हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Saturday, April 18, 2009

एक दिन तो होगी/सुबह मेरी

बार-बार हार कर भी
नहीं हारा इक बार
अभी बाकी है
आस जीत की ।
एक दिन तो होगी
सुबह मेरी....
रोक लूंगा
ढलते सूरज को/ दोपहर में
यही एक बात
मेरी हार नहीं होने देती है
हर बार हार कर भी
मेरी जीत होती है ।।

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1 Comments:

At October 10, 2010 at 11:39 PM , Blogger Unknown said...

प्रेरणादायी है, भाव अच्छे हैं।

 

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