हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Monday, March 16, 2009

अब कहां जाऊं ?

सोचकर घर से निकला,
कि सैर दुनिया की कर आऊं
पर चौक से घर लौट चला।।

Labels:

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home