हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Friday, April 24, 2009

बहुत दिन हुए / तुमसे बात नहीं की

रात बड़ी ठंडी सी थी
कोहरा छाया था / चारों ओर
अपना हाथ ही
पराया सा लगता था
ज़रा सी आवाज़
शोर भरती थी
सांस सांय सांय करती थी ।।

सुनसान सा हो गया था / सबकुछ
तुम्हारे जाने के बाद
बहुत देर तक सोचता रहा मैं
तुम्हारे बारे में
घंटे / सर-सर निकल गए ।।

पर तुम्हारे होने का अहसास अब भी है
तुम्हारी आवाज़
अब भी गूंजती है / कानों के पास
तुम्हारे शब्द
संगीत से बनकर / बज रहे हैं ।।
रात अब भी उतनी ही ठंडी है
कोहरा और घना हो गया है
हाथ मेरा / और ठंडा सख़्त
परायापन / पहले से कहीं अधिक लगता है ।
बहुत दिन हुए ना...
तुमसे बात नहीं की ।।


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1 Comments:

At April 25, 2009 at 11:53 PM , Blogger Harshvardhan said...

bahut sundar rachna hai....

 

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