अलविदा....अब तारों संग चमकूंगी !
( आखिरकार जेड गुडी नहीं रही.... अपने बच्चों से दूर चली गयी एक मां, अपने बच्चों से दूर जाते हुए गुडी ने कहा अलविदा बच्चों.... अब आसमान की ओर देखना.... तारों संग चमकेगी तुम्हारी मां। .... ये कविता मैंने 2 दिन पहले लिखी थी। एकबार फिर लगता है... गुडी के दर्द को महसूस करते हुए, उसकी जिजिविषा को महसूस किया जाए। )
कैसा होता होगा ?
खुद को मरता हुआ देखना
एक-एक पल शरीर को गलता देखना
कैसा होता होगा ?
एक-एक सांस को उखड़ते देखना
मौत जब दबे पांव नहीं आती
उद्घोष करती है
अपने आने का
कानों के बिल्कुल करीब आकार ।।
फिर एक-एक दिन
आंखे देखती हैं
पल-पल गुजरते हुए
जैसे बंद मुट्ठी से रेत निकल जाती है
कैसा होता होगा ?
कैसा होता होगा ?
२७ साल की उम्र में
कैंसर को भोगना
वो कैंसर जो दूर-दर तक जड़ें जमा चुका है
कभी ना ठीक होने के इरादे के साथ ।।
ऐसे वक्त में
जब आप मां हो
और आपके इर्द गिर्द
दो नन्हें मुन्हें घूम रहे हों
और आपको पता हो
कल मुझे नहीं रहना ही
कैसा होता होगा ?
जेड गुडी है उसका नाम
मौत उसे उससे छीन रही है
उसकी आंखों के सामने
डॉक्टर कहते हैं.....
एक हफ्ता और
और फिर.....
जेड को भी मालूम है
वो नहीं रहेगी
मौत आएगी
और सब ख़त्म हो जाएगा ।।
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1 Comments:
jitendra ji....is duniya mein sabse zyada kashtkari hai,apne bachchon se door chale jana,dil chhune vali rachna...
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