हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Tuesday, April 28, 2009

जहां लिखना सीखा

मैं जैसा भी हूं, ऐसा क्यों हूं ? जब मैंने ये सवाल ख़ुद से पूछा, तो मैं मेरे अतीत में चला गया। अतीत के पन्नों पर पड़ी धूल को हाथों से साफ किया.... तो फिर कई पन्ने साफ-साफ चमकने लगे। इनमें से कुछ पन्ने बड़े चमकदार हैं। अतीत के एक पन्ने पर चमकीले अक्षरों से एक नाम लिखा है.... राजीव लोचन साह।

राजीव लोचन साह पेशे से पत्रकार हैं, लेकिन पत्रकारिता इन्हें इतना नहीं देती कि इससे रोटी का जुगाड़ हो सके। सो रोटी के लिए होटल का पुश्तैनी व्यवसाय करते हैं। लेकिन जितना मैंने देखा पत्रकार राजीव लोचन साह में व्यावसायी राजीव लोचन साह कभी हावी नहीं हुआ।

दरअसल इस नाम की ज़िक्र करना मेरे लिए सबसे अहम है। जब अपने बारे सोचता हूं, और सवाल करता हूं... कि मैं क्या हूं ? मेरी पहचान क्या है ? जवाब में एक छोटी सी पहचान उभरती है....ये पहचान पत्रकार की है। कम ही लोग जानते होंगे पर यही सबसे अधिक सही है। फिर मैं सोचता हूं कि ये पत्रकार कैसे बना ? सवाल के जवाब में राजीव लोचन साह सामने आ जाते हैं।

दरअसल कॉलेज के ज़माने से मैं लिखना चाहता था। लिखना और अपने लिखे हुए को पढ़ना काफी मज़ेदार लगता था। बात 1998 की है.... लिखने के शौक ने मुझे हमारे कॉलेज से निकलने वाली छात्र पत्रिका का संपादक बना दिया। तब मैं बीए दूसरे साल का छात्र था। शुरुआत में कविता और कुछ इधर-उधर का लिखता रहा। सोचता था कि किसी दिन किसी अखबार में लिख सकूंगा या नहीं ? फिर एक दिन साल 2001 के मई महीने में मेरे एक दोस्त ने मुझे राजीव लोचन साह से मिलाया। दरअसल राजीव जी मेरे उस दोस्त से कुछ लिखवाना चाहते थे। लेकिन उसकी उस वक्त लिखने में रुचि नहीं थी। और मेरा दोस्त मुझे उनसे मिलाने ले आया। मैं बड़ा खुश हुआ, हालांकि ये अंदाज़ा मेरे लिए मुश्किल था... कि मुलाकात के बाद क्या होगा ?
मेरे दोस्त ने मुझे राजीव जी से मिलवाने की बात कही। और थोड़ी ही देर में हम दोनों उनके ऑफिस में थे। ये 'नैनीताल-समाचार' का ऑफिस था। देखने में बिल्कुल सामान्य सा। लेकिन मेरे लिए किसी सपने जैसा। अख़बार का ऑफिस कैसा होता होगा ? इससे पहले कभी सोचा ही नहीं था। 'नैनीताल-समाचार' नैनीताल से निकलने वाला एक पाक्षिक अख़बार है... जो पंद्रह दिन में एक बार निकलता है। पिछले 32 सालों से निकल रहे इस अख़बार ने उत्तराखंड के हर उस पहलू को अपने पन्नों में समेटा है.... जिसे आमतौर पर मुख्यधारा के अख़बार नज़रअंदाज़ करते रहे हैं।

मेरे दोस्त ने मेरा परिचय राजीव लोचन साह से करवाया। ये जितेंद्र है.... मेरा दोस्त। इसे लिखने का शौक है... अगर आप चाहें... तो इससे लिखवा सकते हैं... मेरे दोस्त ने कहा। राजीव जी ने मुझसे मेरे बारे में पूछा, मैं किस विषय से पढ़ रहा हूं.... आदि-आदि। और फिर बिना किसी भूमिका के मुद्दे पर आ गए।..... क्यों नहीं तुम मशरुम की खेती के बारे में एक आर्टिकल लिखते ? मेरे पिताजी राज्य सरकार के एक मशरुम प्रोजेक्ट में ही काम करते थे। इसलिए ये आर्टिकल लिखना... मेरे लिए आसान होगा..... शायद ये राजीव जी ने समझ लिया था। उन्होने कहा... अगर जल्दी लिख दोगे... तो अख़बार के इसी अंक में भेज देंगे।
ये मेरे लिए किसी चैलेंज से कम नहीं था। जैसे पत्रकारिता का पहला इम्तिहान। मैं दूसरे दिन कॉलेज नहीं गया...मुझे दूसरी पढ़ाई करनी थी। मैं एक छात्र से एक पत्रकार बन गया था। उस दिन मैंने देखा कि जिस-जिस से मैंने बात की उनका नज़रिया मेरे प्रति बदल गया था। लोग मेरी बातों को गंभीरता से ले रहे थे। मेरे सवालों का वहां कोई मतलब था। लोग मेरे सामने अपनी परेशानी बयां कर रहे थे। जैसे मैं उन्हें सुलझा दूंगा। मुझे उस दिन लगा पत्रकार बनना एक ज़िम्मेदारी भी है।

पत्रकार बनने और अपना लिखा एक अख़बार में छपा हुआ देखने की इच्छा ने मुझमें काफी ऊर्जा भर दी थी। मैंने एक दिन में ही अपना लेख तैयार कर लिया। और उसे लेकर दूसरे दिन नैनीताल समाचार के ऑफिस पहुंच गया। मेरा दिल ज़ोर-ज़ोर से धड़क रहा था। राजीव जी ना जाने मुझसे क्या कहेंगे ? क्या मैंने सही लिखा है ? राजीव जी को अपना लेख देते हुए.... की तरह के विचार मन में कौंधते रहे। राजीव जी ने लेख ऊपर से नीचे देखा.... और उसमें सुधार करने के कुछ सुझाव दिए। मैंने वहीं ऑफिस में बैठक अपने लेख को रीराइट किया। और उन्हें थमा दिया.... इस बार वो कुछ संतुष्ट थे। ये मेरे लिए मेरा इम्तिहान सही निपटने जैसा था।.... लेकिन अभी रिजल्ट आना बाकी था।

अपना लेख छपा हुआ देखने के लिए मुझे एक हफ्ता इंतज़ार करना पड़ा।.... लेकिन उस पहले लेख को देखकर जितनी खुशी मुझे हुई... उतनी शायद कभी नहीं। इस लेख को सीन से चिपटाए... मैं घर पहुंचा था।..... पिताजी को अख़बार दिखाया.... मां को पढ़कर सुनाया। सब खुश हुए... तो मुझे लगा... जैसे एक बड़ा काम हुआ। बस तब से मैं नैनीताल समाचार से जुड़ गया। कॉलेज के बाद कुछ वक्त नैनीताल समाचार में ही बीतने लगा। रोज २-३ घंटे मैं नैनीताल-समाचार के ऑफिस में आकर देखता कि किस तरह लोग ख़बरों के बारे में बातें कर रहे हैं। धीरे-धीरे मैं बहस का हिस्सा बनने लगा था। ये मेरी अघोषित ट्रेनिंग का हिस्सा था। तब शायद इस बात का अहसास नहीं था, कि मैं क्या सीख रहा हूं ? पर आज जब अपने इर्द-गिर्द लोगों को देखता हूं तो महसूस होता है कि मैंने क्या पा लिया ?

नैनीताल समाचार के माध्यम से सीखा कि किस तरह क्षेत्रीय मुद्दे क्षेत्रीय अहम होते हैं। किसी स्थानीय घटना के राष्ट्रीय मायने क्या हो सकते हैं ? ये नैनीताल समाचार के अलावा कहीं नहीं सीख सका। पत्रकारिता की औपचारिक पढ़ाई करते हुए आईआईएमसी में काफी कुछ सीखा। लेकिन असल ख़बरें और उनके सामाजिक सरोकारों के बारे में नैनीताल समाचार ने ही सिखाया। किसी घटना को कैसे ख़बर की चाशनी में लपेट कर लोगों के सामने पेश किया जाए.... इसका हुनर नौकरी के दौरान आ गया। लेकिन एक मज़लू की ज़िंदगी में होने वाली त्रासदी किस तरह ख़बर है.... ये नैनीताल समाचार में ही सीखा।

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1 Comments:

At April 28, 2009 at 9:04 AM , Blogger RAJNISH PARIHAR said...

बहुत ख़ुशी हुई आप की पोस्ट पढ़ कर...!आज भी आप अपनी जनम भूमि से जुड़े है..ये आपके ब्लॉग से पता चलता है..!कृपया इसी तरह जमीन से जुडी जानकारी देते रहिएगा..

 

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