मैं ही तुम्हारे काबिल ना था
अब उस रास्ते ना कभी जाऊंगा
जहां कभी गुल-ए-बाग थे
लोग कहते हैं फूल अब भी हैं
मगर मेरी वीरानी मेरे साथ है ।।
ख़ुदा उन बागीचों को और आबाद करे
जहां पल दो पल गुजारे थे
माफ करना फूलों कलियों
मैं ही तुम्हारे काबिल ना था ।।
Labels: मेरी रचना
3 Comments:
itna dukh....
waah saahab, bahut khoob!
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चाँद, बादल और शाम
गुलाबी कोंपलें
ख़ुदा उन बागीचों को और आबाद करे
जहां पल दो पल गुजारे थे
माफ करना फूलों कलियों
मैं ही तुम्हारे काबिल ना था
वाह जनाब.........
बहुत खूब लिखा है, दर्द की दास्ताँ है आपकी रचना
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