बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन
हर रोज़ दिखाती है
नए नए आदमी ।
रास्ते नहीं बदलते
बदलते हैं आदमी ।।
Labels: मेरी रचना
posted by Apna-pahar @ 9:47 PM
शामियाने शामों के रोज ही सजाये थे....कितनी उमीदों के मेहमान bulae थे ....aa के darwaaje से lout गए हो यूँ भी कोई aaega ....सोचा n था
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1 Comments:
शामियाने शामों के रोज ही सजाये थे....
कितनी उमीदों के मेहमान bulae थे ....
aa के darwaaje से lout गए हो
यूँ भी कोई aaega ....सोचा n था
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