हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Friday, February 27, 2009

के के साह

नैनीताल में होली शुरू हो चुकी है। वैसे पूरे कुमाऊं में होली महीनों पहले शुरू हो जाती है। लेकिन नैनीताल और अल्मोड़ा दो ऐसे शहर रहे हैं, जहां होली का अपना ही मजा है। यहां आपको होली के कई कद्रदान मिल जाएंगे। ऐसे ही एक शख्स को मैं जानता हूं। उनका नाम के के साह है।

आप कहेंगे, ये के के साह कौन हैं ? दरअसल इस शख्स की शख्सियत से मैं भी परिचित नहीं था। पर कुछ साल पहले एक दिन यूं ही अपने कुछ वरिष्ठ साथियों के साथ .... मैं के के साह के घर चला गया। वो होली के दिन थे, के के ने अपने घर की छोटी सी बैठक में होली की तैयारियां की थी।

करीब सात बजे शाम को शुरू हुआ होली का कार्यक्रम। हारमोनियम, ढोलक, ताल मजीरे की धुन पर ईश वंदना के साथ होली की बैठक शुरू हो गयी। शुरू में दो-चार लोगों ने ही होली गायन शुरू किया। लोग आते गए...... जैसे-जैसे लोग आते के के उनका पूरे सम्मान के साथ स्वागत करते। छोटों को शुभ आशीष देकर और बड़ों के पैर छूकर। अबीर गुलाल से एक दूसरे को टीका लगाया गया।

यहीं पता चला कि जिस शख्स के घर पर मैं आया हूं, वो होली का कितना बड़ा कद्रदान है। एक ऐसा शख्स जो कुमाऊंनी होली का पूरा इन-साइक्लोपीडिया है। यहीं पता चला कि के के पिछले साठ सालों से हर साल अपने घर पर होली की बैठक का आयोजन करते आ रहे हैं।

के के के घर पर इस शास्त्रीय होली की शुरुआत पौष माह के पहले इतवार से हो जाती है, जो कि दिसंबर के महीने में पड़ता है। बैठक होली का ये सिलसिला रंग पड़ने के दिन तक चलता है, यानि करीब-करीब दो महीने तक। .... बैठक होली का ये कार्यक्रम रोजाना शाम सात बजे शुरू होता है, और फिर महफिल पर है.... कब तक रंग जम जाए।

हारमोनियम, तबला, ताल मजीरे की आवाज और शास्त्रीय अंदाज में सुरों का उतार-चढाव ऐसे लोगों को भी खूबसूरत अहसास से भर देता है, जो कुमाऊंनी होली की शास्त्रीयता से परिचित नहीं हैं। जैसे-जैसे अंधेरा गहराता है, होल्यारों पर संगीत का नशा चढ़ता जाता है। जुगलबंदी.... और आपस में सुर-ताल का मुकाबला माहौल को एक अजीब तरह की मस्ती से भर देते हैं।
एक ही होली गीत के अलग-अलग मुखड़ों को, अलग-लग अंदाज़ में सुर-ताल से गाया जाता है। ये माहौल इतना रुमानी होता है, कि इसे शब्दों में बयां करना शायद ही संभव हो। ... मैं तो यही कह सकता हूं, और मैंने महसूस भी किया..... कि जब के के साह के घर पर होली गायन अपने उफान पर था, तो माहौल सूफी गायकी से कम नहीं था।

के के की एक और खासियत से आपको रुबरू करवा दूं। के के करीब साठ सालों से केवल होली ही नहीं करवा रहे, बल्कि उन्होने साठ साल से होली के बदलते स्वरुपों को बकायदा टेप करके सुरक्षित रखा है। उनके पास इस दौरान के लगभग सभी बड़े होली गायकों (होल्यारों) की आवाज़ में होली सुरक्षित है।
उनके इस संग्रह में शिवलाल वर्मा (अच्छन जी), जवाहर साह, प्यारे साह, उर्वादत्त पांडे, तारा प्रसाद पांडे, रमेश जोशी, दिनेश जोशी, हेम पांडे और ललित मोहन जोशी जैसे होली गायकों की आवाज़ में होली गायन मौजूद हैं।

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1 Comments:

At February 28, 2009 at 1:33 AM , Blogger Vineeta Yashsavi said...

Achhi post likhi hai apne...

 

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