अनुभव
अनुभव से पूर्ण
उसने कहा- बेटा
अब तुम बड़े हो गए हो
अब तुम सच बोलना छोड़ दो ।
तुम्हें आगे बढ़ना है
और वो रास्ता
जो पीछे की ओर खुलता है
उस पर चलो
सीधे चलते जाना
रास्ते पर कोई खड़ा हो
अगर तुमसे पहले
उसके पीछे मत लगना
गिरा देना उसको
चाहे जैसे भी ।
बेटा, अब तुम्हें
दया-करुणा भूला देनी चाहिए
अब तुम बच्चे नहीं रहे
कुछ सीखो
ज़माने के दस्तूर हैं
सब दौड़ रहे हैं
दूसरे के कंधों पर सवार होकर ।।
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7 Comments:
ेअरे अरे दूसरे के अनुभव को पहले तोलो फिर अपनाओ इस कविता मे लिखा अनुभव सबका तो नहीं हो सकता वैसे कविता बहुत अच्छी है किसी के अनुभव को सही शब्द और प्रवाह दिया है आशीर्वाद्
भट्टजी,
कटु अनुभवों ने,
भले ही यह सीख दी हो,
फिर भी कहूंगा कि,
सच की डगर,
लम्बी जरूर होती है मगर,
बिना टोल-बैरियार की होती है,
और एक सच्चे पथिक का धर्म है,
बस चलते चले जाना !
एक सच्चा कांवड़
यह नहीं देखता कि
उसकी आवाभगत को,
अपने पापो को धुल जाने की
गलतफहमी में,
किसी पापी ने
बीच राह में,
भंडारा लगाया अथवा नहीं,
उसे तो बस,
शिव-पर्व से पहले,
कांवड़ मंजिल तक पहुचानी होती है !
बम-बम भोले !!
yeh baat jitender ji ne aapne jeevan ke anubhav ke anusaar sunaya hai lakin inko last main kis cheez ka sukh mila shri ram ji ne sachai ka saath to anth main vijay hui.
juth ke bal per aadmi jayada din tak nahi kada ho pata hai.juth ki seema thode samaye tak hoti hai.
मैंने ऐसा तो नहीं कहा कि ऐसा होना चाहिए। पर क्या ऐसा नहीं होता। सच बोलने और सही रास्ते पर चलने की बात सब कहते हैं। लोग आगे बढ़ने के लिए क्या-क्या नहीं कर रहे ? मैंने व्यग्य की शैली में ये बात कही... लगता है आप लोग समझ नहीं पाए।.... माफ किजिए मैं समझा नहीं सका।
भट्ट जी
बहुत अछि रचना
एक कडुए सच को आपने बहुत खूबी से लिखा है |
चाहे कितना भी कोई नकारे लेकिन सच यही है की हर कोई यही सिखाता है जीने के लिए चाहे किसी भी रूप में |
शुक्रिया... निपुन ... दरअसल हमारे दौर की सबसे बड़ी परेशानी यही है... हम करते कुछ और हैं... और कहते कुछ और..... हम होते कुच और हैं... और दिखाते कुछ और।... दरअसल हम एक पैकेज्ड प्रोडक्ट की तरह बन गए हैं।... बाहर से सब चमकीला... और अंदर से ?
सब कुछ मिल जाएगा शायद, लेकिन चैन और सुकून निश्चित रूप से नहीं मिलेगा। ज़माने की अंध दौड़ में उसे शामिल होने का न कहें।
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