हिमाल : अपना-पहाड़

बस एक कामना, हिम जैसा हो जाए मन

Thursday, January 16, 2014

'आप' का पहला सबक

आम आदमी पार्टी का सामना पहली बड़ी सियासी मुश्किल से हुआ है। विरोध में न बीजेपी खड़ी है, न ही कांग्रेस है। सामने अपने खड़े हैं। वो अपने जिन्होंने आम आदमी पार्टी के पैदा होते बनते देखा।
इस सियासी मुश्किल के पीछे बेशक सियासी महत्वाकांक्षाएं हैं। विनोद कुमार बिन्नी पार्षद से विधायक बने, अब वो सांसद बनने का ख्वाब देख रहे हैं। ये ख्वाब देखने वाले आम आदमी पार्टी में वो अकेले नहीं हैं। दिल्ली में ऐसा ख्वाब कई और "आम आदमियों" की आंखों में भी है। कई इसके लिए लाखों रुपए की नौकरी छोड़कर आए हैं।
दरअसल दिल्ली ही वो मैदान है, जहां पर आम आदमी पार्टी से लोकसभा टिकट मिलने का मतलब काफी हद तक जीत की गारंटी हो सकता है। इसलिए इस पके आम को लपकने की कोशिश में हर छोटा और बड़ा "आम आदमी" लगा है।
ऐसे में राजनीतिक महत्वाकांक्षा में पले बढ़े बिन्नी ने ये कोशिश की तो हैरानी क्या है?
पर कुछ सवाल खड़े हो रहे हैं? जो आम आदमी पार्टी की बढ़ती लहर से पैदा हुए हैं। क्या बिन्नी का इस तरह पार्टी के खिलाफ खड़े हो जाना और केजरीवाल सहित पार्टी की विचारधारा को कोसना साधारण बात है? वो भी तब जब वो इस पार्टी के दम पर विधायक बने।
मुझे लगता है, ये सियासी खेल इतना सीधा तो नहीं है। केजरीवाल की बढ़ती ताकत ने सबसे ज़्यादा बीजेपी को बेचैन किया है। मोदी इससे ज़्यादा परेशान हैं। बात सीधी है, अगर केजरीवाल और आम आदमी पार्टी ऐसे ही चलती रहे, तो उसकी ताकत और लहर बढ़ना तय है। जाहिर है ऐसे में दस साल बाद बीजेपी के सत्ता में वापसी का सपना टूट सकता है। मोदी की सालों पुरानी आकांक्षा केजरीवाल तोड़ने की स्थिति में आ गए हैं।
तो क्या ये संभव नहीं... जैसा कि आम आदमी पार्टी के मुख्य प्रवक्ता योगेंद्र यादव ने भी कहा, कि बिन्नी बीजेपी के हाथों का खिलौना बन गए हैं????
बीजेपी हो या कांग्रेस ऐसे खेल में माहिर रही हैं। ऐसा करने के दो फायदे बीजेपी को हो सकते हैं। पहला, सीधा फायदा उन्हें लोकसभा चुनावों में मिल सकता है। बिन्नी की हरकतों से उस आम आदमी की सोच प्रभावित हो सकती है, जो आम आदमी पार्टी को वोट देने का मन बना रहा था। अगर ये सोच प्रभावित हुई, तो फिर उसके लिए विकल्प बीजेपी और मोदी ही हो सकते हैं। क्योंकि मौजूदा हालात में कांग्रेस का कोई चांस दिख नहीं रहा है। यानी बिन्नी नाम की कठपुतली के धागे बीजेपी के हाथ में होने का मतलब लोकसभा चुनाव में बड़ा फायदा हो सकता है।

(लगता तो ये भी है कि बीजेपी... आम आदमी पार्टी के ऐसे और बिन्नियों के संपर्क में भी हो। आने वाले दिनों में कुछ और बिन्नी बम फूटें तो अचरच नहीं होना चाहिए।  )

खैर बीजेपी को होने वाले दूसरे फायदे की बात करते हैं। बीजेपी को दूसरा फायदा दिल्ली में होगा। जिसका इस्तेमाल बीजेपी लोकसभा चुनावों के बाद कर सकती है। बीजेपी के पास 32 विधायक हैं। एक निर्दलीय विधायक भी बीजेपी को समर्थन दे रहे हैं। इस तरह आंकड़ा 33 का है। अब अगर बिन्नी बीजेपी के इशारों पर नाच रहे हैं, तो बीजेपी का आंकड़ा 34 हो जाएगा। इस तरह बीजेपी को सिर्फ 2 और विधायकों की ज़रूरत रह जाएगी। जिसका जुगाड़ करना आसान होगा।

लेकिन चिंता बीजेपी, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी जो अब सियासी है... कि नहीं है। चिंता उस आम आदमी के भरोसे की है, जो कुछ लोगों से उम्मीदें लगा बैठा है। ये उम्मीदें इतनी जल्दी टूटीं, तो फिर ये आम आदमी लंबे अरसे तक किसी भी बदलाव पर भरोसा नहीं कर पाएगा। आम आदमी पार्टी और केजरीवाल को यही समझना होगा।

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home