कुमाऊंनी होली
ब्रज की होली छेड़छाड़ और एक खास तरह के रस के लिए मशहूर है। तो कुमाऊं की होली अपनी शास्त्रीयता और शालीनता के लिए पहचानी जाती है। देश भर में जहां-जहां भी होली खेली जाती है, कुमाऊंनी होली उन सबसे अलग नज़र आती है। हालांकि वक्त के साथ कुमाऊंनी होली की चमक भी कम हुई है, लेकिन उसकी मिठास में कोई कमी नहीं आई है।
कुमाऊंनी होली की सबसे बड़ी ख़ासियत है, उसकी गायन शैली। सुर, लय, ताल को समय के आधार पर गाया जाता है। कुमाऊंनी होली मुख्य रुप से दो तरह से गाई जाती है। पहली, बैठक होली और दूसरी, खड़ी होली।
बैठक होली में लोग एक जगह पर बैठकर होली गायन करते हैं। बैठक होली में गायन पर काफी ज़ोर रहता है। होली को ख़ास शास्त्रीय धुनों पर गाया जाता है। जबकि खड़ी होली में लोग घूम-घूमकर होली गायन करते हैं, इसलिए गायन शैली में शास्त्रीयता होने के बावजूद इसमें कुछ लचीलापन रहता है।
कुमाऊंनी होली के दो मुख्य केंद्र रहे हैं, नैनीताल और अल्मोड़ा। यहां होली के महत्तव को इसी बात से समझा जा सकता है कि होली से करीब एक महीने पहले से ही बैठक होली का दौर शुरू हो जाता है। इन होलियों में भाग लेने वाले लोग संगीत की बारिकियों को बखूबी समझते हैं।
कुमाऊंनी शास्त्रीय होली गायन मुख्य रुप से ताल और खटके पर आधारित है। हालांकि कुमाऊंनी होली गायन के लिए कोई लिखित नियम नहीं हैं। लेकिन इसका विकास एक परपंरा के तौर पर होता गया है।
कुमाऊंनी होली मुख्य रुप से धम्मार और दीपचंदी ताल पर आधारित है। जिसे होली गायकों ने अपनी सुविधानुसार धम्मार और चांचर में बदल दिया है। इस प्रकार ताल के परिवर्तित रुप में केवल मात्रा का ही अंतर है। जहां धम्मार और दीपचंदी में १४ मात्राओं की आबद है। वहीं इसके सरल रुप झम्मार और चांचर में १६ मात्राओं में आबद है। शास्त्रीयता में सरल होने के बावजूद कुमाऊंनी होली गायन में सिद्ध होने के लिए अभ्यास की ज़रुरत होती है।
कुमाऊंनी होली की सबसे बड़ी ख़ासियत है, उसकी गायन शैली। सुर, लय, ताल को समय के आधार पर गाया जाता है। कुमाऊंनी होली मुख्य रुप से दो तरह से गाई जाती है। पहली, बैठक होली और दूसरी, खड़ी होली।
बैठक होली में लोग एक जगह पर बैठकर होली गायन करते हैं। बैठक होली में गायन पर काफी ज़ोर रहता है। होली को ख़ास शास्त्रीय धुनों पर गाया जाता है। जबकि खड़ी होली में लोग घूम-घूमकर होली गायन करते हैं, इसलिए गायन शैली में शास्त्रीयता होने के बावजूद इसमें कुछ लचीलापन रहता है।
कुमाऊंनी होली के दो मुख्य केंद्र रहे हैं, नैनीताल और अल्मोड़ा। यहां होली के महत्तव को इसी बात से समझा जा सकता है कि होली से करीब एक महीने पहले से ही बैठक होली का दौर शुरू हो जाता है। इन होलियों में भाग लेने वाले लोग संगीत की बारिकियों को बखूबी समझते हैं।
कुमाऊंनी शास्त्रीय होली गायन मुख्य रुप से ताल और खटके पर आधारित है। हालांकि कुमाऊंनी होली गायन के लिए कोई लिखित नियम नहीं हैं। लेकिन इसका विकास एक परपंरा के तौर पर होता गया है।
कुमाऊंनी होली मुख्य रुप से धम्मार और दीपचंदी ताल पर आधारित है। जिसे होली गायकों ने अपनी सुविधानुसार धम्मार और चांचर में बदल दिया है। इस प्रकार ताल के परिवर्तित रुप में केवल मात्रा का ही अंतर है। जहां धम्मार और दीपचंदी में १४ मात्राओं की आबद है। वहीं इसके सरल रुप झम्मार और चांचर में १६ मात्राओं में आबद है। शास्त्रीयता में सरल होने के बावजूद कुमाऊंनी होली गायन में सिद्ध होने के लिए अभ्यास की ज़रुरत होती है।
Labels: होली आई रे...
3 Comments:
कुमाऊँनी होली के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद। यदि कुछ गीत भी सुनवाते तो और अच्छा रहता।
घुघूती बासूती
कुमाऊं की होली के बारे में बहुत बढ़िया जानकारी दी है . धन्यवाद.
कुमाऊँनी होली के बारे में जानकारी देने के लिए धन्यवाद
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