करते हैं। प्रेमिका की वफा की मिसालें दी जाती हैं। फिर एक प्रेमिका बेवफा कैसे हो सकती है भला ?.... यही सोच-सोचकर हारे हुए प्रेमी के दिमाग ने काम करना बंद कर दिया।

एक ओर प्यार था, दूसरी ओर नफरत।
एक ओर आज़ादी थी, दूसरी ओर बेड़ियां।
एक ओर समर्पण था, दूसरी ओर अधिकार।
एक ओर ज़िंदगी थी, दूसरी ओर मौत।


कई तरह के सवालों ने लड़के की सोच को कुंद कर दिया था। प्यार को मुट्ठी में बंद करने की ज़िद ने उसे पागल बना दिया। लड़की पर अधिकार की भावना ने उसे उस लड़की का दुश्मन बना दिया, जिसे वो बेइंतहा प्यार करता था। लड़की की इच्छाओं का उसे ज़रा भी अहसास नहीं रहा, जिन्हें पूरा करने के लिए उसने कभी ढेर सारे वादे किए थे।

लेकिन फिर वही हुआ, जिसने ये कहानी लिखने के लिए मुझे मजबूर कर दिया। दिल में ढेर सारा प्यार होने के बावजूद प्रेमी अपनी ही प्रेमिका का सबसे बड़ा दुश्मन बन गया।

एक गोली चली, और प्रेमिका को बेध गयी।

अब प्रेमी की आंखें खुली हैं। पर तीर कमान से निकल चुका है। अफसोस के सिवा कुछ नहीं बचा। शायद प्रेमी को अब समझ आए। प्यार का एक नाम समर्पण भी है।

समर्पण होता तो,
फिर प्यार ही होता।
प्यार होता तो,
फिर प्यार ही होता।
तुम होते... मैं होता,
फिर प्यार होता।
प्यार, प्यार, प्यार
और ढेर सारा प्यार होता।

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1 Comments:

At March 7, 2009 at 10:02 AM , Blogger संगीता पुरी said...

बहुत सुंदर ...

 

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