हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Saturday, May 2, 2009

'सफलता' / कैसे नापूंगा इसे ?

'सफलता'
कैसे नापूंगा इसे ?
क्या गांव से शहर तक आना/
थी मेरी सफलता ?
या शहर से गांव लौटना होगी ?
क्या कार होगी, मेरे पास सफलता की निशानी ?
या दक्षिण दिल्ली में एक घर होना ज़रुरी है ?


या फिर थोड़ी खुशी
और हंसी के दो पल काफी हैं ?
क्या किसी के लिए कुछ कर पाने का अहसास
मेरी सफलता नहीं होगी ?
कितने लोग जानें मुझे ?
तब सफल मानोगे
एक हज़ार ?
दस हज़ार ?
या फिर लाख, दस लाख ?

क्या करने से मिलेगी सफलता ?
अभिनय ?
चित्रकारी ?
क्या क्रिकेट खेलकर ?
या फिर टेनिस बॉल ?
या सत्ता के गलियारों में सत्ता का खेल ?

दोस्त, तुमने कहा
ज़िंदगी में सफलता ज़रुरी है !
सोचता ही रह गया...... मैं
कैसे पूरी होगी मेरी ये अभिलाषा ?
क्या हो पाऊंगा.... मैं भी कभी सफल ?


Labels:

1 Comments:

At September 25, 2010 at 1:57 AM , Blogger Unknown said...

बहुत बढ़िया रचना है! लेकिन आश्चर्य इस पर अब तक कोई फीडबैक नहीं था।

 

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home