कभी यूं करना !
'एक'
झूठी चादर से ढककर
क्यों ? पाप छिपाते हो
क्यों ? सच को अंदर कर
झूठ दिखाते हो
क्यों ? गम के चेहरे पर
हंसी लगाई है
क्यों ? हंसते हो
दिल में तन्हाई है ।।
'दो'
बदला, उन सभी से लूंगा
एक दिन
जिनके कारण
मिली रात
मिली तनहाई ।।
उनको दूंगा
प्यार
और चमकीली सुबह
ताकि ढूंढ सकें
चमकदार उजाले में
अपने मन के अंदर की काई ।।
Labels: मेरी रचना
8 Comments:
ये बात हमको बहुत पसंद आई
मेरी कलम - मेरी अभिव्यक्ति
bahut bahut bahut pasand aayi .....yah rachana mujhe bahut pasand aayi
बदला, उन सभी से लूंगा
एक दिन
जिनके कारण
मिली रात
मिली तनहाई ।।
उनको दूंगा
प्यार
कितना खूबसूरत लिखा है आपने.....
अच्छे भाव की कविता। पहली कविता पढ़कर ये पंक्तियाँ याद आयीं-
किरदार चौथे खम्भे का हाथी के दाँत सा
क्यों असलियत छुपा के दिखाती है जिन्दगी
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
उम्दा!! बेहतरीन!
उनको दूंगा
प्यार
और चमकीली सुबह
ताकि ढूंढ सकें
चमकदार उजाले में
अपने मन के अंदर की काई ।।
waah bahut sunder
bahut acha likha hai aapne
धन्यवाद आप सभी का
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