हर नए शख्स ने, नई कहानी कही / मुझसे
मैंने कई बार
रंगे शब्दों के चित्र
हर बार
इक नया रंग
और नई कहानी गढ़ी
धूप में सूखाया
अपने कच्चे शब्दों को ।
पर कई बार होता है
मेरे चित्रों की छाया में
वे रंग नहीं आते
जो मेरे चित्रों में सजे थे ।
हर नए शख्स ने
नई कहानी कही / मुझसे
इन चित्रों की आड़ी तिरछी
लकीरों के मतलब
हर बार बदले उसने ।
और, तब मैं असहाय सा होता हूं
अपनी ही गढ़ी कविता पर
उसके अर्थ
बदलते रहते हैं
उसके भाव भी ।
वो, कुछ और कहता है
तुम कुछ और ही
और मैं, तो बिल्कुल ही
अलग सा होकर
बस इतना कह सकता हूं
मन ही मन
मेरी कविता के अर्थों को ना बदलो
उसे मौलिक, सच्ची सीधी सी रहने दो ।।
Labels: मेरी रचना
1 Comments:
वाह !!! सुन्दर रचना.......
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