महिलाओं ने जीती जंग
'नशा नहीं रोजगार दो' ये नारा उत्तराखंड के लिए नया नहीं है। इस नारे को लेकर उत्तराखंड की महिलाओं ने एक लंबी लड़ाई लड़ी है। ये लड़ाई आज भी जारी है। वक्त बेवक्त जब जनता की चुनी हुई सरकार आधी दुनिया की भावनाओं का तिरष्कार करती है, तो 'नशा नहीं रोजगार दो' एक इंकलाब बनकर महिलाओं का संबल बन जाता है। अल्मोड़ा के बसौली कस्बे में महिलाओं ने एकबार फिर से शराब के खिलाफ आंदोलन चलाया और कामयाबी पाई।
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जैसा कि हमेशा होता है, प्रशासन ने महिलाओं की बात को गंभीरता से नहीं लिया। आचार संहिता का बहाना बनाकर आंदोलनकारियों को फुसलाने की कोशिश हुई। इधर शराब की बिक्री बंद होने के बावजूद शराबियों की संख्या में कोई कमी नहीं हुई। इसने महिलाओं की चिंता बढ़ा दी। जिसके बाद महिलाओं ने आसपास की गतिविधियों पर नज़र रखना शुरू किया। महिलाओं को पता चला कि शराब के सेल्समैन कुछ और दुकानदारों के साथ मिलकर बाहर ही बाहर शराब बेच रहे हैं। बस फिर क्या था महिलाओं ने इसका विरोध करना शुरू किया। लेकिन ऐसा करने पर महिलाओं को धमकियां मिलने लगी। धमकियों ने महिलाओं को डराने के बजाय एकजुट कर दिया। और सभी महिलाएं अपने अस्तित्व और आत्म-सम्मान के लिए एकजुट हो गयी।
लेकिन इसी बीच ३० मार्च को अल्मोड़ा में हुई नीलामी में बसौली की दुकानें पुराने ठेकेदार के नाम होने की ख़बर ने आंदोलनकारियों को सकते में डाल दिया। कहां तो आंदोलनकारी पूरे इलाके में शराब बंदी के लिए आंदोलन कर रहे थे, और कहां ये नीलामी की ख़बर। इस ख़बर ने आग में घी का काम किया। आंदोलन को और जन समर्थन मिलने लगा। व्यापार संगठन और ग्राम प्रधान संघ ने आंदोलन के समर्थन में प्रशासन को ज्ञापन सौंपे। महिलाओं ने अल्मोड़ा-बागेश्वर राष्ट्रीय राजमार्ग पर हर रोज़ दोपहर बाद प्रदर्शन और सांकेतिक चक्का जाम कर प्रशासन को चेताया।
लेकिन प्रशासन को इस आंदोलन से कोई फर्क नहीं पड़ा। प्रशासन शराब की इन दुकानों को आसपास ही कहीं खिसकाने की फिराक में लगा रहा। इससे सतराली, ताकुला, डोटियालगांव, भकूना, झिझाड़, चुराड़ी, गंगलाकोटली, भैसोड़ी, हड़ौली, सुनोली आदि गांवो की महिलाएं भी बसौली के आंदोलन में आने लगी। अब महिलाओं का रात-रात भर जागरण शुरू हो गया।
६ अप्रैल की सुबह से ही आंदोलनकारी जुटने लगे थे। दोपहर तक सैकड़ों महिलाएं धरने पर बैठ चुकी थीं। और उनका आना लगातार जारी था। महिला संगठन की अध्यक्ष लक्ष्मी देवी के नेतृत्व में नारों और जनगीतों के साथ अनिश्चितकालीन चक्का जाम शुरू हुआ। महिलाओं के सामने एक बड़ा सवाल था। शराब उनके घर उजाड़ रही है। उनके नौजवान बेटे शराब के चंगुल में फंसकर अपना सबकुछ गवां रहे हैं। घर के मर्द शराब पीकर अपना सबकुछ बरबाद करने में लगे हैं। ज़ाहिर है घर संभालने वाली महिलाएं अपनी आंखों के सामने ये सब नहीं देख सकती। इसलिए उनके सामने ये सवाल करो या मरो बनकर खड़ा हो गया था। आंदोनकारियों ने लान कर दिया कि अगर सरकार अभी भी नहीं जागी, तो लोकसभा चुनावों का बहिष्कार किया जाएगा।
महिलाओं के शांतिपूर्ण आंदोलन के बावजूद सोया प्रशासन अब जाग गया। आंदोलनकारियों के चक्का जाम से सड़क के दोनों ओर वाहनों की लंबी-लंबी कतारें लग गयी। ये प्रशासन के लिए एक खराब स्थिति थी। महिलाओं के तेवर से प्रशासन में हड़कंप मच गया। अंतत: तीन घंटे बाद ज़िला प्रशासन को महिलाओं के आगे झुकना पड़ा। प्रशासन की ओर से नायब तहसीलदार जगन्नाथ जोशी ने सूचना दी कि ज़िला प्रशासन दोनों शराब की दुकानों को बसौली से पांच किलोटर दूर हटाने को सहमत हो गया है। लेकिन महिलाएं अभी भी जाम खोलने को तैयार नहीं हुई। महिलाएं चाहती थी, कि डीएम या एसडीएम स्तर का कोई अधिकारी आकर भरोसा दिलाए। करीब साढे तीन घंटे बाद चक्का जाम खोल दिया गया। लेकिन महिलाओं ने धरना जारी रखा।
देर शाम एसडीएम और ज़िला आबकारी अधिकारी को घरना स्थल पर आना ही पड़ा। और उन्होने महिलाओं को भरोसा दिलाया कि शराब की दुकानें बसौली से पांच किलोमीटर दूर हटा दी जाएंगी। इस आश्वासन के बाद आंदोलनकारियों में खुशी की लहर दौड़ गयी। गांव की महिलाओं ने अपने दम पर प्रशासन को झुका दिया था। हालांकि अब ये दुकानें बसौली से हटाकर कहां ले जाई जाएंगी ? इस सवाल ने संभावित गांवों की महिलाओं की हलचल बढ़ा दी है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इन शराब की दुकानों को बसौली से हटाकर भेटूली, अयारपानी या फिर कफड़खान ले जाया जा सकता है। ज़ाहिर है अब वहां की महिलाएं बैचेन हो गयी हैं। अब बारी एक और आंदोलन की है.... जिसके स्वर संभवतया लोकसभा चुनाव के बाद सुनाई पड़ें। लेकिन फिलहाल बसौली की औरतें अपनी जीत पर गर्व तो कर ही सकती हैं।
(अनुमान है कि सरकार को बसौली की दुकानों से डेढ़ करोड़ के आसपास का राजस्व मिलता है। )
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( ये लेख बसौली को करीब से जानने वाले महेश जोशी ने नैनीताल-समाचार के ताज़ा अंक १४ से ३० अप्रैल में लिखा है। इस लेख नैनीताल समाचार के सौजन्य से यहां छाप रहा हूं।)--------------------------------------------------------------------
अल्मोड़ा ज़िला प्रशासन ने बसौली कस्बे से शराब दुकानें पांच किलोमीटर दूर हटाने का भरोसा दिया।
जिसके बाद शराब विरोधी संघर्ष समिति, मल्ला स्यूनरा ने आंदोलन स्थगित कर दिया। बसौली में महिलाएं २८ मार्च से शराब की दुकानों के आगे धरना दे रही थीं। महिलाओं ने शराब की दुकानों पर ताला डालकर शराब की बिक्री रोक दी। महिलाओं ने प्रशासन को चेतावनी दी, कि अगर शराब की दुकाने नहीं हटाई गयी, तो ६ अप्रैल की दोपहर से अनिश्चितकालीन चक्का जाम लगा दिया जाएगा।
जिसके बाद शराब विरोधी संघर्ष समिति, मल्ला स्यूनरा ने आंदोलन स्थगित कर दिया। बसौली में महिलाएं २८ मार्च से शराब की दुकानों के आगे धरना दे रही थीं। महिलाओं ने शराब की दुकानों पर ताला डालकर शराब की बिक्री रोक दी। महिलाओं ने प्रशासन को चेतावनी दी, कि अगर शराब की दुकाने नहीं हटाई गयी, तो ६ अप्रैल की दोपहर से अनिश्चितकालीन चक्का जाम लगा दिया जाएगा।
जैसा कि हमेशा होता है, प्रशासन ने महिलाओं की बात को गंभीरता से नहीं लिया। आचार संहिता का बहाना बनाकर आंदोलनकारियों को फुसलाने की कोशिश हुई। इधर शराब की बिक्री बंद होने के बावजूद शराबियों की संख्या में कोई कमी नहीं हुई। इसने महिलाओं की चिंता बढ़ा दी। जिसके बाद महिलाओं ने आसपास की गतिविधियों पर नज़र रखना शुरू किया। महिलाओं को पता चला कि शराब के सेल्समैन कुछ और दुकानदारों के साथ मिलकर बाहर ही बाहर शराब बेच रहे हैं। बस फिर क्या था महिलाओं ने इसका विरोध करना शुरू किया। लेकिन ऐसा करने पर महिलाओं को धमकियां मिलने लगी। धमकियों ने महिलाओं को डराने के बजाय एकजुट कर दिया। और सभी महिलाएं अपने अस्तित्व और आत्म-सम्मान के लिए एकजुट हो गयी।
लेकिन इसी बीच ३० मार्च को अल्मोड़ा में हुई नीलामी में बसौली की दुकानें पुराने ठेकेदार के नाम होने की ख़बर ने आंदोलनकारियों को सकते में डाल दिया। कहां तो आंदोलनकारी पूरे इलाके में शराब बंदी के लिए आंदोलन कर रहे थे, और कहां ये नीलामी की ख़बर। इस ख़बर ने आग में घी का काम किया। आंदोलन को और जन समर्थन मिलने लगा। व्यापार संगठन और ग्राम प्रधान संघ ने आंदोलन के समर्थन में प्रशासन को ज्ञापन सौंपे। महिलाओं ने अल्मोड़ा-बागेश्वर राष्ट्रीय राजमार्ग पर हर रोज़ दोपहर बाद प्रदर्शन और सांकेतिक चक्का जाम कर प्रशासन को चेताया।
लेकिन प्रशासन को इस आंदोलन से कोई फर्क नहीं पड़ा। प्रशासन शराब की इन दुकानों को आसपास ही कहीं खिसकाने की फिराक में लगा रहा। इससे सतराली, ताकुला, डोटियालगांव, भकूना, झिझाड़, चुराड़ी, गंगलाकोटली, भैसोड़ी, हड़ौली, सुनोली आदि गांवो की महिलाएं भी बसौली के आंदोलन में आने लगी। अब महिलाओं का रात-रात भर जागरण शुरू हो गया।
६ अप्रैल की सुबह से ही आंदोलनकारी जुटने लगे थे। दोपहर तक सैकड़ों महिलाएं धरने पर बैठ चुकी थीं। और उनका आना लगातार जारी था। महिला संगठन की अध्यक्ष लक्ष्मी देवी के नेतृत्व में नारों और जनगीतों के साथ अनिश्चितकालीन चक्का जाम शुरू हुआ। महिलाओं के सामने एक बड़ा सवाल था। शराब उनके घर उजाड़ रही है। उनके नौजवान बेटे शराब के चंगुल में फंसकर अपना सबकुछ गवां रहे हैं। घर के मर्द शराब पीकर अपना सबकुछ बरबाद करने में लगे हैं। ज़ाहिर है घर संभालने वाली महिलाएं अपनी आंखों के सामने ये सब नहीं देख सकती। इसलिए उनके सामने ये सवाल करो या मरो बनकर खड़ा हो गया था। आंदोनकारियों ने लान कर दिया कि अगर सरकार अभी भी नहीं जागी, तो लोकसभा चुनावों का बहिष्कार किया जाएगा।
महिलाओं के शांतिपूर्ण आंदोलन के बावजूद सोया प्रशासन अब जाग गया। आंदोलनकारियों के चक्का जाम से सड़क के दोनों ओर वाहनों की लंबी-लंबी कतारें लग गयी। ये प्रशासन के लिए एक खराब स्थिति थी। महिलाओं के तेवर से प्रशासन में हड़कंप मच गया। अंतत: तीन घंटे बाद ज़िला प्रशासन को महिलाओं के आगे झुकना पड़ा। प्रशासन की ओर से नायब तहसीलदार जगन्नाथ जोशी ने सूचना दी कि ज़िला प्रशासन दोनों शराब की दुकानों को बसौली से पांच किलोटर दूर हटाने को सहमत हो गया है। लेकिन महिलाएं अभी भी जाम खोलने को तैयार नहीं हुई। महिलाएं चाहती थी, कि डीएम या एसडीएम स्तर का कोई अधिकारी आकर भरोसा दिलाए। करीब साढे तीन घंटे बाद चक्का जाम खोल दिया गया। लेकिन महिलाओं ने धरना जारी रखा।
देर शाम एसडीएम और ज़िला आबकारी अधिकारी को घरना स्थल पर आना ही पड़ा। और उन्होने महिलाओं को भरोसा दिलाया कि शराब की दुकानें बसौली से पांच किलोमीटर दूर हटा दी जाएंगी। इस आश्वासन के बाद आंदोलनकारियों में खुशी की लहर दौड़ गयी। गांव की महिलाओं ने अपने दम पर प्रशासन को झुका दिया था। हालांकि अब ये दुकानें बसौली से हटाकर कहां ले जाई जाएंगी ? इस सवाल ने संभावित गांवों की महिलाओं की हलचल बढ़ा दी है। अनुमान लगाया जा रहा है कि इन शराब की दुकानों को बसौली से हटाकर भेटूली, अयारपानी या फिर कफड़खान ले जाया जा सकता है। ज़ाहिर है अब वहां की महिलाएं बैचेन हो गयी हैं। अब बारी एक और आंदोलन की है.... जिसके स्वर संभवतया लोकसभा चुनाव के बाद सुनाई पड़ें। लेकिन फिलहाल बसौली की औरतें अपनी जीत पर गर्व तो कर ही सकती हैं।
(अनुमान है कि सरकार को बसौली की दुकानों से डेढ़ करोड़ के आसपास का राजस्व मिलता है। )
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