हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Saturday, April 18, 2009

देखो कितने दूर चले आए हम

मैं चुप था
तुमने नाराज़ समझा
मैंने सोचा था
तुम बुलाओगे मुझको
ना तुमने पुकारा
ना मैं पलटा
देखो कितने दूर चले आए हम
फासले बढ़ते ही जा रहे हैं
अब मीलों से लगते हैं ।।

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