हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Friday, June 12, 2009

प्यार क्या है ?


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'एक'
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'प्यार'
देह का आकर्षण है
खूबसूरत चेहरा देखती हैं आंखें
और दिल धड़कता है
दिमाग सोचता है
कई तरकीबें
नजदीक जाने की
कई चालें होती हैं इसमें
और फिर... ।।
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'दो'
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'प्यार'

सच है
सबकुछ है
बहुत खूबसूरत होता है
अगर वो खूबसूरत नहीं तो भी
सबसे खूबसूरत ही लगता है
तर्क नहीं चलते
जिसे चाहता है दिल
आंखें ढूंढती हैं
मन पहचान लेता है
मन जानता है
कहां है वो ?
और कदम ख़ुद-ब-ख़ुद चल पड़ते हैं वहां ।।
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'तीन'
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'प्यार'

कुछ नहीं होता
संवेदनशील लोगों की कमज़ोरी है
कमज़ोर बना देता है ये
दिमाग काम नहीं करता
आंखे वो देखती हैं
जो नहीं होता
और दूर की सोचते हैं
प्यार करने वाले
रोते हैं... बार-बार ।।

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'चार'
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'प्यार'

कुछ नहीं होता
क्या चाहिए आपको ?
शाम के लिए एक साथी
हाथ में हाथ
और मॉल में चहलकदमी
या फिर किसी एक दिन
दो टिकट फिल्म की
या बागीचे में बैठकर करना बातें ।।
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'पांच'
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'प्यार'

चारों हैं
अलग-अलग लोगों के लिए
चारों के अपने-अपने होते हैं सपने
अपनी-अपनी इच्छाएं प्यार की
अपनी ही तरह के वादे
साथ निभाने के

पर कौन कर पाता है
सच्चा वाला प्यार ?


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1 Comments:

At June 12, 2009 at 11:52 AM , Blogger Nidhi said...

सही लिखा है आपने प्यार के बारे मे,क्योंकि प्यार के सच मे तीनो रूप है, मेरा मानना है और रूप भी है प्यार के!ये भी सच है, हर व्यक्ति के लिए उसके मायने अलग-अलग है क्योंकि सबकी सोच अलग-अलग है!

 

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