कैसा था कल का दिन ?
सुबह उठकर अख़बार खोला
महिला को ज़िंदा जलाया था
लोगों ने बांधकर ।
एक बच्ची
जो सात साल की थी
उस पर भी, वहशी नज़रें फिसल गयी
अपनी वासना उतार दी
बेदर्दी से मार डाला ।
दो सभ्रांत महिलाएं
जो बूढ़ीं थी
उन्हें भी मारा गया था
जायदाद का चक्कर था, शायद
लोगों ने कहा, लगता है
अपनों ने ही किया है क़त्ल ।
फिर आगे लिखा था
एक मज़दूर की लाश मिली
सुनसान सड़क पर
रात को जा रहा था,
वो काम से लौटकर
बदमाशों ने शिकार बनाया था
उन्हें गुस्सा आया था उसपर
क्योंकि उसकी जेब में थे सिर्फ दस रुपए ।
एक डॉक्टर ने गुर्दा चुरा लिया था
भोले मज़दूर का
जो गया था
पेट दर्द का इलाज़ कराने ।
पुलिसवालों ने निर्दोष छात्र को हवालात में डाला
फिर पीटा, कहा चोर है
बाद में छात्र ने दे दी जान
घरवालों ने बताया था ।
दसवीं के दो छात्रों
और एक छात्रा ने दे दी जान
उनसे सहा नहीं गया
परीक्षा का बोछ ।
एक मां भी कूद गयी थी छत से
बेटी की परीक्षा हुई थी खराब
पड़ोस वालों ने कोसा था ।
बहुत बुरा लगा
अख़बार पढ़कर
कैसा था कल का दिन ?
Labels: मेरी रचना
2 Comments:
आजकल हर दिन ऐसा ही रहता है ... अच्छी बातें कम हो रही हैं।
अच्छी बातें रोजाना होती हैं, लेकिन वे अखबारों में छपनी बंद हो चुकी हैं। उदाहरण के लिये कल मेरे मित्र के घर लक्ष्मी पैदा हुयी। रूस और अमेरिका ने परमाणु हथियार कम करने का फैसला किया। और भी! कुछ नमूने यहाँ देखे जा सकते हैं: http://www.goodnewsnetwork.org/
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