हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Sunday, February 15, 2009

उसके लिए...

मुझे तुमसे कितना कुछ मिला ।
रातें लंबी- लंबी,
काली अंधेरी।
लगातार बारिश,
भीगती सुबह।
तपती दुपहरी,
लू के थपेड़े।
फिर ओस भरी,
सर्द शाम।
तुम बिन भी,
बहुत कुछ है
मेरे पास।
धूल, आंधी है
प्यास, बैचेनी है।
प्यार अधूरा सा,
पूरा बचा है।
अब भी, तुम बिन ।।

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7 Comments:

At February 16, 2009 at 5:16 PM , Blogger amar barwal 'Pathik' said...

sunder kavita or naynabhiraam tasveeron ke lea dhanyavaad. chithhajagat apka haardik abhinandan karta hai...

 
At February 16, 2009 at 8:46 PM , Blogger ज्योत्स्ना पाण्डेय said...

ब्लॉग की दुनिया में आपका हार्दिक स्वागत है .आपके अनवरत लेखन के लिए मेरी शुभ कामनाएं ...

 
At February 16, 2009 at 9:30 PM , Blogger अभिषेक मिश्र said...

Acchi post. swagat.

 
At February 17, 2009 at 10:19 AM , Blogger sabkiawaz said...

बहुत अच्छी शुरुआत है। लिखते रहिए।
-हिमांशु

 
At February 19, 2009 at 8:28 PM , Blogger Prakash Badal said...

वाह जीतेंद्र भाई मज़ा आ गया आपकी रचना के साथ-साथ नैनीता की सैर भी कर ली।

 
At February 21, 2009 at 3:05 AM , Blogger गोविंद गोयल, श्रीगंगानगर said...

kaash1 man himalay saaa hota. narayan narayan

 
At February 22, 2009 at 8:52 AM , Blogger प्रशांत मलिक said...

तुम बिन भी,
बहुत कुछ है
मेरे पास।
धूल, आंधी है
प्यास, बैचेनी है।..

bahut badhiya...

 

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